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Rajeshwar Singh Raju
" शरारती लियो " मेरे घर के आंगन में खिले फूलों को वो अक्सर मस्ती में तोड़ जाता है , ग़र मैं रोकू डांटूं उसे तो
Anjali Srivastav
ऋणी हूं ... हां मैं ऋणी हूं मां! तेरे बेटे से व्याह कर हां मैं ऋणी हूं तेरे हर एक एक घर के कोन से जब पहली बार दहलीज पर तेरे, दस्तक दी थी तब तूने ही मुझे अहसास कराया , कि पराई मां भी मां जैसी नही,, असल में मां होती है वो पीली थाप... हल्दी वाले दीवारों पर जब तुमने जड़वाये थे,तब अहसास हुआ कि मैं पराए घर की लक्ष्मी हूं,तब फिर ऋणी हुई थी और तब तो और अच्छा लगा था जब शुरू में कभी तेरे हाथों की बनी रोटी खाती थी थी,और आज भी जब बीमार होती हूं तब भी,फुलकिया देती हो तुम,भले ही त्योरियां चढ़ाकर ही, उन पलों में मुझे तो आभास ही नही होता था, कि मै बहू बनकर आई हूं,,कितना प्यार उड़ेलती हो तुम तब! और मैं भी शुरू शुरू में चिपक जाती थी बात बात पर तुमसे! मै तो अपनी मां भूल गई थी जेहन से सच में मां तेरी ऋणी हूं और रहूंगी,जरूरी नहीं है कि बात बात पर हर ऋण गिनाती रहूं,जब कभी तू क्रोधित हो जाए तो मुझपर, खीझना मत नही तो मैं बिखर जाऊंगी क्योंकि तुमसे मुझे नया परिवार नया संसार मिला है तेरी ऋणी मै जन्मों जन्मांतर रहूंगी,, भले ही हर्फो से न बयां कर पाऊं.. मां! हां मैं बेशक ऋणी हूं पर एक दिन तू कह दी न कभी कभी, खीझ कर मुझे कहती कि पराए घर की लडकी है , अहसान फरामोश, पराई अपनी नही हो सकती पर मां पराई तो हूं,अपनी उस देवकी की जिसने जन्म दिया,और तू तो यशोदा है मेरी मै तो तुम दोनों की ऋणी हूं,जिसका ऋण कभी अदा न कर पाऊंगी,सदियों तक! बस यही कहूंगी कविता में कभी मैं यदि न रहूं तो,ये कविता पढ़ लेना भीगो लेना पलकों को अपने बहू नही बेटी कहकर,डायरी को सीने से दबोच लेना बस मां! यही कर लेना! अंजली श्रीवास्तव ""अंजलि"" ©Anjali Srivastav ऋणी हूं ... हां मैं ऋणी हूं मां! तेरे बेटे से व्याह कर हां मैं ऋणी हूं तेरे हर एक एक घर के कोन से