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#हमरी प्रेम कहानी भाग 15(समापन 2) #teachersday2020

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हमरी प्रेम कहानी भाग 15 (समापन 2)
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भोलन मुखियाजी का मुँह देखने लगा। मुखिया जी सकपका के बोले..ए बीरबलवा...अब ई पंचैती तुमरे हिसाब से होगा का? एतना सरपंच और गवाह सब धुर है का? तू कौन हक से दखल दे रहे हो?
इस बार बीरबल की त्योरी चढ़ गई। वो एकदम से झार के बोला....पुल बनाना पाप है का? उ पुल पे अकेले दिलखुसवा चलता है का? आप सब कौन हिसाब से पुल को अपने नाम करवा के अखबार में फ़ोटो छपवा के गांव वाले का सम्मान का हकदार बने?इसको का फ्रॉड नहीं कहा जाता? 4 साल से मुखिया है आप, के गो नल या नाला बनवाएं गांव में? कितना गरीब को अनाज मिला? कौन सा बृक्षारोपन  करवाएं? सब काम कागज पे कर के पैसा लूट लिए है,सारा लेखा जोखा है हमरे पास। ऊपर से DM साब का दिया चेक दबा गए जिसपर दिलखुसवा का हक़ है,ई का फ्राउडिंग नहीं है? हम दिलखुसवा को लेके DM साब के पास जाएंगे। पंचायत में विवाद छिड़ गया।
मुखिया जी सरोज से पूछे..बताती काहे नही की तुमरा इस छोरा से काहे का रिश्ता है?ऐय भोगिन्दर बाबू अपन लड़की से पूछिए का बात है?पंचायत का समय खराब कर रहे आप लोग..अपना पल्ला झाड़ने के लिए मुखिया जी बोल गए। भोगिन्दर बाबू सरोज को ऐसे देखे जैसे अभिये चबा के उगल देंगे....
सरोज आंख में आंसू भरकर बोली....जी हम बाद में दिलसखुसवा से मिले पहिले उ मेरे पीछे पड़ा रहता था,हम गलती से इका कहने वे ई पट्टी मेला देखने आ गए। फिर ई हमको धमकाया की अगर मंच पे सबके सामने हमका किस नहीं करोगी त पूरा छोरा लोग को तुमरे बारे में बता देंगे.....
तभी बीरबल बोला...त तुम मंच पे इका चुम्मा ले ली...फिर त ई बात कोई नही जान सका होगा...10 गांव का आदमी तुमका मंच पे देखा,उ सब को कुछो नहीं बुझाया होगा...तुमरा लाज बचा रह गया होगा...झूठ बोलती हो तुम...हम बचपन से जानते हैं ई छोरा को....किसी को नजर उठा के भी नही देखा है आज तक। अगर तुम इसको पसंद नहीं करती तो का मजाल ई एक कदम भी आगे बढ़ता।
भोगिन्दर बिदक के बीरबल का कॉलर पकड़ लिया। बीरबल उसका हाथ उमेठ के बोला....अपन शान अपने पास रखो...धर के चीड़ देंगे इहे पंचायत में।
बात बिगड़ता इससे पहले मोहर बाबू बोले...अच्छा हमरे बगीचा से जो बांस चुराया उसका क्या?
बीरबल बोला अखबार का कटिंग है हमरे पास...जब पुल बनाने में इसका नाम है ही नही,उस पुल को आप चंदा के खर्चे से बनवाए बताएं है तो क्या सबूत है कि बांस दिलखुश काटा है।इसका त कंही नाम नही है पुल के बोर्ड पे। सब चुप हो गए।
पर बाउजी कहाँ सुनने वाले थे?लपके सोंटा लेके....पूरा मरद बनके दहाड़े... जिस लइका के चलते ई दिन देखना पड़ा उका जीना मरना का?आज ना ई बचेगा,ना आगे कोई रासलीला होगा। अरे जेकर औकात नही सामने खड़ा होवे का उ सब से भी अब इके चलते प्रवचन सुनना पड़ेगा हमको। जिनगी में अपने इज्जत और खानदान के अलावा हम कुछ देखना सुनना पसंद नही किये आज सब मिट्टी में मिल गया।
फाटक...सर्र... सड़ाक...सोंटा बरसने लगा।
 दिखुसवा साँप की तरह देह हाथ उमेठने लगा। बस मुँह से एतना ही बोले जा रहा था.....बाउजी...हो....हमर कोई गलती नही..... अरे ई सब के सब चोर है.....अरे बाप रे...ए सरोज...हम प्रेम किये,कउनो पाप नही.... तुम काहे झूठ बोल गई।
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 बीरबल पकड़ने आया त एक कोहनी में दूर हट गया। बाउजी ऐसे हाथ पैर और सोंटा घुमा रहे थे जैसे अगर ई अंग्रेज के समय होते तो देश को 3 घंटा में आजाद करा लेते।सरपंच सब भी कोना पकड़ लिया। BP के साथ जितना प्रमेय सब गणित में पढ़ के PHD किये सब हमरा गाल से पैर तक सत्यापित कर दिए। चीख-पुकार सुनके छोटकी दौड़ी। बाउजी का तांडव देख सिहर गई। आके हमशे लिपट गई....बाउजी,काहे जल्लाद की तरह किये जा रहे...अरे ई सब के बात में आके जान ले लेंगे का भैया का। ई सब त छिछर है, के नही जानता ई मुखिया और ई भोलन के। आपा-धापी में 3-4 सोंटा उसको भी पड़ गया।
बीरबल नाक पोछते उठा और बाउजी को जोर का धक्का दिया...वो सरपंच सहित मुखिया को लेके लोट गए....बोला भाग दिलखुश...ई बाप नही जल्लाद है।
छोटकी दौड़ के आंगन गई और ईगो जलती संटी ले आई। बोली सब भागो हमरे द्वार से नहीं त आग लगा लूँगी खुद को...पंचायत में खलबली मच गई। भोलन लपका छोटकी को पकड़ने...चिढ़ से छोटकी संटी भोलन के पान खाके ललियाल मुँह पे घुसेड़ दी...उ माई बाप करते भागा।दृश्य देख मुखिया जी ढेंका संभालते कूदे द्वार से और सरपट भागने लगे। सरपंच सब इधर-उधर लपक लिया। बाउजी छोटकी का चंडी रूप देख के धम्म से जमीन पर बैठ गए। 
छोटकी तब तक संटी लेके चंद्रिका रूप में रही जब तक सारा भीड़ वंहा से गायब नही हो गया। अंत मे फफक-फफक के रोते हुए जमीन पे बैठ गई।
भीड़ के साथ ही दिलखुसवा गायब हो गया था। कोई नही देखा उ किधर भागा?
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दिलखुश स्टेशन पे तार-तार हुआ सुबकते हुए पहुंचा। एक मेल एक्सप्रेस के आने का अनाउंसमेंट हो रहा था। छोटी लाइन की गाड़ी धीमे से आकर स्टेशन पे लगी। दिलखुश उसमें सवार हो गया। लगभग बेहोशी के हालात में वो पायदान पकड़ के गेट पे ही बैठ गया। ट्रैन चल पड़ी। उसे नही पता था कहाँ जाना है।वो भागते पेड़,छोटकी का रूप,माँ की यादें सरोज का प्यार और अपने गांव की याद में खोया ट्रैन के साथ भागा जा रहा था।
3 घंटे बाद उसे भूख सी लगी तो उठ अंदर के तरफ गया। एक परिवार समोसा खाने में व्यस्त था। वो नीचे बैठ उसे देखने लगा। सहानुभूतिवश एक बच्चे ने दांत काटा हुआ समोसा उसके तरफ बढ़ा दिया। वो लपक के खाने लगा। खाकर फिर से वाशरूम और गेट के बीच खाली जगह पे लेट गया। 
आंखे तब खुली जब एक सफाईकर्मी ने उसे झकझोरा। वो उठ के इधर-उधर देखने लगा। ट्रैन खाली हो चुका था। वो उठना चाहा, शरीर का पोर-पोर दुख रहा था। किसी तरह स्टेशन पे उतरा। किधर जाए ये सोच असमंजस में पड़ गया। फिर बढ़ते लोगों के साथ हो लिया। स्टेशन से बाहर आ सीढ़ी पे बैठ गया। आगे क्या करे सोचते हुए परेशान होने लगा।
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आज 8 साल बाद वो फिर से ट्रेन में था। किसी जनरल बोगी के पायदान पे नही बल्कि 2rd AC के बर्थ पे। ट्रैन दुबारा उसके जिले के तरफ भाग रही थी। कोल्ड्रिंक का सिप लेते हुए वो सारी पुराने चिन्ह और यादों का पुनराबृति कर रहा था। अब ट्रेनें बड़ी लाइन पे सरपट भागने लगी थी। लोग व्यवस्थित और सलीके में दिखने लगे थे। बीच-बीच मे कॉल रिसीव कर अपने किसी सहकर्मी को दिशानिर्देश देते हुए वो "अपना कल"उपन्यास के पन्ने भी पलट रहा था। उसने बाहर रहते हुए काफी जद्दोजहद की थी। आखिरकार उसका सपना साकार हुआ था। होटल में काम करके जो समय बचत था उसमें पढ़ाई करके PG तक पढ़ लिया। किसी सरकारी जॉब में तो नही जा सका पर एक फर्म जॉइन कर अच्छे रुतबे में जी रहा था।
गाड़ी स्टेशन पे आके रुकी। अपना गॉगल्स आंखों पे चढ़ा वो बाहर निकला। एक ऑटो को अपने गांव के लिए ले चल पड़ा अपने बचपन के स्वर्ग को फिर से देखने,महसूसने और जेहन में पिरोने।
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गांव पहुंच वो एक पल को उदासी में घिर गया। काफी कुछ बदल चुका था। फुस के घर ना के बराबर बचे थे। सड़क ढाल जा चुका था। गाय-बैल दरवाजे पे बंधे नही दिख रहे थे। जगह.जगह बिजली के खंभों पे रोशनी की व्यवस्था थी। कोई इधरे-उधर बैठा ताश खेलता या गप्प मरता नहीं दिकह रह था।वो बढ़के अपने गेट का सांकल खटखटाता है। एक अजनवी सी स्त्री दरवाजा खोलती है। वो आश्चर्य से उसे देखता है। ...आवाज सुनाई देती है"का से मिलना है? मैंने कहा बाउजी से...वो सकपका के पीछे हटती है। 
आवाज सुनके बाउजी निकलते है। एकटक हमको देखते है फिर झपट के हमका सीने से लगा लेते हैं। कुछ देर ऐसे ही खड़े रहते हैं फिर उ स्त्री के तरफ दिखा के बोलते है "ई है तुमरा दूसरी माई
हम आँख-फार फार के दुनु को देखने लगे फिर आगे बढ़ उनका पैर छू लिए।
बाबूजी बताएं कि जब हम चले गए त उसके 3 साल बाद छोटकी का ब्याह,बीरबल से कर दिए उ पानी टंकी में क्लर्क है।  दू गो बाल बच्चा है। शाम को खेलने यंही दलान पे आ जाता है। रोज आके पूछता है मामा कब आएगा विदेश से।छोटकी के बारे में सुनकर अच्छा लगा। छोटकी के जाने के बाद घर एकदम से सुना हो गया,त अपना ख्याल रखना भी मुश्किल हो गया। फिर सबके कहने पे सामाजिकता का काम किये। उ पट्टी में रहने वाली ऐगो बाल विधवा से शादी कर उसको नया जीवन दिए। 
हम उनके तरफ देख के मुस्कुरा दिए। पर एक कसक फिर से चुभने लगी"उ पट्टी", पुल..सरोज?
बाउजी आगे बताएं मुखिया जी को पीलिया हो गया उ गुजर गए। अभी भोलन नवका मुखिया है। उ खुद सरपंच बन गए हैं।
हमरी नवकी माँ हम दोनों के लिए चाय ले आई। चाय पीते हुए हम सरपट पूछ लिए""बाउजी सरोज का क्या हुआ?
वो चाय एक तरफ रखके घर के अंदर गए। आए त हाथ मे 4-5 पन्ना था।
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हमरे हाथ मे रखकर बोले"तुमरे जाने के बाद सरोज को सदमा लगा। भरी पंचायत में डर से झूठ त बोल दी पर तुमरा मार खाने और  उ अंतिम शब्द""तुमका से प्रेम ही त किये पाप नहीं किये सरोज" उ कभी न भूल सकी। उसका दिमागी स्थिति थोड़ा गड़बड़ाने लगा था। रोज उ पट्टी से पुल पार कर ई पट्टी के घाट पे आके बैठ जाती थी। उ त छोटकी माय के वर्षी के दिन उका घाट पे देखी। उ छोटकी के संग एक दिन घर तक आ गई। उका चुनरी में ई सब बंधा हुआ था। छोटकी उसको नहा धुआ चोटी कर दी थी। उ छोटकी को ऐगो अठन्नी देके बोली "मेला में मिठाई खा लेना" बाउजी अठन्नी हमरे हथेली पे रख दिये। 
हम दंग थे।ई वही इंदिरा गांधी छपा हुआ अठन्नी था जो बगीचा में साथ फेरा लेके हम उका दिए थे। हम बाउजी के छाती से लगके फफकने लगे। 
बाउजी हाथ जोड़कर पीछे हटे"रे दिलखुश..रे हमर बच्चा...हमरा माफ कर दो...हमसे बहुत बड़ा पाप हुआ है..हम तुम दोनों के प्रेम को नही समझ सके...हम सरोज को नही पहचान सके...हम बस अपने शान में सब अन्याय कर दिये... उ तुमरे लिए बनी थी....तुम गए त बहुत दिन अपना सांस संजो के तुमरा आस देखी....छोटकी से चोटी बंधवा के जब उ हमको प्रणाम करने दलान पे आई तब हम उसको नजर भर देखे थे...पवित्र मूर्ति थी तुमरा सरोज....हमको बोली थी बाउजी हम हैं ना "छोटकी और आपका देखभाल करेंगे...बस दिलखुश को वापस बुला लीजिये...हमरा सांस रुकने लगता है उका बिन।....फिर उ दुबारा कभी नही आई।
छोटकी बताती थी कि उ धूप में भी पुल पे पाँव लटका बैठी रहती है। कुछ दिन छिप-छिपा के छोटकी उसको खिला आती थी। एक दिन गायब हुई त 4-5 दिन नही दिखी। 5 दिन के बाद उसी पुल पे उ जहर खा के प्राण त्याग दी।..बाउजी माथा पे हाथ रखके...फुटकर रोने लगे।
हम हाथ मे कागज और अठन्नी पकड़े सन्नाटे में खड़े रहे।बस आंसू रुकने का नाम नही ले रहा था।
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खुद को संभाल हम लगभग भागते हुए घाट के तरफ बढ़े। सूरज डूब गया था। लाली भरे रौशनी में हम घाट पर पहुँचे। देखकर दंग रह गए।अब घाट नहीं बचा था। जलकुंभी से धारा भर गया था।कोसी शायद इस धारा से कटने लगी थी। नजर दाहिने तरफ गया। सरकारी पुल बन गया था।फर्राटे से गाड़ियां ई पट्टी,उ पट्टी दौड़ रही थी।कुछ पैदल लोग भी चले जा रहे थे। हम स्वतः सरकारी पुल के तरफ बढ़ गए। काफी ऊंचा और मजबूत था। ऊपर जा किनारे खड़े हो अपने पुल के तरफ देखा। कुछ बांस-बल्ले खड़े थे। दोनों छोड़ ध्वस्त हो गया था। शायद हमरे और सरोज के बिछड़ने का गम नही झेल सका। हम उ पट्टी के घाट के तरफ देखे। बस देखते चले गए शायद सरोज देकची ले फिर से आती दिख जाए। फैलते अंधियारे में ऐसा लगने लगा"सरोज बांहे खोल उ पुल से हमको आवाज दे रही है......हम बस पागल की तरह चीख उठे......स..सर... रोज।अंधेरा छा गया। कुछ भी दिखने दिखाने को ना रह गया.....शेष रहा तो बस एक कहानी।
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रफ्तार से भागती जिंदगी में सरोज,माई, छोटकी,पंचायत,पुल और अपनी प्रेम कहानी को यादों में समेट संजोए रखना मुश्किल हुआ तो इसे पन्नो पे उकेड़ दी। शायद कितनी सरोज कितने दिलखुश और कितने मिटते-अनमिट कहानियों को ये जमीन दे दे।
पर हमरी प्रेम कहानी हमेशा अमिट और यादगार रहेगी।

दिलीप कुमार खाँ"अनपढ़" #हमरी प्रेम कहानी भाग 15(समापन 2)

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ZID 1.15

-Manku Allahabadi ज़िद (भाग-15)
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