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Shiv Sharma
तुमने कहा के में आउंगी ना तुम आई ना तुम्हारी याद आई वो तो अच्छा था माचीस थी मेरे पास रात भर जाग के रात बिताई (बिजली ) ©Shiv Sharma गावो का हाल #ujala
ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
तुम्हे कर गया ना इश्क बर्बाद,🤣 और गीत गावो मोहब्बत के। ©Ankur Raaz तुम्हे कर गया ना इश्क बर्बाद,🤣 और गीत गावो मोहब्बत के।
pandeysatyam999
त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्। त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे।। जिसे जान लेनेपर फिर कुछ भी जनन
aneesh babu kotta
Kiran Bala
घर -घर बाजत , बधैया सखि वो शुभ दिन आज आयो है मनमोहन मोहन प्यारे ,को सखि सुन जन्म-दिवस,आज आयो है गावो रि मिल, मंगल गीत सखि वो आज, दरस दिखावन आयो है लीलाधारी लीला से , सखि हिय के कष्ट मिटावन आयो है #gif घर -घर बाजत , बधैया सखि वो शुभ दिन, आज आयो है मनमोहन मोहन प्यारे ,को सखि सुन जन्म-दिवस,आज आयो है गावो रि मिल, मंगल गीत सखि वो आज, दरस दिखावन
दि कु पां
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम् । वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ 5 ॥ गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा । सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ 6 ॥ गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् । दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ 7 ॥ गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा । दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ 8 ॥ अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् । हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ 1 ॥ वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मैं परिवर्तन चाह रहा हूँ , देखो अपने गाँव रे। फिर बैठ मुसाफिर सुस्ताये , बरगद की उन छाँव रे ।। मैं परिवर्तन चाह रहा हूँ ..... फिर बचपन वाले आये दिन , हम जब जाये गाँव रे । माँ के आँचल में बैठे हम , लेने शीतल छाँव रे ।। लेकिन बच्चे अनभिज्ञ हुए , पूछे क्या है गाँव में । मैं परिवर्तन चाह रहा हूँ ,...। बदलो यह परिधान हमारे , लौटा दो संस्कार वह । बच्चा-बच्चा माँग रहा है , करके देख पुकार यह ।। आज धरा की इस मिट्टी से , कर दो मेरा शृंगार रे । मैं परिवर्तन चाह रहा हूँ ...... हो गंगा यमुना तहजीबे , मन में सदा मिठास हो । जैसे घट का शीलत पानी , शांति कराता प्यास हो ।। ऐसे इंसानों का मेरे , गावो में हो वास रे । मैं परिवर्तन चाह रहा हूँ ..... बरदगद पीपल महुआ से ही , सभी दिशा छाया घनी । वहीं फूस के एक तरह के , प्रेम भरी बस्ती बनी ।। चूँ चूँ करती चिड़िया का फिर , प्रति दिन हो रसगान रे । मैं परिवर्तन चाह रहा हूँ ... मधुर संत की सुंदर वाणी , राम सिया का जाप हो । कल-कल बहती गंगा में नित , देखो पश्चाताप हो ।। पापो से मुक्त रहे नगरी , जग यह ऐसी ठाँव रे । मैं परिवर्तन चाह रहा हूँ ..... मैं परिवर्तन चाह रहा हूँ , देखो अपने गाँव रे । फिर बैठ मुसाफिर सुस्ताये , बरगद की उन छाँव रे ..।। ३०/०५/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मैं परिवर्तन चाह रहा हूँ , देखो अपने गाँव रे। फिर बैठ मुसाफिर सुस्ताये , बरगद की उन छाँव रे ।। मैं परिवर्तन चाह रहा हूँ ..... फिर बचपन वाले