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kirparam जाट
न हारेंगे हम हौसला इस बात की तसल्ली रखिए , जो यूहीं मिट जाना होता, तो कब के मिट गए होते...!! जय वीर तेजाजी
मदन कोथुनियां
क्या कारण है कि अहमदाबाद से चलकर आए स्वामी दयानंद ने पंडितों के चरणों में नतमस्तक मारवाड़ के जाटों को कुछ नहीं कहा और सीधा शेखावाटी और हरियाणा में पहुंच गया❓ दयानंद भलीभांति जानता था कि भारत की प्रमुख किसान कौम प्रकृति प्रेमी जाटों को लंबे समय तक पंडितों का अंधअनुयायी और गुलाम बनाए रखना मुश्किल है। इससे पहले अतीत में भारत के सबसे उपजाऊ कृषि क्षेत्र पंजाब तथा सिंध के जाट अंधविश्वास और पाखंड से परेशान होकर मुसलमान बन गए थे। शेष बचे पूर्वी पंजाब के जाटों ने भी पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ अलख जगा रहे नानक साहब को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। दयानंद को जब यह समाचार मिला कि हरियाणा और शेखावाटी के जाट भी धीरे धीरे नानक साहब की शिष्य (सिख) परंपरा में दीक्षित हो रहे हैं। मूर्ति पूजा अंधविश्वास और पाखंड के विरोध के अपने अभियान में दयानंद सिरोही जोधपुर और नागौर के रास्ते चलता हुआ सीधा सीकर पहुंचा। मूर्ति पूजा के पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ आंदोलन चला रहे दयानंद ने मारवाड़ में हो रहे तत्कालीन मूर्तिपूजा पाखंड और अंधविश्वास का विरोध इसलिए नहीं किया कि यहां का किसान पंडितों के चरणों में नतमस्तक था। दयानंद को आभास हो गया था कि पाखंड और अंधविश्वास में डूबा मारवाड़ का किसान पंडितों की गुलामी को अपनी शान समझता है। अर्थात उन दिनों मारवाड़ के किसानों के सिख धर्म स्वीकार करने की कोई संभावना नहीं थी। दयानंद ने शेखावाटी और हरियाणा के किसानों को सिख धर्म में दीक्षित होने से रोकने के लिए क्षेत्र के किसान को अपनी प्रमुख कृति सत्यार्थ प्रकाश में "जाट देवता" के रूप में परिभाषित किया। सिख धर्म में किसान पंडित पुरोहित अथवा पुजारी के खुद अपने गुरुद्वारे का मुखिया होता था। अतः स्वामी दयानंद पंडित पुरोहितों के पाखंड और अंधविश्वास की कड़ी निंदा करते हुए किसानों को यज्ञोपवित धारण करवा कर उन्हें जाट देवता घोषित किया। किसानों को कहा कि अब तुम्हें अपने किसी भी पावन कार्यों में पंडितों को आमंत्रित करने की आवश्यकता नहीं। स्वयं किसानों को मंत्रोचार की दीक्षा दी। इस प्रकार दयानंद अपने सजातीय पंडितों को लताड़ते हुए पंजाब और दोआब के बीच के इस कृषि क्षेत्र के जाटों को सिख धर्म में दीक्षित होने से रोककर भविष्य में ब्राह्मणों का गुलाम बनाने के लिए पंडिताई के कार्यों में दीक्षित किया। आज पूरे उत्तर भारत में मारवाड़ का जाट अकेली ऐसी पाखंडी और अंधविश्वासी कौम है जो पंडितों के चरणों में साष्टांग दंडवत है। पूरे उत्तर भारत में तेजाजी का बलिदान स्थल स्मारक एकमात्र ऐसा स्थान है जहां पर स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है। जहां पुजारियों ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी अंदर जाने से रोका था। आश्चर्य होता है कि तेजाजी ने लाछां गुजरी की गायों को लाने में अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर दलित जाति की उनकी धर्म बहिन बूंगरी ने भी प्राण त्याग दिए थे। कैसी विडंबना है कि आज तेजाजी को आदर्श मानने वाले महिलाओं को उनके स्मारक में जाने की अनुमति नहीं देते। अभी हाल ही में आईपीएस दिलीप जी जाखड़ के परिवार की महिलाओं ने पहली बार इस पर अपनी आपत्ती जाहिर की। इस संबंध में वरिष्ठ आईपीएस तथा ACB जयपुर में डीआईजी दिलीप जी जाखड़ के सात सवाल 👇 तेजाजी के बलिदान स्थल पर बने स्मारक की इस 👇कमेटी में इसकी बानगी देखी जा सकती है। जय वीर तेजाजी