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Madanmohan Thakur (मैत्रेय)
बालम रे ना मचलो-ना मचलो,ऐसे इश्कन के दरिया में जल जाएगी! अबनाम भी लो,थाम भी लो,ऐसे किस्मत की राहें बदल ही जाएगी!! तू अंजान ना बन,महेमान मेरे,दिल राह तके तू ही है अंजाम मेरे! ऐसी चाहतकी टेढीमेढी राहें हैं,महबूब की गाङी निकल ही जाएगी!! महबूबा-महबूबा तेरी कमर कटिली है,तू अजी ऐसे फिर तो बलखाए! तू नागन सी बनकर सपनों में डँस जाए,ऐसे तस्वीर बदल ही जाएगी! तेरे सोहबत का असर है ऐसा,मैं मजनु हूं तू कब बनेगी मेरी लैला! मेरा इश्क तूफान सा है तेरे चाहत में,ऐसेमें बालम मचल ही जाएगी!! बालम रे-बालम रे तू मेरी भोली-भाली लैला,मैं ने तेरा बनना छैला! मैं इश्क की काँफी पी ली पहला,तू मचले जो ऐसे तो खल जाएगी!! तू मचलो ना-मचलो ना,बैरन रे अभी चाहत की दरिया पार है करना! आ जा-आ भी जा क्यों दूर है तू,माही रे ऐसे मेम किधर तू जाएगी!! बालम रे-बालम ना मचलो तुम ऐसे,तू तूफानी बहती नदिया के जैसे! मैं इश्क का बना जोगिया,ऐसे चाहत की गर्मी से पिघल ही जाएगी!! बालम रे ना मचलो-ना मचलो KARUNESH Khalid Waseem Abhishek Bhardwaj रोहित तिवारी ।
KUMARI USHA AMBEDKAR
जनाब वक़्त से न मचलो, वक्त किसी का नही होता, वक्त कभी जमीन के अन्दर, दबा देता है,तो कभी आसमान छुला देता है, वक़्त की ये हस्ती है हर किसी को रुला देता है। उषा अम्बेडकर ©KUMARI USHA AMBEDKAR वक्त से न मचलो #parent
motivational writter Surendra kumar bharti
रात से रिश्ता ना रक्खो ये बस डराता है समझों उजाले की कीमत जो हर पल साथ निभाता है रात टिमटिमाते तारों से देता धोखा है अरे समझों उजाले की कीमत जो खुद को बनाने का हर पल देता मौका है यूं तो अंधेरा भी बड़ा हसीन है कभी कभी अंधेरा भी उजाले से खूबसूरत लगता है लेकिन जब होती है उजाले की एंट्री तो अंधेरा भी डूब जाता है ©Surendra kumar bharti रात#रात
KK क्षत्राणी
क्यु रात मे ही हमे सपने याद आते हैं तारो की तरफ देख कर अपने याद आते हैं जिंदगी रोशनी मे कहा जाती है दिन मे अपने चहरे छुपाय जाते हैं ©KK क्षत्राणी रात बड़ी रात
DR. LAVKESH GANDHI
वो रात क्या वो रात थी क्या वो बात थी रात कट जाती थी बात ख़त्म नहीं होती मगर अब तो सारी रात कट जाती है कोई बात नहीं होती वो रात # बात # रात #
दीप बोधि
सूर्य की लालिमा जा चूकी थी। रात की कालिमा छा चूकी थी। घनघोर तिमिर छाया हुआ था। पक्षी अपने आशियाने में थे। कुत्ते भौंक रहे थे,पहरा दे रहे थे। मै गहरी नींद में सोया हुआ था। सपने में बातें कर रहा था रात से। पूछ रहा था उसकी कहानी रात से। बोली-मैं आती हूं आलोक भाग जाता है। चारों और मेरा ही साया छा जाता है। मैं विवश हूं नहीं मिल पाती दिन से। लोगों को काम से आराम दिलाती दिन से। रवि,होता मेरे अधीन कुछ नहीं कर पाता। विश्व!पर मेरा ही शासन चलता। चंद्रमा मेरे पीछे पीछे है आता। अपनी दूधिया रोशनी में मुझे नहलाता। मै खो जाती हूं,उसकी चांदनी के साथ। मुझे निहारते तुम चांदनी के साथ। सोचते रहते न जाने क्या! तुम अपनी यादों के साथ। फिर मै, मजबूर हो जाती हू जाने को। अपनी अगली कहानी गढ़ने को। सोचती हूं,थकी हूं,अब आराम करूं। मस्टर का रात में बोलना। बच्चे की शिशकियों का मूंह खोलना। अब रूकूं ना चली जाऊं,बेचारे दिन को आजाद करू। मेरा अहसान मानो, तुमको दिलाती हूं चैन। फिर भी लोग डरते हैं हाय!क्या!है ये रैन। मै डराती हूं,सूलाती हूं,जगाती हू। जब नींद नहीं आती,रात आ जाती है। ले जाती है छत पर टिमटिमाते तारों की सैर कराती है। ©Kumar Deep Bodhi #रात "रात की कहानी
Arora PR
मेरी तो हर रात रात क़ी तरह और हर दिन. भी रात क़ी तरह गुज़र जाता हैँ पता हीं नहीं लगता कब दिन निकला कब धूप निकली थीं.और कब सांझ को झील पर खूबसूरती उत्तरी थीं ©Arora PR रात रात क़ी तरह
jyoti
इसी कशमकश में रात गुजर जाती है जाने नींद कब आ जाती है सोचती हूं कि क्या वजूद है मेरा मन करता है जिउं या मरू चांद भी सो जाता है चांदनी के आंचल में रात संग में रोती रहती हूं अपने ही दायरे में ना जाने कब सो पाऊंगी प्रकृति के आंचल में जहां मेरा वजूद मिले मुझे। #मेरी रात रात के संग