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maahi banarasi
gokul
*UNCLE* please read caption...... उम्र पचास पार है शक्ल हमारी तीस के जैसी मुझको UNCLE कहने वालों धत्त तुम्हारी ऐसी की तैसी।। बेटे के कॉलेज गया तो
Arti Upadhyay
मन ही मन हम उस शख्स को सोचने लगे हैं , उसके ख्यालों में खोने लगे हैं ; फिर एक ख्याल आया , धत्त ये क्या सोचने लगे हैं ; जो अपना है ही नही क्यों ही हम उसके होने लगे हैं। ©Arti Upadhyay मन ही मन हम उस शख्स को सोचने लगे हैं , उसके ख्यालों में खोने लगे हैं ; फिर एक ख्याल आया , धत्त ये क्या सोचने लगे हैं ; जो अपना है ही नही क्य
yogesh atmaram ambawale
धत्त... ए कोशिश भी नाकाम रही, समझता ही नहीं बेकदर.. दिल की बात फिर दिल में ही रही| OPEN FOR COLLAB✨ #ATgirlbg549 • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ✨ Collab with your soulful words.✨ • Must use hashtag: #aestheticthou
Kulbhushan Arora
Happy New Year आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं आज साल का पहला दिन No class today जाओ मौज करो सब आपकी छोटी*आनंदी* #yqछोटी_आनंदी_की_ बड़ी_बातें आज सब खूब मौज मनाओ, कल से करेंगे पढ़ाई.... नानू का एक पसंदीदा शेर सुनो सब रास्ता पुरपेच है और हमसफ़र कोई नहीं
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
Nature Quotes चाहते चाहते कब जुदा कर दिया उसने, पता भी न चला कब विदा कर दिया उसने.... बदल बदलकर लहजा,कुर्बत को भी मिटा दिया उसने, के दोगली अदा से चाहत को धत्ता बता दिया उसने.... अब उसके इश्क की छुअन भी कुछ अलहदा सी है, "शमा" की मासूम चाहत को भी वफा न दिया उसने.... #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #NatureQuotes चाहते चाहते कब जुदा कर दिया उसने,पता भी न चला कब विदा कर दिया उसने.... बदल बदलकर लहजा, कुर्बत को भी मिटा दिया उसने,के दोगली अ
Sumit Upadhyay
क्रांति के कुछ देवता सब लुटाकर वतन पर चले गए इस लिए नही कि हम जाति धर्म के नाम पर मुल्क के टुकड़े कर दें । एक दूसरे की पीठ में छूरा भोंक दें।
Dilkash Wakeel
~ चलो घास की एक छतरी बुने... हरी हरी घाँस। कुछ छोटे छोटे फूलो वाली घाँस ! छतरी की डंडी हो इस छोटे से गुलाब के पौधे की जो इस समय यहाँ पर उगा है, घाँस की छतरी, गुलाब की टहनी की डंडी वाली । जिसे जब भी मै ऊपर तान कर चलू, मकानो के छज्जो पे खड़े लोग ईर्ष्या करे इससे क्यूंकि उनके पास जो नहीं। काश ये घाँस, कभी न सूखे, गुलाब की टहनी हमेशा हरी रहे. और वो छोटे छोटे फूल कभी न झड़े कितना अच्छा हो अगर ऐसा हो तो पर इतना कुछ सोचने पर मन में आनंद और दुःख भरी व्यग्रता समान मात्रा में क्यूँ आ रही है ? विचार आता है की "काश मुझे ये करना ही ना पड़ता, क्यू बनाई मैंने घाँस की छतरी ? और क्यूँ आशावान हुँ ? कि ये कभी ना सूखे। बताऊ क्यूँ ? समय रहते अगर मैंने उस जगह से घाँस और पौधे ना हटाये होते, तो रौंद दिये जाते, बड़ी बेदर्दी से। बेदर्दी ? मन ने कहा, पौधों को दर्द थोड़े ना होता है ! फिर हँसा वो ! मन तो किया की बताऊ, मन को क्या .. ..... More in caption ~ शहज़ाद अख्तर वकील #yqbaba ..... .... मन तो किया की बताऊ, मन को क्या होता है दर्द ! आज उसी जगह पर एक गगनचुम्बी इमारत है, जिसके नीचे से, जब भी मै अपनी घाँस क
chirag mittal
जी बहुत हुआ अब यू सताना बंद कीजिए!!! (Another poem by me read in caption) 👇 जी बहुत हुआ अब यू सताना बंद कीजिए नज़रें मिलाकर दिल चुराना फिर यू हस के भाग जाना जी बहुत हुआ अब यू सताना बंद कीजिए!! हमारे घर आके मम्