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श्री कृष्ण का धृतराष्ट्र को फटकार कर उनका क्रोध शान्त करना और धृतराष्ट्र का पाण्डवों को हृदय से लगाना पढ़िए महाभारत !! 📝📝 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व द्वादश अध्याय: श्लोक 1-17 :- श्री कृष्ण का धृतराष्ट्र को फटकार कर उनका क्रोध शान्त करना और धृतराष्ट्र का पाण्डवों को हृदय से लगाना. 📙 वैशम्पायन उवाच वैशम्पायन जी कहते हैं -राजन्! तदनन्तर सेवक-गण शौच-सम्बन्धी कार्य सम्पन्न कराने के लिय राजा धृतराष्ट्र-की सेवा में उपस्थित हुए। जब वे शौच कृत्य पूर्ण कर चुके, तब भगवान मधुसुदन ने फिर उनसे कहा-राजन! आपने वेदों और नाना प्रकार के शास्त्रों का अध्ययन किया है। सभी पुराणों और केवल राजधर्मों का भी श्रवण किया है। 📙 ऐसे विद्वान, परम बुद्धिमान् और बलाबल का निर्णय करने में समर्थ होकर भी अपने ही अपराध से होने वाले इस विनाश को देखकर आप ऐसा क्रोध क्यों कर रहे हैं ? भरतनन्दन! मैंने तो उसी समय आपसे यह बात कह दी थी, भीष्म, द्रोणाचार्य, विदुर और संजय ने भी आपको समझाया था। राजन्! परंतु आपने किसी की बात नहीं मानी। 📙 कुरुनन्दन! हम लोगों ने आपको बहुत रोका; परंतु आपने बल और शौर्य में पाण्डवोंको बढा-चढ़ा जानकर भी हमारा कहना नहीं माना। जिसकी बुद्धि स्थिर है, ऐसा जो राजा स्वयं दोषों को देखता और देश-काल के विभाग को समझता है, वह परम कल्याण का भागी होता है। 📙 जो हित की बात बताने पर भी हिता हित की बातको नहीं समझ पाता, वह अन्याय का आश्रय ले बड़ी भारी विपत्तिbमें पड़कर शोक करता है। भरत नन्दन! आप अपनी ओर तो देखिये। आपका बर्ताव सदा ही न्याय के विपरीत रहा है। राजन्! आप अपने मन को वश में न करके सदा दुर्योधन के अधीन रहे हैं। अपने ही अपराध से विपत्ती में पड़कर आप भीमसेन को क्यों मार डालना चाहते हैं? 📙 इसलिये क्रोधको रोकिये और अपने दुष्कर्मोंको याद कीजिये। जिस नीच दुर्योधन ने मनमें जलन रखनेके कारण पात्र्चाल राजकुमारी कृष्णाको भरी सभामें बुलाकर अपमानित किया, उसे वैरका बदला लेनेकी इच्छासे भीमसेनने मार डाला। आप अपने और दुरात्मा पुत्र दुर्योधनके उस अत्याचारपर तो दृष्टि डालिये, जब कि बिना किसी अपराधके ही आपने पाण्डवों का परित्याग कर दिया था। 📙 वैशम्पायन उवाच वैशम्पाचनजी कहते हैं – नरेश्वर! जब इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण ने सब सच्ची-सच्ची बातें कह डालीं, तब पृथ्वी पति धृतराष्ट्र ने देवकी नन्दन श्रीकृष्ण से कहा- महाबाहु! माधव! आप जैसा कह रहे हैं, ठीक ऐसी ही बात है; परतु पुत्र का स्नेह प्रबल होता है, जिसने मुझे धैर्य से विचलित कर दिया था। 📙 श्रीकृष्ण! सौभग्य की बात है कि आपसे सुरक्षित होकर बलवान् सत्य पराक्रमी पुरुष सिंह भीमसेन मेरी दोनों भुजाओं- के बीच में नही आये। माधव! अब इस समय मैं शान्त हूँ। मेरा क्रोध उतर गया है, और चिन्ता भी दूर हो गयी है अत: मैं मध्यम पाण्डव वीर अर्जुन को देखना चाहता हूँ। समस्त राजाओं तथा अपने पुत्रों के मारे जाने पर अब मेरा प्रेम और हित चिन्तन पाण्डु के इन पुत्रों पर ही आश्रित है। 📙 तदनन्तर रोते हुए धृतराष्ट्र ने सुन्दर शरीर वाले भीमसेन, अर्जुन तथा माद्री के दोनों पुत्र नरवीर नकुल-सहदेव को अपने अगों से लगाया और उन्हें सान्तवना देकर कहा – तुम्हारा कल्याण हो। 📙 इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्व के अन्तर्गत जल प्रदानिक पर्व में धृतराष्ट्र का क्रोध छोड़कर पाण्डवों को हृदयसे लगाना नामक तेरहवॉं अध्याय पूरा हुआ। N S Yadav .... ©N S Yadav GoldMine #gururavidas श्री कृष्ण का धृतराष्ट्र को फटकार कर उनका क्रोध शान्त करना और धृतराष्ट्र का पाण्डवों को हृदय से लगाना पढ़िए महाभारत !! 📝📝
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द्रोर्ण को चिता पर रखकर वे वेदमंत्र पढ़ते और रोते हैं पढ़िए महाभारत !! 📄📄 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 38-42 {Bolo Ji Radhey Radhey}📒 विधि पूर्वक अग्नि की स्थापना करके चिता को सब ओर से प्रज्वलित कर दिया गया है और उस पर द्रोणाचार्य के शरीर को रखकर साम-गान करने वाले ब्राम्हण त्रिवेद साम का गान करते हैं। 📒 माधव। इन जटाधारी ब्रम्हचारियों ने धनुष, शक्ति, रथ की बैठक और नाना प्रकार बाण तथा अन्य आवष्यक वस्तुओं से उस चिता का निमार्ण किया। 📒 वे उसी महान् तेजस्वी द्रोर्ण को जलाना चाहते थे; इसलिये द्रोर्ण को चिता पर रखकर वे वेदमंत्र पढते और रोते हैं, कुछ लोग अन्त समय में उपयोगी त्रिवेद सामों का गान करते हैं। 📒 चिता की अग्नि में अग्नि होत्र सहित द्रोणाचार्य को रखकर उनकी आहुति दे उन्हीं के षिष्य द्विजातिगण कृपी को आगे और चिता को दायें करके गंगाजी के तट की ओर जा रहे हैं। ©N S Yadav GoldMine #merasheher द्रोर्ण को चिता पर रखकर वे वेदमंत्र पढ़ते और रोते हैं पढ़िए महाभारत !! 📄📄 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविं
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परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। पढ़िए महाभारत !! 📒📒महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 19-37 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 इन गंगानन्दन भीष्म ने रूई भरा हुआ तकिया नहीं लिया है। इन्होंने तो गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है। माधव। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए महा यश स्वी नेष्ठिक ब्रम्हचारी ये शांतनुनन्दन भीष्म जिनकी युद्ध में कहीं तुलना नहीं है, यहां सो रहे हैं। 📜 तात। ये धर्मात्मा और सर्वज्ञ हैं परलोक और यह लोक सम्बन्धी ज्ञान द्वारा सभी आध्यामिक प्रष्नों का निर्णय करने में समर्थ हैं तथा मनुष्य होने पर भी देवता के तुल्य हैं; इन्होंने अभी तक अपने प्राण धारण कर रखे हैं। 📜 जब ये शान्तनुनन्दन भीष्म भी आज शत्रुओं के बाणों से मारे जाकर सो रहे हैं तो यही कहना पड़ता है कि युद्ध में न कोई कुषल है, न कोई विद्वान् है और न पराक्रमी ही है। पाण्डवों के पूछने पर इन धर्मज्ञ एवं सत्यवादी शूरवीर ने स्वयं ही अपनी मृत्यु का उपाय बता दिया था। 📜 जिन्होंने नष्ट हुए कुरूवंष का पुनः उद्धार किया था, वे ही परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। इन देवतुल्य नरश्रेष्ठ देवव्रत के स्वर्गलोक में चले जाने पर अब कौरव किसके पास जाकर धर्मविषयक प्रष्न करेंगे। जो अर्जुन के षिक्षक, सात्यकि के आचार्य तथा कौरवों के श्रेष्ठ गुरू थे, वे द्रोणाचार्य रणभूमि में गिरे हुए हैं, उन्हें भी देख लो। 📜 माधव। जैसे देवराज इन्द्र अथवा महापराक्रमी परषुराम जी चार प्रकार की अस्त्रविद्या को जानते हैं उसी प्रकार द्रोणाचार्य भी जानते थे। जिनके के प्रसाद से पाण्डुनन्दन अर्जुन ने दुष्कर कर्म किया है, वे ही आचार्य यहां मरे पड़े हैं। उन अस्त्रों ने इनकी रक्षा नहीं की। 📜 जिनको आगे रखकर कौरव पाण्डवों को ललकारा करते थे, वे ही शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य शस्त्रों क्षत-विक्षत हो गये हैं। शत्रुओं की सेना को दग्ध करते समय जिनकी गति अग्नि के समान होती थी, वे ही वुझी हुई लपटों वाली आग के समान मरकर पृथ्वी पर पड़े हैं। 📜 माधव। युद्ध में मारे जाने पर भी द्राणाचार्य के धनुष के साथ जुड़ी हुई मुट्ठी ढीली नहीं हुई है। दस्ताना भी ज्यों का त्यों दिखाई देता है, मानो वह जीवित पुरुष के हाथों हो। केशव। जैसे पूर्व काल से ही प्रजापति ब्रम्ह से वेद कभी अलग नहीं हुए, उसी प्रकार जिन शूरवीर द्रोर्ण से चारों वेद और सम्पूर्ण अस्त्र-षस्त्र कभी दूर नहीं हुए, 📜 उन्हीं के बन्दीजनों के द्वारा वन्दित इन दोनों सुन्दर एवं वन्दनीय चरणारविन्दों को जिनकी सैकड़ों षिष्य पूजा कर चुके हैं, गीदड़ घसीट रहे हैं। मधुसूदन। द्रुपदपुत्र के द्वारा मारे गये द्रोणाचार्य के पास उनकी पत्नी कृपी बड़े दीनभाव से बैठी है। 📜 दु:ख से उसकी चेतना लुप्त सी हो गयी है। देखो, कृपी केष खोले नीचे मूंह किये राती हुई अपने मारे गये पति शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य की उपासना पर रही है। केशव। ध्रष्टद्युम्न ने अपने बाणों से जिन आचार्य द्रोर्ण का कवच छिन्न-भिन्न कर दिया है, उन्हीं के पास युद्धस्थल में वह जटाधारिणी ब्रम्हचारिणी कृपी वैठी हुई है। 📜 शोक से दीन और आतुर हुई यश स्वनी सुकुमारी कृपी समर में मारे गये पति देव का प्रेत कर्म करने की चेष्टा कर रही है। ©N S Yadav GoldMine #SunSet परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। पढ़िए महाभारत !! 📒📒महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 19-37 {
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उन समस्त श्रेष्ठ महारथियों के मन मैं उस समय क्या दशा हुई थी वीर ! पढ़िए महाभारत !! 📖📖 महाभारत: स्त्री पर्व विंष अध्याय: श्लोक 18-35 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 उन क्रूरकर्मा कृपाचार्य, कर्ण और जयद्रथ को धिक्कार है, द्रोणाचार्य और उनके पुत्र को भी धिक्कार है। जिन्होंने मुझे इसी उम्र में विधवा बना दिया। आप बालक थे और अकेले युद्ध कर रहे थे तो भी मुझे दु:ख देने के लिये जिन लोगों ने मिलकर आपको मारा था, उन समस्त श्रेष्ठ महारथियों के मन उस समय क्या दशा हुई थी? वीर। 📜 आप पाण्डवों और पान्चालों के देखते-देखते सनाथ होते हुए भी अनाथ की भांति कैसे मारे गये। आपको युद्धस्थल में बहुत से महारथियों द्वारा मारा गया देख आपके पिता पुरुषसिंह वीर पाण्डव कैसे जी रहे हैं? कमलनयन। प्राणेष्वर। पाण्डवों को यह विशाल राज्य मिल गया है, उन्होंने शत्रुओं को जो पराजित कर दिया है, यह सब कुछ आपके बिना उन्हें प्रसन्न नहीं कर सकेगा। 📜 आर्यपुत्र। आपके शस्त्रों द्वारा जीते हुए पुण्य लोकों में मैं भी धर्म और इन्द्रिय संयम के बल से शीघ्र ही आऊंगी। आप वहां मेरी राह देखिये। जान पड़ता है कि मृत्यु काल आये बिना किसी का भी मरना अत्यन्त कठिन है, तभी तो मैं अभागिनी आप को युद्ध में मारा गया देखकर भी अबतक जी रही हूं। 📜 नरश्रेष्ठ। आप पितृलोक में जाकर इस समय मेरी भी तरह दूसरी किस स्त्री को मन्द मुस्कान के साथ मीठी वाणी द्वारा बलायेंगे? निश्चय ही स्वर्ग में जाकर आप अपने सुन्दर रूप और मन्द मुस्कान युक्त मधुर वाणी के द्वारा वहां की अप्सराओं के मन को मथ डालेंगे। 📜 सुभद्रानन्दन। आप पुण्य आत्माओं के लोकों में जाकर अप्सराओं के साथ मिलकर विहार करते समय मेरे शुभ कर्मों का भी स्मरण किजियेगा। वीरं इस लोक में तो मेरे साथ आपका कुल छह महिनों तक ही सहवास रहा है। सातवें महिने में ही आप वीरगति को प्राप्त हो गये। 📜 इस तरह की बातें कहकर दु:ख में डूवी हुई इस उत्तरा को जिसका सारा संकल्प मिट्टी में मिल गया है, मत्स्य राज विराट के कुल की स्त्रियां खींचकर दूर ले जा रही हैं। शोक से आतुर ही उत्तरा को खींचकर अत्यंत आर्त हुई वे स्त्रियां राजा विराट को मारा गया देख स्वंय भी चीखने और विलाप करने लगी हैं। 📜 द्रोणाचार्य के बाणों से छिन्न-भिन्न हो खून से लथपथ होकर रणभूमि में पड़े हुए राजा विराट को ये गीध, गीदड़ और कौऐ लौंच रहे हैं। विराट को उन विहंगमों द्वारा लौंचे जाते देख कजरारी आंखों वाली उनकी रानियां आतुत हो होकर उन्हें हटाने की चेष्टा करती हैं पर हटा नहीं पाती हैं। 📜 इन युवतियों के मुखार बिन्दु धूप से तप गये हैं, आयास और परिश्रम से उनके रंग फीके पड़ गये हैं। माधव। उत्तर, अभिमन्यु, काम्बोज निवासी सुदक्षिण और सुन्दर दिखाई देने वाले लक्ष्मण- ये सभी बालक थे। इन मारेगये बालकों को देखो। युद्ध के मुहाने पर सोए हुए परम सुन्दर कुमार लक्ष्मण पर भी दृष्टिपात करो। ©N S Yadav GoldMine #GarajteBaadal उन समस्त श्रेष्ठ महारथियों के मन मैं उस समय क्या दशा हुई थी वीर ! पढ़िए महाभारत !! 📖📖 महाभारत: स्त्री पर्व विंष अध्याय: श्लो
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राजा धृतराष्ट्र उस लोहमय भीमसेन को ही असली भीम समझा और उसे दोनों बॉंहो से दबाकर तोड़ डाला पढ़िए महाभारत !! 📔📔 महाभारत: स्त्री पर्व द्वादश अध्याय: श्लोक 1-23 पाण्डवों का धृतराष्ट्र से मिलना, धृतराष्ट्र के द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा का भडग्.होना और शोक करनेपर श्री कृष्ण का उन्हें समझाना.{Bolo Ji Radhey Radhey} 🌷वैशम्पायन उवाच वैशम्पायनजी कहते हैं-महाराज जनमेजय ! समस्त सेनाओंका संहार हो जानेपर धर्मराज युधिष्ठरने जब सुना कि हमारे बूढ़े ताऊ संग्राममें मरे हुए वीरोंका अन्तयेष्टिकर्म कराने के लिये हस्तिनापुर चल दियें हैं, तब वे स्वयं पुत्रशोक से आतुर हो पुत्रोंके ही शोकमें डूबकर चिन्तामग्न हुए राजा धृतराष्ट् के पास अपने सब भाइयोंके साथ गये। उस समय दशार्हकुलनन्दन वीर महात्मा श्रीकृष्ण, सात्यकि और युयुत्सु भी उनके पीछे-पीछे गये। 🌷अत्यन्त दु:खसे आतुर और शोकसे दुबली हुई द्रौपदीने भी वहॉं आयी हुई पत्र्चाल- महिलाओं के साथ उनका अनु-सरण किया। भरतश्रेष्ठ ! गड्गातटपर पहुँचकर युधिष्ठरने कुररीकी तरह आर्तस्वरसे विलाप करती हुई स्त्रियोंके कई दल देखे । वहॉं पाण्डवों के प्रिय और अप्रिय जनोंके लिय हाथ उठाकर आर्तस्वरसे रोती और करुण क्रनदन करती हुई सहस्त्रों महिलाओंने राज युधिष्ठिरको चारों ओरसे घेर लिया। 🌷वे बोलीं – अहो ! राजाकी वह धर्मज्ञता और दयालुता कहॉं चली गयी कि इन्होंने ताऊ, चाचा, भाई, गुरुपुत्रों ओर मित्रोंका भी वध कर डाला। महाबाहो ! द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और जयद्रथका भी वध करके आपके मनकी कैसी अवस्था हुई ? भरतवंशी नरेश ! अपने ताऊ, चाचा और भाइयोंको, दुर्जय वीर अभिमन्युको तथा द्रौपदीके सभी पुत्रोंकोन देखनेपर इस राज्यसे आपका क्या प्रयोजन है। 🌷धर्मराउज महाबाहु युघिष्ठर ने कुररी की भाँति क्रन्दन करती हुई स्त्रियोंके घेरेको लॉंघकर अपने ताऊ धृतराष्ट्रको प्रणाम किया। तत्पश्चात् सभी शुत्रुसूदन पाण्डवों ने धर्मानुसार ताऊ को प्रणाम करके अपने नाम बताये। पुत्रवध से पीडित हुए पिताने शोक से व्याकुल हो आने पुत्रोंका अन्त करने वाले पाण्डुपुत्र युघिष्ठिर को हृदय से लगाया; परंतु उस समय उनका मन प्रसन्न नहीं था। भरतनन्दन ! धर्मराज को हृदयसे लगाकर उन्हे सान्तवना दे धृतराष्ट्र भीम को इस प्रकार खोजने लगे, मानो आग बनकर उन्हें जला डालना चाहते हों। 🌷उस समय उनकें मनमें दुर्भावना जाग उठी थी । शोकरूपी वायुसे बढ़ी हुई उनकी क्रोधमयी अग्नि ऐसी दिखायी दे रही थी, मानो वह भीमसेनरूपी वनको जलाकर भस्म कर देना चाहती हो। भीमसेनके प्रति उनके सुगम अशुभ संकल्पको जानकर श्री-कृष्णने भीमसेनको झटका देकर हटा दिया और दोनों हाथों से उनकी लोहमयी मूर्ति धृतराष्ट्रके सामनेकर दी। महाज्ञानी और परम बुद्धिमान् भगवान् श्रीकृष्णको पहलेसे ही उनका अभिप्राय ज्ञात हो गया था, इसलिये उन्होंने वहॉं यह व्यवस्था कर ली थी। 🌷बलवान् राजा धृतराष्ट्र उस लोहमय भीमसेनको ही असली भीम समझा और उसे दोनों बॉंहोसे दबाकर तोड़ डाला। राजा धृतराष्ट्रमेंदस हजार हाथियोंका बल था तो भी भीमकी लोहमयी प्रतिमाको तोड़कर उनकी छाती व्यथित हो गयी और मुँहसे खून निकलने लगा । वे उसी अवस्थामें खूनसे भींगकर पृथ्वीपर गिर पडे़, मानो ऊपरकी डालीपर खिले हुए लाल फूलोंसे सुशोभित पारिजातका वृक्ष धराशायी हो गया हो। 🌷उस समय उनके विद्वान् सारथि गवल्यणपुत्र संजय-ने उन्हें पकड़कर उठाया और समझा-बुझाकर शान्त करते हुए कहा—आपको ऐसा नहीं करना चाहिये। जब रोषका आवेश दूर हो गया, तब वे महामना नरेश क्रोध छोड़कर शोकमें डूब गये और हा भीम ! हा भीम ! कहते हुए विलाप करने लगे। उन्हें भीमसेनके वधकी आशड्का से पीडित और क्रोध-शून्य हुआ जान पुरुषोंत्तम श्रीकृष्णने इस प्रकार कहा-महाराज धृतराष्ट्र ! आप शोक न करें। ये भीम आपके हाथसे नहीं मारे गये हैं। प्रभो ! यह तो लोहेकी एक प्रतिमा थी, जिसे आपने चूर-चूर कर डाला। ©N S Yadav GoldMine #BhaagChalo राजा धृतराष्ट्र उस लोहमय भीमसेन को ही असली भीम समझा और उसे दोनों बॉंहो से दबाकर तोड़ डाला पढ़िए महाभारत !! 📔📔 महाभारत: स्त्री
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इन्होंने तो गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है पढ़िए महाभारत !! 📔📔 महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 19-37 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📒 इन गंगानन्दन भीष्म ने रूई भरा हुआ तकिया नहीं लिया है। इन्होंने तो गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है। माधव। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए महा यश स्वी नेष्ठिक ब्रम्हचारी ये शांतनुनन्दन भीष्म जिनकी युद्ध में कहीं तुलना नहीं है, यहां सो रहे हैं। 📒 तात। ये धर्मात्मा और सर्वज्ञ हैं परलोक और यह लोक सम्बन्धी ज्ञान द्वारा सभी आध्यामिक प्रष्नों का निर्णय करने में समर्थ हैं तथा मनुष्य होने पर भी देवता के तुल्य हैं; इन्होंने अभी तक अपने प्राण धारण कर रखे हैं। जब ये शान्तनुनन्दन भीष्म भी आज शत्रुओं के बाणों से मारे जाकर सो रहे हैं तो यही कहना पड़ता है कि युद्ध में न कोई कुषल है, न कोई विद्वान् है और न पराक्रमी ही है। 📒 पाण्डवों के पूछने पर इन धर्मज्ञ एवं सत्यवादी शूरवीर ने स्वयं ही अपनी मृत्यु का उपाय बता दिया था। जिन्होंने नष्ट हुए कुरूवंष का पुनः उद्धार किया था, वे ही परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। इन देवतुल्य नरश्रेष्ठ देवव्रत के स्वर्गलोक में चले जाने पर अब कौरव किसके पास जाकर धर्मविषयक प्रष्न करेंगे। 📒 जो अर्जुन के षिक्षक, सात्यकि के आचार्य तथा कौरवों के श्रेष्ठ गुरू थे, वे द्रोणाचार्य रणभूमि में गिरे हुए हैं, उन्हें भी देख लो। माधव। जैसे देवराज इन्द्र अथवा महापराक्रमी परषुराम जी चार प्रकार की अस्त्रविद्या को जानते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य भी जानते थे। जिनके के प्रसाद से पाण्डुनन्दन अर्जुन ने दुष्कर कर्म किया है, वे ही आचार्य यहां मरे पड़े हैं। उन अस्त्रों ने इनकी रक्षा नहीं की। 📒 जिनको आगे रखकर कौरव पाण्डवों को ललकारा करते थे, वे ही शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य शस्त्रों क्षत-विक्षत हो गये हैं। शत्रुओं की सेना को दग्ध करते समय जिनकी गति अग्नि के समान होती थी, वे ही वुझी हुई लपटों वाली आग के समान मरकर पृथ्वी पर पड़े हैं। 📒 माधव। युद्ध में मारे जाने पर भी द्राणाचार्य के धनुष के साथ जुड़ी हुई मुट्ठी ढीली नहीं हुई है। दस्ताना भी ज्यों का त्यों दिखाई देता है, मानो वह जीवित पुरुष के हाथों हो। केशव। जैसे पूर्व काल से ही प्रजापति ब्रम्ह से वेद कभी अलग नहीं हुए, उसी प्रकार जिन शूरवीर द्रोर्ण से चारों वेद और सम्पूर्ण अस्त्र-षस्त्र कभी दूर नहीं हुए। 📒 उन्हीं के बन्दीजनों के द्वारा वन्दित इन दोनों सुन्दर एवं वन्दनीय चरणारविन्दों को जिनकी सैकड़ों षिष्य पूजा कर चुके हैं, गीदड़ घसीट रहे हैं। मधुसूदन। द्रुपदपुत्र के द्वारा मारे गये द्रोणाचार्य के पास उनकी पत्नी कृपी बड़े दीनभाव से बैठी है। दु:ख से उसकी चेतना लुप्त सी हो गयी है। 📒 देखो, कृपी केष खोले नीचे मूंह किये राती हुई अपने मारे गये पति शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य की उपासना पर रही है। केशव। ध्रष्टद्युम्न ने अपने बाणों से जिन आचार्य द्रोर्ण का कवच छिन्न-भिन्न कर दिया है, उन्हीं के पास युद्धस्थल में वह जटाधारिणी ब्रम्हचारिणी कृपी वैठी हुई है। 📒 शोक से दीन और आतुर हुई यश स्वनी सुकुमारी कृपी समर में मारे गये पति देव का प्रेत कर्म करने की चेष्टा कर रही है। ©N S Yadav GoldMine #runaway इन्होंने तो गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है पढ़िए महाभारत !! 📔📔 महाभारत:
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महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्कों, मणियों, अंगदों, के यूरों और हारों से समरांगण विभूषित दिखाई देता है। कहीं वीरों की भुजाओं से छोड़ी गयी शक्तियां पड़ी हैं, कहीं परिध, नाना प्रकार के तीखे खग और बाणसहित धनुष गिरे हुए हैं। कहीं झुंड के झुंड मांस भक्षी जीव-जन्तु आनन्द मग्न होकर एक साथ खड़े हैं, कहीं वे खेल रहे हैं और कहीं दूसरे-दूसरे जन्तु सोये पड़े हैं। 📚 वीर। प्रभो। इस प्रकार इन सबसे मरे हुए युद्धस्थल को देखो। जनार्दन। मैं तो इसे देखकर शोक से दग्ध हुई जाती हूं। मधुसूदन। इन पान्चाल और कौरव वीरों के मारे जाने से तो मेरे मन में यह धारणा हो रही है कि पांचो भूतों का ही विनाश हो गया । उन वीरों को खून से भीगे हुए गरूड़ और गीध इधर - उधर खींच रहे हैं। 📚 सहस्त्रों गीध उनके पैर पकड़ - पकड़ कर खा रहे हैं, इस युद्ध में जयद्रथ, कर्ण, द्रोणाचार्य, भीष्म और अभिमन्यु- जैसे वीरों का विनाश हो जायेगा, यह कौन सोच सकता था? जो अवध्य समझे जाते थे, वे भी मारे गये और अचेत एवं प्राणशून्य होकर यहां पड़े हैं। गीध, कंक, बटेर, बाज, कुत्ते और सियार उन्हें अपना आहार बना रहे हैं। 📚 दुर्योधन के अधीन रहकर अमर्ष के वशीभूत हो ये पुरुष सिंह वीरगण बुझी हुई आगे के समान शान्त हो गये हैं। इनकी ओर दृष्टिपात तो करो। जो लोग पहले कोमल बिछौनों पर सोया करते थे, वे सभी आज मरकर नंगी भूमि पर सो रहे हैं। 📚 जिन्हें सदा ही समय-समय पर स्तुति करने वाले बन्दीजन अपने वचनों द्वारा आनन्दित करते थे, वे ही अब सियारिनों की अमंगल सूचक भांति - भांति की बोलियां सुन रहे हैं। जो यशस्वी वीर पहले अपने अंगों में चन्दन और अगुरू चूर्ण से चर्चित हो सुखदायिनी शययाओं पर सोते थे, वे ही आज धूल में लोट रहे हैं। 📚 उनके आभूषणों को ये गीध, गीदड़ और भयानक गीदडियां बारबार चिल्लाती हुई इधर -उधर फेंकती हैं । ये सभी युद्धाभिमानी वीर जीवित पुरुषों की भांति इस समय भी तीखे बाण, पानीदार तलवार और चमकीली गदाऐं हाथों में लिये हुए हैं। 📚 सुन्दर रूप और कान्तिवाले, सांडों के समान हष्ट-पुष्ट तथा हरे रंग के हार पहने हुए बहुत से योद्धा यहा सोये पड़े हैं और मांसभक्षी जन्तु इन्हें उलट-पलट रहे हैं। परिध के समान मोटी बाहों वाले दूसरे शूरवीर प्रेयसी युवतियां की भांति गदाओं का आलिंगन करके सम्मुख सो रहे हैं। जनार्दन। बहुत से योद्धा चमकीले योद्धा चमकीले कवच और आयुध धारण किये हुए हैं, 📚 जिससे उन्हें जीवित समझकर मांसभक्षी जन्तु उन पर आक्रमण नहीं करते हैं। दूसरे महामस्वी वीरों को मांसाहारी जीव इधर-उधर खींच रहे हैं, जिससे सोने की बनी हुई उनकी विचित्र मालाएं सब ओर बिखर गयी हैं। यहां मारे गये यशस्वी वीरों के कण्ठ में पड़े हुए हीरों को ये सहत्रों भयानक गीद़ड़ खींचते और झटकते हैं। 📚 बृष्णिसिंह। प्रायः प्रत्येक रात्रि के पिछले पहर में सुशिक्षित बन्दीजन उत्तम स्तुतियों और उपचारों द्वारा जिन्हें आनन्दित करते थे, उन्हीं के पास आज ये दु:ख और शोक से अत्यन्त पीडि़त हुई सुन्दरी युवतियां करूण विलाप कर रही हैं। केशव। इन सुन्दरियों के सूखे हुए सुन्दर मुख लाल कमलों के समूह की भांति शोभा पा रहे हैं। ©N S Yadav GoldMine #RABINDRANATHTAGORE महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्को
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गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है पढ़िए महाभारत !! 📜📜 महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 19-37 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📒 इन गंगानन्दन भीष्म ने रूई भरा हुआ तकिया नहीं लिया है। इन्होंने तो गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है। माधव। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए महा यश स्वी नेष्ठिक ब्रम्हचारी ये शांतनुनन्दन भीष्म जिनकी युद्ध में कहीं तुलना नहीं है, यहां सो रहे हैं। 📒 तात। ये धर्मात्मा और सर्वज्ञ हैं परलोक और यह लोक सम्बन्धी ज्ञान द्वारा सभी आध्यामिक प्रष्नों का निर्णय करने में समर्थ हैं तथा मनुष्य होने पर भी देवता के तुल्य हैं; इन्होंने अभी तक अपने प्राण धारण कर रखे हैं। 📒 जब ये शान्तनुनन्दन भीष्म भी आज शत्रुओं के बाणों से मारे जाकर सो रहे हैं तो यही कहना पड़ता है कि युद्ध में न कोई कुषल है, न कोई विद्वान् है और न पराक्रमी ही है। पाण्डवों के पूछने पर इन धर्मज्ञ एवं सत्यवादी शूरवीर ने स्वयं ही अपनी मृत्यु का उपाय बता दिया था। 📒 जिन्होंने नष्ट हुए कुरूवंष का पुनः उद्धार किया था, वे ही परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। इन देवतुल्य नरश्रेष्ठ देवव्रत के स्वर्गलोक में चले जाने पर अब कौरव किसके पास जाकर धर्मविषयक प्रष्न करेंगे। 📒 जो अर्जुन के षिक्षक, सात्यकि के आचार्य तथा कौरवों के श्रेष्ठ गुरू थे, वे द्रोणाचार्य रणभूमि में गिरे हुए हैं, उन्हें भी देख लो। माधव। जैसे देवराज इन्द्र अथवा महापराक्रमी परषुराम जी चार प्रकार की अस्त्रविद्या को जानते हैं उसी प्रकार द्रोणाचार्य भी जानते थे। 📒 जिनके के प्रसाद से पाण्डुनन्दन अर्जुन ने दुष्कर कर्म किया है, वे ही आचार्य यहां मरे पड़े हैं। उन अस्त्रों ने इनकी रक्षा नहीं की। जिनको आगे रखकर कौरव पाण्डवों को ललकारा करते थे, वे ही शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य शस्त्रों क्षत-विक्षत हो गये हैं। 📒 शत्रुओं की सेना को दग्ध करते समय जिनकी गति अग्नि के समान होती थी, वे ही वुझी हुई लपटों वाली आग के समान मरकर पृथ्वी पर पड़े हैं। माधव। युद्ध में मारे जाने पर भी द्राणाचार्य के धनुष के साथ जुड़ी हुई मुट्ठी ढीली नहीं हुई है। 📒 दस्ताना भी ज्यों का त्यों दिखाई देता है, मानो वह जीवित पुरुष के हाथों हो। केशव। जैसे पूर्व काल से ही प्रजापति ब्रम्ह से वेद कभी अलग नहीं हुए, उसी प्रकार जिन शूरवीर द्रोर्ण से चारों वेद और सम्पूर्ण अस्त्र-षस्त्र कभी दूर नहीं हुए, उन्हीं के बन्दीजनों के द्वारा वन्दित इन दोनों सुन्दर एवं वन्दनीय चरणारविन्दों को जिनकी सैकड़ों षिष्य पूजा कर चुके हैं, गीदड़ घसीट रहे हैं। 📒 मधुसूदन। द्रुपदपुत्र के द्वारा मारे गये द्रोणाचार्य के पास उनकी पत्नी कृपी बड़े दीनभाव से बैठी है। दु:ख से उसकी चेतना लुप्त सी हो गयी है। देखो, कृपी केष खोले नीचे मूंह किये राती हुई अपने मारे गये पति शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य की उपासना पर रही है। 📒 केशव। ध्रष्टद्युम्न ने अपने बाणों से जिन आचार्य द्रोर्ण का कवच छिन्न-भिन्न कर दिया है, उन्हीं के पास युद्धस्थल में वह जटाधारिणी ब्रम्हचारिणी कृपी वैठी हुई है। शोक से दीन और आतुर हुई यश स्वनी सुकुमारी कृपी समर में मारे गये पति देव का प्रेत कर्म करने की चेष्टा कर रही है। ©N S Yadav GoldMine #CityWinter गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है पढ़िए महाभारत !! 📜📜 महाभारत: स्त्री
Pankaj Dubey
@prabhat....D कभी सोचता हूँ कि युद्ध का अनुभव करूँ मैं कभी सोचता हूँ कि मैं मृत्यु के आँचल से लिपटू फिर सोचता हूँ युद्ध तो आता नही तो सीखना मैं चाहता