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Praveen Jain "पल्लव"
White पल्लब की डायरी खुद का वजूद,आज देख लो सूरज की ताप झेली है छेड़ प्रकृति,काटकर कर पेड़ धुन झूठे विकास की छेड़ी है ध्वस्त होते सब अविष्कारों के साधन प्रकृति की गोद मे आना होगा चंचलता मन की छोड़ कर सुलभ और फ्री छाँव पाने साधन प्रकृति के अपनाना होगा वैश्वीकरण की दौड़ में कीमत सब की देते है हवा पानी पैक करके, सबको छलते रहते है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #cg_forest ध्वस्त होते सब आविष्कारों के साधन #nojotohindi
#cg_forest ध्वस्त होते सब आविष्कारों के साधन #nojotohindi #कविता
read moreDevesh Dixit
White अनंत (दोहे) लीला अनंत आपकी, ओ गिरिधर गोपाल। जकड़े जिसमें हैं सभी, वो है माया जाल।। जिसे रचा है आपने, माया वही अनंत। कैसे अब दीदार हों, ओ मेरे भगवंत।। महिमा अनंत आपकी, कहते सभी सुजान। एक न पत्ता हिल सके, जाने सकल जहान।। भजे आपको जो कभी, उसका बेडा पार। सुख साधन से हो धनी, ऐ मेरे भरतार।। सत्य बचाने के लिए, रूप किया विस्तार। चलता अनंत काल से, जीवन का ये सार।। कलियुग ने घेरा अभी, है उसका ही जोर। हुए अनंत प्रहार हैं, दर्द सहें अब घोर।। ........................................................ देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #अनंत #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi अनंत (दोहे) लीला अनंत आपकी, ओ गिरिधर गोपाल। जकड़े जिसमें हैं सभी, वो है माया जाल।। जिसे रचा ह
#अनंत #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi अनंत (दोहे) लीला अनंत आपकी, ओ गिरिधर गोपाल। जकड़े जिसमें हैं सभी, वो है माया जाल।। जिसे रचा ह #Poetry #sandiprohila
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White गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि कहते हैं- ध्यानहेयास्तद् वृत्तयः॥ (पातञ्जलयोगदर्शन २: ११) {Bolo Ji Radhey Radhey} तो सूक्ष्ममय जो वृत्तियाँ हैं पहले सेती वो ध्यान करके हैं, ध्यान करके त्याग, माने ध्यान के प्रभाव से सूक्ष्म वृत्तियां भी खत्म हो जाती हैं एक प्रकार से, तो ध्यान की सभी कोई महिमा गाते हैं। सभी शास्त्र अर गीता का तो विशेष लक्ष्य है, गीता का जोर तो भगवान् के नाम के जप के ऊपर इतना नहीं है, कि जितना भगवान् के स्वरूप के चिंतन के ऊपर है, स्मरणके ऊपर है, स्मरण की जो आगे की अवस्था हैं वो ही चिंतन है और चिंतन की और अवस्था जब बढ़ जाती है, तो चिंतन ही ध्यान बन जाता है। भगवान् के स्वरूप की जो यादगिरी है उसका नाम स्मरण है, अर उसका जो एक प्रकारसे मनसेती स्वरूप पकड़े रहता है, उसकी आकृति भूलते नहीं हैं, वह होता है चिंतन, अर वह ऐसा हो जाता है कि अपने आपका बाहरका उसका ज्ञान ही नहीं रवे एकतानता ध्यानं, एक तार समझो कि उस तरह का ध्यान निरंतर बण्या रवे, वह है सो ध्यान का स्वरूप है, तो परमात्मा का जो ध्यान है वह तो बहुत ही उत्तम है। तो परमात्माकी प्राप्ति तो ध्यानसे शास्त्रों में बतलायी है। किंतु अपने को परमात्मा का ध्यान इसलिये करना है, कि ध्यान से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। जितने जो साधन हैं वह साधन के लिये हैं, और ध्यान है जो परमात्मा के लिये है किंतु हम एक प्रकार से ध्यान तो करें, और परमात्मा को नहीं बुलावें तो परमात्मा समझो कि अपने आप ही वहाँ आते हैं। सुतीक्ष्ण जो है भगवान् से मिलने के लिये जा रहा है, तो उसका ध्यान अपने आप ही हो गया, ऐसा ध्यान लग गया कि फिर भगवान् आकर उसका ध्यान तोड़ना चावे तो भी नहीं टूटता है तो भगवान् कितने खुश हो गये उसके ध्यान को देखकर, उसके ध्यान को देख करके भगवान् है सो मुग्ध हो गये। बोल्या यदि ध्यान न हो तो, ध्यान न हो तो भगवान् के केवल नाम का जप ही करना चाहिये, भगवान् के नामके जप से, भगवान् के भजन सेती ही समझो कि परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। क्योंकि भगवान् के नाम का जप करने से भगवान् में प्रेम होता है, अर भगवान् के मायँ प्रेम होने से समझो कि भगवान् की प्राप्ति हो जाती है। इसलिये नाम के जप से भी परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है, नाम के जप से सारे पापों का नाश हो जाता है, नाम के जप से परमात्माके स्वरूप का ज्ञान हो जाता है, नाम के जपसे भगवान् उसके वश में हो जाते हैं, नाम के जपसे उसकी आत्मा का उद्धार हो जाता है। तो सारी बात नाम के जप से हो जाती है, तो इसलिये समझो कि यदि ध्यान न लगे, तो भगवान् के नाम का निरंतर जप ही करना चाहिये। सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखे। सुमरिअ नाम रूप बिनु देखे। होत हृदयँ सनेह विसेषें। होत हृदयँ सनेह विसेषें । भगवान् के नाम का सुमरन करना चाहिये, ध्यान के बिना भी तो भगवान् के वहां विशेष प्रेम हो जाता है, प्रेम होने से भगवान् मिल जाते हैं। हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना॥ प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना॥ हरि सब जगहमें सम भावसे विराजमान हैं और वे प्रेम से प्रकट होते हैं, शिवजी कहते हैं इस बात को मैं जानता हूँ। ©N S Yadav GoldMine #mothers_day गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि क
#mothers_day गीता १३: २४) कितने ही आदमी ध्यान के द्वारा उस परमात्मा को अपनी आत्मा के अंदर बुद्धि से देखते है, अनुभव करते है। महर्षि पतंजलि क #विचार
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White {Bolo Ji Radhey Radhey} भगवतभक्ति के लिए व भगवान श्री कृष्ण जी प्राप्ति मैं सबसे बढ़कर साधन है, और सब साधनों का फल है, वो है, परमात्मा का ध्यान, हर वक्त परमात्मा के स्वरूप का ध्यान रखना चाहिये, और चाहे जप भी मत हो, चाहे सत्संग भी मत हो, और चाहे कुछ भी मत हो, परमात्मा का ध्यान रहना चाहिये। ©N S Yadav GoldMine #sad_shayari {Bolo Ji Radhey Radhey} भगवतभक्ति के लिए व भगवान श्री कृष्ण जी प्राप्ति मैं सबसे बढ़कर साधन है, और सब साधनों का फल है, वो है
#sad_shayari {Bolo Ji Radhey Radhey} भगवतभक्ति के लिए व भगवान श्री कृष्ण जी प्राप्ति मैं सबसे बढ़कर साधन है, और सब साधनों का फल है, वो है
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Black भक्ति साधारण रूप से दो भागों में बाँटी जा सकती है । {Bolo Ji Radhey Radhey} पहली साधन भक्ति और दूसरी साध्य भक्ति । साधन भक्ति का अर्थ होता है, कि मन भगवान में कैसे लगे, भजन में कैसे लगे इसका प्रयास. और साध्य भक्ति का अर्थ होता है, अब मन लग गया है, अब बस भगवान का भजन हो और उनके नाम रूप गुण की चर्चा होl अब उनसे एकत्व हो जाये । ©N S Yadav GoldMine #Morning भक्ति साधारण रूप से दो भागों में बाँटी जा सकती है । {Bolo Ji Radhey Radhey} पहली साधन भक्ति और दूसरी साध्य भक्ति । साधन भक्ति का
#Morning भक्ति साधारण रूप से दो भागों में बाँटी जा सकती है । {Bolo Ji Radhey Radhey} पहली साधन भक्ति और दूसरी साध्य भक्ति । साधन भक्ति का
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
चौपाई छन्द :- पीर पराई बनी बिवाई । हमको आज कहाँ ले आयी ।। मन के अपनी बात छुपाऊँ । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।। चंचल नैनो की थी माया । जो कंचन तन हमको भाया ।। नागिन बन रजनी है डसती । सखी सहेली हँसती तकती ।। कौन जगत में है अब अपना । यह जग तो है झूठा सपना ।। आस दिखाए राह न पाये । सच को बोल बहुत पछताये ।। यह जग है झूठों की नगरी । बहु तय चमके खाली गगरी ।। देख-देख हमहूँ ललचाये । भागे पीछे हाथ न आये ।। खाया वह मार उसूलो से । औ जग के बड़े रसूलों से ।। पाठ पढ़ाया उतना बोलो । पहले तोलो फिर मुँह खोलो ।। आज न कोई उनसे पूछे । जिनकी लम्बी काली मूछे । स्वेत रंग का पहने कुर्ता । बना रहे पब्लिक का भुर्ता ।। बन नीरज रवि रहा अकाशा । देता जग को नित्य दिलाशा । दो रोटी की मन को आशा । जीवन की इतनी परिभाषा ।। लोभ मोह सुख साधन ढूढ़े । खोजे पथ फिर टेढे़ मेंढ़े । बहुत तीव्र है मन की इच्छा । भरे नहीं यह पाकर भिच्छा ।। राधे-राधे रटते-रटते । कट जायेंगे ये भी रस्ते । अपनी करता राधे रानी । जिनकी है हर बात बखानी । प्रेम अटल है तेरा मेरा । क्या लेना अग्नी का फेरा । जब चाहूँ मैं कर लूँ दर्शन । कहता हर पल यह मेरा मन ।। २४/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चौपाई छन्द :- पीर पराई बनी बिवाई । हमको आज कहाँ ले आयी ।। मन के अपनी बात छुपाऊँ । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।। चंचल नैनो की थी माया । जो कंच
चौपाई छन्द :- पीर पराई बनी बिवाई । हमको आज कहाँ ले आयी ।। मन के अपनी बात छुपाऊँ । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।। चंचल नैनो की थी माया । जो कंच #कविता
read moreYogi Sonu
Mahadev Son
White जीवन की परिभाषा चार लक्ष्यों को प्राप्त करना धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष धर्म - सदाचार, उचित, नैतिक जीवन काम - चारों लक्ष्यों को पूर्ण करना है अर्थ - भौतिक समृद्धि, आय सुरक्षा, जीवन के साधन इन तीनों के लिये सभी निरंतर प्रयास करते... मोक्ष के लिये सोचते भी नहीं क्योंकि मुश्किल या मालूम ही नहीं.... मोक्ष - मुक्ति, आत्म-साक्षात्कार। जीवन की अंतिम परिणति है। मोक्ष आत्मा को भौतिक संसार के संघर्षों और पीड़ा से मुक्त करता है! आत्मा को जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मुक्त करता है! ©Mahadev Son जीवन की परिभाषा चार लक्ष्यों को प्राप्त करना धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष धर्म - सदाचार, उचित, नैतिक जीवन काम - चारों लक्ष्यों को पूर्ण करना ह
जीवन की परिभाषा चार लक्ष्यों को प्राप्त करना धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष धर्म - सदाचार, उचित, नैतिक जीवन काम - चारों लक्ष्यों को पूर्ण करना ह #Bhakti
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