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Ashish Khare

KUNWA SAY

#SunSet मेरी सांसो की डोर बस दो ही खाहिशों पर टिकी है ,,साँस चले तो तुम साथ हो ,,साँस रुके तो तुम पास हो 🥰 ..

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Rameshkumar Mehra Mehra

# हदय सें हदय के बीच,मेरे और तुम्हारे,जो एक डोर है,पतली सी,बस बही तो बो धागा है,प्रेम का जो बिखराव जोडे रखता है,तुम्हे और मुझे...💕 #Quotes

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Anjali Singhal

"बाहर ख़ामोशी है अंदर शोर है, जुड़ा उनसे एहसास का एक छोर है। बँधी है चाहत जिससे वो कच्ची-पक्की डोर है, पर उनके सिवा अब भाए भी ना कोई और है। #Love #AnjaliSinghal

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Krishnavi Pandey

एक अनदेखी सी है डोर तेरे मेरे बीच में जो बांध रखतीं हैं ...🥀 #Shayari

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Rameshkumar Mehra Mehra

# नजरो में सम्मान,और,बोलने की मर्यादा,किसी भी रिश्ते की सबसे मजबूत डोर होती है,तभी एक दूसरे से बांधे रहते है.... #Quotes

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Bhupendra Rawat

#thepredator उलझा हूँ, ज़िंदगी की हरेक गुत्थियाँ सुलझाने में जब से दस्तक दी है दर्द ने मेरे सिराने में बड़ी मशक्कत से पाला था मैंने एक भ्रम #शायरी

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उलझा हूँ, ज़िंदगी की हरेक गुत्थियाँ सुलझाने में
जब से दस्तक दी है दर्द ने मेरे सिराने में

बड़ी मशक्कत से पाला था मैंने एक भ्रम
ठोकरों ने बताया,नही होता,अपना कोई इस ज़माने मे

दोस्ती इतनी अच्छी भी नहीं कि भूल बैठो ख़ुद को
दोस्त ही वार करता है पीछे से जख्म को सहलाने मे

बेस्वार्थ प्यार की डोर से जुड़ी है, माँ
वरना स्वार्थ की डोर ने जोड़े रखा है रिश्तों को ज़माने में

माँ की गोद ने भूला दिया जहाँ के दर्द को
कोई जादू हो, जैसे माँ के सिराने में

©Bhupendra Rawat #thepredator उलझा हूँ, ज़िंदगी की हरेक गुत्थियाँ सुलझाने में
जब से दस्तक दी है दर्द ने मेरे सिराने में

बड़ी मशक्कत से पाला था मैंने एक भ्रम

Poet Kuldeep Singh Ruhela

#mahashivaratri शिव ही सत्य है शिव ही विचार है शिव के बिना नहीं कोई निरंकार है शिव ही जीवन की डोर है शिव ही हमारा परिवार है शिव ही काशी #न्यूज़

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Shivkumar

#Tulips #शायरी इस #दुनिया में #गुलदस्ते की #डोर मे दरिया #दिलों की यह #शान है । यहाँ हर #शख्स किसी के बिना बहुत #खुश है दिल के गमों की व #उलझन

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- चंचल चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार । दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।। #कविता

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दोहा :- चंचल

चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार ।
दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।।
च़चल मन की वो खुशी , देख सके क्या आप ।
मन ही मन खिलता रहा , सुनकर ये पदचाप ।।
चंचल मन ने बाँध ली , आज प्रेम की डोर ।
कैसे निकलेंगे सजन , नैना है चितचोर ।।
चंचल दिखती है पवन ,  छेड़े मन के तार ।
आने वाले हैं सजन , लायी खत इस बार ।।
चंचल मन वैरी हुआ , करके उनसे प्रीति ।
सुधि भी वह लेता नहीं , निभा रही मैं रीति ।।

२७/०२/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- चंचल


चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार ।

दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।।
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