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Naresh Kumar

जय मां रेणुका। #विचार

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Renuka Priyadarshini

कविता !!!होड़!!!रेणुका प्रियदर्शिनी

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होड़

आज के इस दौड़ में
सबसे आगे निकल जाने की होड़ में
लोग भाग रहे हैं
यह सोचे बिना क्या साथ लिया
 क्या पीछे  रह गया
अपनी संस्कृति, अपना सभ्यता
अपना इतिहास, अपनी परंपरा
अपना गौरव , अपना ज्ञान 
अपनी मर्यादा और अपना आत्मसम्मान
सब हमसे छूटते जा रहे हैं
ये जो हम आगे आगे का 
भ्रम पाल रहे हैं
ज़रा पीछे मुड़कर देखें 
तो पता चले
 हम विपरीत दिशा में जा रहें हैं
हम विदेशी संस्कृति को देख-देख
बड़ा लुभाते हैं
अपना खान पान, पहनावा , दिनचर्या
सब उनकी तरह अपनाते हैं
अपने शौर्य, पुरुषार्थ,आत्मनिर्भरता
को हम इस तरह खोते जा रहे हैं
हमें पता भी नहीं हम किस तरह
गुलाम होते जा रहें हैं
अभी भी वक्त है
वापस घर अपने लौट आये
फिर से वेद पुराणों, परसम्पराओं
और संसकृति की सरण में जाये
भावी पीढ़ी सम्मान करे हमारा
हमारे आदर्शों का
इसलिए चलो एक बार फिर 
भारतीयता अपनाये
चलो एक बार फिर 
भारतीयता अपनाये

 रेणुका प्रियदर्शिनी #कविता !!!होड़!!!रेणुका प्रियदर्शिनी

Renuka Priyadarshini

#कविता!!!शब्दों के ख़जाने!!!रेणुका प्रियदर्शिनी

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शब्दों के खजाने

ज़रा संभल के खर्च करें इनको
ये शब्दों के खजाने हैं

कुछ शब्द विष से होते हैं
कुछ अमृत बन कर बहते हैं 
जीते जी नरक दिखाते कुछ
कुछ स्वर्ग द्वार ले जाते हैं

ज़रा संभल के ख़र्च करे इनको 
ये शब्दों के ख़जाने है

ये शब्द रूप है ब्रह्मा का
माँ सरस्वती का आधार भी ये
लक्ष्मी भी आती शब्दों से
इसमें बसते देव सारे हैं

ज़रा संभल के खर्च कर इनको
ये शब्दों के खजाने हैं

कुछ शब्द है भरते जख्मों को
कुछ सीना छलनी कर जाते हैं
जीने की वजह थमाते कुछ
कुछ घड़ी घड़ी तड़पाते हैं

ज़रा संभल के खर्च करें इनको
ये शब्दों के ख़जाने हैं

ये शब्दबाण ही अस्त्र है वो
जो चुभते है सालों-सालों
कुछ पत्थर बन बरसते तो
कुछ कोमलता बरसाते हैं

जरा संभल के खर्च करे इनको
ये शब्दों के ख़जाने हैं

कुछ शब्द भेदते आकाश सा मन
बिजली बन फिर कड़कते हैं
नयनों से फूटतीं धाराएं
और दिल बंजर कर जाते हैं

जरा संभल के खर्च करे इनको
ये शब्दों के खजाने हैं

आज शब्द की शक्ति माप ले हम
जो शब्दों में नहीं आते
कभी छीन लेते सारे रिश्ते
कभी सारा जग थमाते हैं

ज़रा संभल के ख़र्च करे इनको
ये शब्दों के ख़जाने हैं
               रेणुका प्रियदर्शिनी #कविता!!!शब्दों के ख़जाने!!!रेणुका प्रियदर्शिनी

Apurv Yadu

#ramdharisingdinkar हुँकार, रेणुका, रसवंती, कुरुक्षेत्र, उर्वसी, रश्मिरथी.! हारे को हरिनाम, रामधारी सिंह दिनकर थे महारथी!! ज #nojotophoto #विचार

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 #ramdharisingdinkar

हुँकार, रेणुका, रसवंती, कुरुक्षेत्र, उर्वसी, रश्मिरथी.! 
हारे को हरिनाम, रामधारी सिंह दिनकर थे महारथी!!

             ज

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 20 - क्रीड़ा 'दादा! तू बैठ। हम तुझे देवता बनायेंगे।' दाऊ दादा ही इस प्रकार स्थिर बैठ सकता है। यह तो बना बनाया देवता है। ले

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|| श्री हरि: || 
20 - क्रीड़ा

'दादा! तू बैठ। हम तुझे देवता बनायेंगे।' दाऊ दादा ही इस प्रकार स्थिर बैठ सकता है। यह तो बना बनाया देवता है। ले

N S Yadav GoldMine

#City सत्यवती के विवाह के पश्चात वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये क्या कहा जानिए !! 👸👸 {Bolo Ji #पौराणिककथा

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सत्यवती के विवाह के पश्चात वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये क्या कहा जानिए !! 👸👸
{Bolo Ji Radhey Radhey}
भगवान परशुराम की कथा :- 🌹 परशुराम रामायण काल के दौरान के मुनी थे। पूर्वकाल में कन्नौज नामक नगर में गाधि नामक राजा राज्य करते थे। उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। राजा गाधि ने सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ कर दिया। सत्यवती के विवाह के पश्चात वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये कहा। इस पर सत्यवती ने श्वसुर को प्रसन्न देखकर उनसे अपनी माता के लिये एक पुत्र की याचना की। सत्यवती की याचना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुये कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करें और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना। फिर मेरे द्वारा दिये गये इन चरुओं का सावधानी के साथ अलग अलग सेवन कर लेना। 

🌹 इधर जब सत्यवती की माँ ने देखा कि भृगु जी ने अपने पुत्रवधू को उत्तम सन्तान होने का चरु दिया है तो अपने चरु को अपनी पुत्री के चरु के साथ बदल दिया। इस प्रकार सत्यवती ने अपनी माता वाले चरु का सेवन कर लिया। योग शक्ति से भृगु जी को इस बात का ज्ञान हो गया और वे अपनी पुत्रवधू के पास आकर बोले कि पुत्री! तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है। इसलिये अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुये भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगा। इस पर सत्यवती ने भृगु जी से विनती की कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करे, भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे। भृगु जी ने प्रसन्न होकर उसकी विनती स्वीकार कर ली। 
{Rao Sahab N S Yadav}
🌹 समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ। जमदग्नि अत्यन्त तेजस्वी थे। बड़े होने पर उनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ। रेणुका से उनके पाँच पुत्र हुये जिनके नाम थे रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्वानस और परशुराम। एक बार रेणुका सरितास्नान के लिये गई। दैवयोग से चित्ररथ भी वहाँ पर जल-क्रीड़ा कर रहा था। चित्ररथ को देख कर रेणुका का चित्त चंचल हो उठा। इधर जमदग्नि को अपने दिव्य ज्ञान से इस बात का पता चल गया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने बारी-बारी से अपने पुत्रों को अपनी माँ का वध कर देने की आज्ञा दी। रुक्मवान, सुखेण, वसु और विश्वानस ने माता के मोहवश अपने पिता की आज्ञा नहीं मानी, किन्तु परशुराम ने पिता की आज्ञा मानते हुये अपनी माँ का सिर काट डाला। अपनी आज्ञा की अवहेलना से क्रोधित होकर जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़ हो जाने का शाप दे दिया और परशुराम से प्रसन्न होकर वर माँगने के लिये कहा। इस पर परशुराम बोले कि हे पिताजी! मेरी माता जीवित हो जाये और उन्हें अपने मरने की घटना का स्मरण न रहे। परशुराम जी ने यह वर भी माँगा कि मेरे अन्य चारों भाई भी पुनः चेतन हो जायें और मैं युद्ध में किसी से परास्त न होता हुआ दीर्घजीवी रहूँ। जमदग्नि जी ने परशुराम को उनके माँगे वर दे दिये।

🌹 इस घटना के कुछ काल पश्चात एक दिन जमदग्नि ऋषि के आश्रम में कार्त्तवीर्य अर्जुन आये। जमदग्नि मुनि ने कामधेनु गौ की सहायता से कार्त्तवीर्य अर्जुन का बहुत आदर सत्कार किया। कामधेनु गौ की विशेषतायें देखकर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने जमदग्नि से कामधेनु गौ की माँग की किन्तु जमदग्नि ने उन्हें कामधेनु गौ को देना स्वीकार नहीं किया। इस पर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने क्रोध में आकर जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया और कामधेनु गौ को अपने साथ ले जाने लगा। किन्तु कामधेनु गौ तत्काल कार्त्तवीर्य अर्जुन के हाथ से छूट कर स्वर्ग चली गई और कार्त्तवीर्य अर्जुन को बिना कामधेनु गौ के वापस लौटना पड़ा।

🌹 इस घटना के समय वहाँ पर परशुराम उपस्थित नहीं थे। जब परशुराम वहाँ आये तो उनकी माता छाती पीट-पीट कर विलाप कर रही थीं। अपने पिता के आश्रम की दुर्दशा देखकर और अपनी माता के दुःख भरे विलाप सुन कर परशुराम जी ने इस पृथ्वी पर से क्षत्रियों के संहार करने की शपथ ले ली। पिता का अन्तिम संस्कार करने के पश्चात परशुराम ने कार्त्तवीर्य अर्जुन से युद्ध करके उसका वध कर दिया। इसके बाद उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से रहित कर दिया और उनके रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र में पाँच सरोवर भर दिये। अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोक दिया। अब परशुराम ब्राह्मणों को सारी पृथ्वी का दान कर महेन्द्र पर्वत पर तप करने हेतु चले आये हैं।

©N S Yadav GoldMine #City सत्यवती के विवाह के पश्चात वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये क्या कहा जानिए !! 👸👸
{Bolo Ji

Ashok Mangal

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दिल का रास्ता तो तब बताया जायेगा,
जब दिल में बसाने का ख्याल आयेगा !
यूँही किसी ने पूछ लिया और बता दें हम,
ये हमारा दिल है जी, सराय न समझियेगा !! क्योंकि जाना तो वहीं है.... कहाँ?.... तुम्हारे दिल तक😅
और उसका पता तुम्हारे अलावा किसी को नहीं पता.... और रास्ते में खो जाना या भटक जाना, हम

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Anil Siwach

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|| श्री हरि: ||
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