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Salim Saha

#ठोकर खाके हम तो समज जायेंगे# #शायरी

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sila kumari

मैथिली पर गोली मारेला #लव

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विधा  :-   चवपैया छन्द तुम हो मतदाता , मेरे भ्राता , क्यों इनसे डरते हो । अब सोच समझ लो , तब निर्णय लो , कब इनमें बसते हो ।। ये तेरा खात #कविता

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विधा  :-   चवपैया छन्द
तुम हो मतदाता , मेरे भ्राता , क्यों इनसे डरते हो ।
अब सोच समझ लो,तब निर्णय लो,कब इनमें बसते हो ।।
ये तेरा खाते , अपनी गाते , अपनी धुन रमते हैं ।
मत देखो थैली , होती मैली , पाप सदा भरते हैं ।।

इनका धर्म नहीं , ईमान नहीं,   माया के गुण गाते ।
सब भूले अपने , देखें सपने , जग को ये भरमाते ।।
ये बे पथ होकर , बनकर नौकर , बन जाते हैं राजा ।
कर झूठे वादे , गलत इरादे , खूब बजाते बाजा ।।

ठोको छाती , अब दिन राती , मुर्गा दारू खाके ।
अब क्यों है रोता , उडता तोता , बोलो मेरे काके ।।
सुन जहाँ समय है , करूँ विनय है , जागो मेरे भ्राता ।
तुम क्यों हो डरते ,चलकर लडते , तुम सब हो मतदाता ।।

२९/११/२०२३      -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा  :-   चवपैया छन्द


तुम हो मतदाता , मेरे भ्राता , क्यों इनसे डरते हो ।

अब सोच समझ लो , तब निर्णय लो , कब इनमें बसते हो ।।

ये तेरा खात

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- ठान लिया जो मन में अपने , करके वह दिखलाना है । हमको चंदा सूरज से भी , आगे बढ़ते जाना है ।। ठान लिया जो मन में अपने ..... नया-नया है #कविता

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गीत :-

ठान लिया जो मन में अपने , करके वह दिखलाना है ।
हमको चंदा सूरज से भी , आगे बढ़ते जाना है ।।
ठान लिया जो मन में अपने .....

नया-नया है खून हमारा , जोश अभी भी पूरा है ।
जब तक साँसें हार न मानूँ , सारा काम अधूरा है ।।
मुझको अपनी मंजिल पर अब , सुनों समय से जाना है ।
जीवन भर साहस की हमको , उँगली थामें जाना है ।।
ठान लिया जो मन में अपने ....

मैं किसान सुत माता धरती , का सुन लो रखवाला हूँ ।
इस धरती पर जन्म लिया , इस पर मिटने वाला हूँ ।।
धर्म-कर्म की बातें जिसमें , गीत वही अब गाना है ।
सोए जो अब तक है भाई , उन्हे जगाने जाना है ।।
ठान लिया जो मन में अपने ....

दम हो जिसमें आँख उठाये , सीने पर भारत माँ के ।
उसको छठवाँ याद दिलाऊँ , कसम आसमां की खाके ।।
वह वीर हमारे वंशज है , उनको याद दिलाना है ।
भारत माता की खातिर कल , हमको शीश चढ़ाना है 
ठान लिया जो मन में अपने ....

ठान लिया जो मन में अपने ,करके वह दिखलाना है ।
हमको चंदा सूरज से भी , आगे बढ़ते जाना है ।।

२६/०८/२०२३   -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-

ठान लिया जो मन में अपने , करके वह दिखलाना है ।
हमको चंदा सूरज से भी , आगे बढ़ते जाना है ।।
ठान लिया जो मन में अपने .....

नया-नया है

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- ठान लिया जो मन में अपने , करके वह दिखलाना है । हमको चंदा सूरज से भी , आगे बढ़ते जाना है ।। ठान लिया जो मन में अपने ..... नया-नया है #कविता

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गीत :-

ठान लिया जो मन में अपने , करके वह दिखलाना है ।
हमको चंदा सूरज से भी , आगे बढ़ते जाना है ।।
ठान लिया जो मन में अपने .....

नया-नया है खून हमारा , जोश अभी भी पूरा है ।
जब तक साँसें हार न मानूँ , सारा काम अधूरा है ।।
मुझको अपनी मंजिल पर अब , सुनों समय से जाना है ।
जीवन भर साहस की हमको , उँगली थामें जाना है ।।
ठान लिया जो मन में अपने ....

मैं किसान सुत माता धरती , का सुन लो रखवाला हूँ ।
इस धरती पर जन्म लिया , इस पर मिटने वाला हूँ ।।
धर्म-कर्म की बातें जिसमें , गीत वही अब गाना है ।
सोए जो अब तक है भाई , उन्हे जगाने जाना है ।।
ठान लिया जो मन में अपने ....

दम हो जिसमें आँख उठाये , सीने पर भारत माँ के ।
उसको छठवाँ याद दिलाऊँ , कसम आसमां की खाके ।।
वह वीर हमारे वंशज है , उनको याद दिलाना है ।
भारत माता की खातिर कल , हमको शीश चढ़ाना है 
ठान लिया जो मन में अपने ....

ठान लिया जो मन में अपने ,करके वह दिखलाना है ।
हमको चंदा सूरज से भी , आगे बढ़ते जाना है ।।

२६/०८/२०२३   -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-

ठान लिया जो मन में अपने , करके वह दिखलाना है ।
हमको चंदा सूरज से भी , आगे बढ़ते जाना है ।।
ठान लिया जो मन में अपने .....

नया-नया है

एक अजनबी

#एक_स्त्री_और_पुरुष #कृपया_पूरी_पढ़े 🙏🏻 *एक पुरुष और स्त्री के आपसी संबंधों की परिणति, सिर्फ देह ही तो नहीं हो सकती। क्या एक स्त्री और पुर #Society

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एक पुरुष और स्त्री के आपसी संबंधों की परिणति,
सिर्फ देह ही तो नहीं हो सकती।
क्या एक स्त्री और पुरुष किसी और तरह नहीं बँध सकते आपस में ?
और बँधें ही क्यों ?
उन्मुक्त भी तो रह सकते हैं, समाज के बने बनाए एक ही
तरह के खाके से जिसमें सदियों पुरानी एक सड़ांध सी है।

एक स्त्री और पुरुष
बौध्दिकता के स्तर पर भी एक हो सकते हैं
उपन्यास, कविताएँ, कहानियों, ग़ज़लों पर विमर्श करना
कहानियों की पौध रोपना क्या दैहिक सम्बन्धों की परिभाषाएँ लाँघता है ?

एक स्त्री और पुरुष-घण्टों बातें कर सकते हैं
 फूल के रंगों के बारे में, तितलियों के पंखों के बारे में,
समुद्र के दूधिया किनारों के बारे में,  और
ढलती शाम के सतरंगी आसमानों के बारे में, 
पत्तों पर थिरकती, बारिश की सुरलहरियों के बारे में;
इनमें तो कहीं भी देह की महक नहीं, दूर - दूर तक नहीं।
फिर दायरे, वही दायरे बाँध देते हैं दोनों को।

एक स्त्री और पुरुष- आपस में बाँट सकते हैं - 
एक दूसरे का दुःख, ठोकरों से मिला अनुभव,
कितनी ही गाँठें सुलझा सकते हैं, साथ में मन की।
मगर, नहीं कर पाते, ......क्योंकि
दोनों को कहीं न कहीं रोक देता है, उनका स्त्री और पुरुष होना।

एक स्त्री और पुरुष - के आपसी सानिध्य की उत्कंठा - की दूसरी धुरी..
आवश्यक तो नहीं कि दैहिक खोज ही हो;
मन के खाली कोठरों को सुन्दर विचारों से भरने में भी
सहभागी हो सकते हैं - स्त्री और पुरुष।
यूँ भी तो हो सकता है कि - उनके बीच कुछ ऐसा पनपने को
उद्वेलित हो, जो देह से परे हो,
प्रेम की पूर्व गढ़ित परिभाषाओं से भी अछूता हो,
 क्यों न दें इस नई परिभाषा को?
स्त्री और पुरुष के बीच।

©एक अजनबी #एक_स्त्री_और_पुरुष #कृपया_पूरी_पढ़े 🙏🏻


*एक पुरुष और स्त्री के आपसी संबंधों की परिणति,
सिर्फ देह ही तो नहीं हो सकती।
क्या एक स्त्री और पुर

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- झूठा ये संसार है , झूठे सारे मीत । सच्चा तो भूखा रहे , गाता कान्हा गीत ।।१ स्वार्थी रिश्तें तो सदा , देते हैं दुत्कार । देखा है देख #कविता

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दोहा :-
झूठा ये संसार है , झूठे सारे मीत ।
सच्चा तो भूखा रहे , गाता कान्हा गीत ।।१

स्वार्थी रिश्तें तो सदा , देते हैं दुत्कार ।
देखा है देखो अभी , माया रूपी प्यार ।।२

दाता कष्टों से नहीं , होती है क्यों पीर ।
धोखा खाके क्यों बहे , दो नैनों से नीर ।।४

२७/०४/२०२३      -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :-
झूठा ये संसार है , झूठे सारे मीत ।
सच्चा तो भूखा रहे , गाता कान्हा गीत ।।१

स्वार्थी रिश्तें तो सदा , देते हैं दुत्कार ।
देखा है देख

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- झूठा ये संसार है , झूठे सारे मीत । सच्चा तो भूखा रहे , गाता कान्हा गीत ।।१ स्वार्थी रिश्तें तो सदा , देते हैं दुत्कार । देखा है देख #कविता

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दोहा :-

झूठा ये संसार है , झूठे सारे मीत ।
सच्चा तो भूखा रहे , गाता कान्हा गीत ।।१

स्वार्थी रिश्तें तो सदा , देते हैं दुत्कार ।
देखा है देखो अभी , माया रूपी प्यार ।।२

दाता कष्टों से नहीं , होती है क्यों पीर ।
धोखा खाके क्यों बहे , दो नैनों से नीर ।।४

२७/०४/२०२३      -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :-
झूठा ये संसार है , झूठे सारे मीत ।
सच्चा तो भूखा रहे , गाता कान्हा गीत ।।१

स्वार्थी रिश्तें तो सदा , देते हैं दुत्कार ।
देखा है देख

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- गिरधर तुमने जो दिया , मुझे आज उपहार । उसे समझता ही नही , देखो अब संसार ।।१ करते क्यों मेरा नहीं , आकर तुम संहार । मिलता अब मुझको #कविता

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दोहा :-
गिरधर तुमने जो दिया , मुझे आज उपहार ।
उसे समझता ही नही , देखो अब संसार ।।१
करते क्यों मेरा नहीं , आकर तुम  संहार ।
मिलता अब मुझको नही , दुनिया से मनुहार ।।२
गिरधर तेरी चाकरी , करते थे हम खूब ।
अब तो लगता है मुझे , आज गये तुम ऊब ।।३
सब रिश्तों से थी अलग , तेरी मेरी प्रीत ।
क्या जाने ये जग मुआ , जिसकी झूठी रीति ।।४
तेरे मेरे प्रेम की , वेणु सुनाती गीत ।
तुम भी तो थे जानते , तुम ही मन के मीत ।।५
तुमसे तो बोला नही , हमने देखो झूठ ।
कहते तुम कुछ क्यों नही , बैठे बनके ठूठ ।।६
हरो आज चिंता सभी , दूर करो मन मैल ।
शरण तुम्हारे मैं रहूँ , ज्यों कोल्हू का बैल ।।७
अब रिश्तों से कर मुझे , गिरधर तू आजाद ।
रख लो अपनी तुम शरण , करता हूँ फरियाद ।।८
जीते जी मेरा नहीं , इस जग में अब ठौर ।
लोभी स्वार्थी लोग का , अब चलता है दौर ।।९
बदले सबने रंग है ,  मन की कहकर बात ।
अपने हित की बात कह , कर ली काली रात ।।१०
विनय करूँ मैं आपसे , करो इसे स्वीकार ।
अपनी शरण बुला मुझे ,कर दो अब उद्धार ।।११
भ्रामर दोहा:- चार लघु 
झूठा ये संसार है , झूठी सारे मीत ।
सच्चा तो भूखा रहे , गाता कान्हा गीत ।।१
स्वार्थी रिश्तें तो सदा , देते हैं दुत्कार ।
देखा है देखो अभी , माया रूपी प्यार ।।२
नैनों से बातें करें ,  मीठी प्यारी आज ।
बैठे वे देखा करें , पूछे क्या है राज ।।३
दाता कष्टों से नहीं , होती है क्यों पीर ।
धोखा खाके क्यों बहे , दो नैनों से नीर ।।४
२७/०४/२०२३      -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :-

गिरधर तुमने जो दिया , मुझे आज उपहार ।
उसे समझता ही नही , देखो अब संसार ।।१

करते क्यों मेरा नहीं , आकर तुम  संहार ।
मिलता अब मुझको

skumar

तरस खाके बात कर लिया कर #Shayari

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