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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
जीवन जीना सरल नही था, लेकिन कोई बड़ा नही था । चाचा दादा दादी मौसी , कोई इनमें गैर नही था ।। बच्चों से ही घर भर जाता , खेल कूद में दिन ढ़ल जाता । आते रहते फूफा-फूफी , दीदी जीजा का तो घर था ।। जीवन जीना सरल नही था ...... होते थे त्यौहार निराले । दही जलेबी चूरा वाले । दीपों से था घर-घर रोशन कहीं तिमिर का वास नही था जीवन जीना सरल नही था ... रोज शाम को लगे मंड़ली बाबा बैठे मार कुंड़ली किस्से और कहानी से ही कहीं दर्द का पता नही था जीवन जीना सरल नही था ... मनोरंजन का साधन न था लेकिन प्रेम रतन जो धन था खुशियों का यू रहा आगमन जीवन जीना कठिन नही था ।। ०८/१०/२०२२ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR जीवन जीना सरल नही था, लेकिन कोई बड़ा नही था । चाचा दादा दादी मौसी , कोई इनमें गैर नही था ।। बच्चों से ही घर भर जाता , खेल कूद में दिन ढ़ल ज
Subhasish Pradhan
मैं औरत हूँ... तेरी हवस नहीं ! { CAPTION } ⬇ मैं औरत हूँ... तेरी हवस नहीं मैं औरत हूँ... तेरी हवस नहीं पूछ अपनी माँ से छाती क्या है जो तेरी बचपन में तुझे दूध पिलाया करती थी उससे आज बड़े
Ranjan Kashyap
'मिनी कहानी' वह दरवाज़े पर खड़ी थी। मैं खिड़की के पास खड़ा था। 96. एक ही गाँव के स्कूल में एक ही क्लास में हम दोनों साथ पढ़ा करते थे और वो भी पहली कक्षा से ही। उन दिनों मैं बहुत ही छोटा था मैं अपनी फूफी क