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Banarasi..
Ankur tiwari
बेटियां चिड़ियों सी चहक होती हैं उनमें कोयल सी राग गाती हैं घर आंगन खुशियों से भर जाता है जब बेटियां जन्म ले आती हैं माना कि कुछ लोगो को पसंद नही वो फिर भी वो हसती खिलखिलाती है बेटियां होती हैं उस पीपल की छाव सी जो बिन पानी दिए भी उगती है और जी जाती हैं ©Ankur tiwari #aaina बेटियां चिड़ियों सी चहक होती हैं उनमें कोयल सी राग गाती हैं घर आंगन खुशियों से भर जाता है जब बेटियां जन्म ले आती हैं माना कि कु
Sandeep Lucky Guru
White जो पसंद हो खुद को वही राग ढूँढ़ता है ज़माना अक्सर किरदार में दाग ढूँढता है ©Sandeep Lucky Guru ll जो पसंद हो खुद को वही राग ढूँढ़ता है ll #Comment #shree #Like #Google #Nojoto #sandeeplguru #motivatation #shyari #Love #Sad_Status
Shaarang Deepak
Banarasi..
राग नही ये आग है जलता कड़वाहट का प्रयाग है। शुद्धता को पाने के चक्कर में अनवरत जल रही ये आग है। ©Banarasi.. राग नही ये आग है जलता कड़वाहट का प्रयाग है। शुद्धता को पाने के चक्कर में अनवरत जल रही ये आग है। #Poetry #sayari #Love #Quote #Nojoto
Yogi Sonu
भारत के सोलह संस्कार जन्म से मृत्यु तक परिवर्तन की आंधी में भी सत्यम शिवम् सुंदर को लिए खड़ी है अपने सभी राग द्वेष को त्याग्ते हुए प्रभू के धाम पहुंचने तक की यात्रा शून्य से शून्य तक की यात्रा । ©Yogi Sonu #Holi भारत के सोलह संस्कार जन्म से मृत्यु तक परिवर्तन की आंधी में भी सत्यम शिवम् सुंदर को लिए खड़ी है अपने सभी राग द्वेष को त्याग्ते हुए प्र
अदनासा-
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सुन रघुवर के रूप हैं । शरण चला जा उनके प्यारे , वह भी तेरे भूप हैं ।। मन को अपने आज सँभालो , उलझ गया है बाट में । सारे तीरथ मन के होते , जो है गंगा घाट में ।। तन के वस्त्र नहीं मिलते तो, लिपटा रह तू टाट में । आ जायेगी नींद तुझे भी , सुन ले टूटी खाट में ।। जितनी मन्नत माँग रहे हो , जाकर तुम दरगाह में । उतनी सेवा दीन दुखी की , जाकर कर दो राह में ।। सुनो दौड़ आयेंगी खुशियाँ , बस इतनी परवाह में । मत ले उनकी आज परीक्षा , वो हैं कितनी थाह में ।। जीवन में खुशियों का मेला , आता मन को मार के । दूजा कर्म हमेशा देता , सुन खुशियां उपहार के ।। जीवन की भागा दौड़ी में , बैठो मत तुम हार के । यही सीढ़ियां ऊपर जाएं , देखो नित संसार के ।। २८/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सु