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Abeer Saifi

अस्थि-पंजर - कंकाल, कंजर - भटकने वाली जनजाति, जंजर - कमज़ोर सुप्रभात। सुबह के उजाले में, मेरी आँखें देखती हैं ज़िन्दगी का मंज़र... #मंज़र # #Collab #yqdidi #yqtales #YourQuoteAndMine #yqquotes #yqlife

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ये ज़िन्दगी का मंज़र है पीठ में कितने खंजर हैं,
कलियां सारी सूख गयीं ज़मीं भी देखो बंजर है اا

मुझमें कुछ अब शेष नहीं जीवन का अवशेष नहीं, 
ढांचे में मुझको क़ैद न कर जो बस अस्थि-पंजर है اا

एक जगह टिकता भी नहीं चाह नहीं बिकता भी नहीं,
के चहूं दिशा विचरण भ्रमण ये मनवा मारा कंजर है اا

ये देह मेरे किस काम का स्मरण है बस प्रभु राम का,
मेरी आत्मा तू त्याग तन आसक्त क्षीण ये जंजर है اا
 अस्थि-पंजर - कंकाल, कंजर - भटकने वाली जनजाति, 
जंजर - कमज़ोर 

सुप्रभात।
सुबह के उजाले में,
मेरी आँखें देखती हैं 
ज़िन्दगी का मंज़र...
#मंज़र #

Abeer Saifi

अस्थि-पंजर - कंकाल, कंजर - भटकने वाली जनजाति, जंजर - कमज़ोर सुप्रभात। सुबह के उजाले में, मेरी आँखें देखती हैं ज़िन्दगी का मंज़र... #मंज़र # #Collab #yqdidi #yqtales #YourQuoteAndMine #yqquotes #yqlife

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ये ज़िन्दगी का मंज़र है पीठ में कितने खंजर हैं,
कलियां सारी सूख गयीं ज़मीं भी देखो बंजर है اا

मुझमें कुछ अब शेष नहीं जीवन का अवशेष नहीं, 
ढांचे में मुझको क़ैद न कर जो बस अस्थि-पंजर है اا

एक जगह टिकता भी नहीं चाह नहीं बिकता भी नहीं,
के चहूं दिशा विचरण भ्रमण ये मनवा मारा कंजर है اا

ये देह मेरे किस काम का स्मरण है बस प्रभु राम का,
मेरी आत्मा तू त्याग तन आसक्त क्षीण ये जंजर है اا
 अस्थि-पंजर - कंकाल, कंजर - भटकने वाली जनजाति, 
जंजर - कमज़ोर 

सुप्रभात।
सुबह के उजाले में,
मेरी आँखें देखती हैं 
ज़िन्दगी का मंज़र...
#मंज़र #

AshuAkela

#me लगा दो आग की हो रौशन शहर, क्या हों ये मकां जब कोई दिया नहीं । छोड़ो भी यह अस्थि पंजर खंडहर घर, कितने बरस हो इंतज़ार,जब कोई दिया नहीं । #Diya #Dard #shahar #शायरी #Aag #roshan #Dilbar

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SI UPP BDH

#नोबेल_विजेता_रवींद्रनाथ_टैगोर_कृत ऐकला_चोलो_रे.... (Hindi version) तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे फिर चल अकेला... चल अकेला.

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#नोबेल_विजेता_रवींद्रनाथ_टैगोर_कृत 
ऐकला_चोलो_रे.... (Hindi version)

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला... चल अकेला... चल अकेला... चल अकेला रे 
ओ तू चल अकेला.... चल अकेला... चल अकेला... चल अकेला रे

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला... चल अकेला... चल अकेला ... चल अकेला रे

यदि कोई भी ना बोले ओरे ओ रे ओ अभागे कोई भी ना बोले
यदि सभी मुख मोड़ रहे सब डरा करे
तब डरे बिना ओ तू मुक्तकंठ अपनी बात बोल अकेला रे
ओ तू मुक्तकंठ अपनी बात बोल अकेला रे

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे

यदि लौट सब चले ओरे ओ रे ओ अभागे लौट सब चले
यदि रात गहरी चलती कोई गौर ना करे
तब पथ के कांटे ओ तू लहू लोहित चरण तल चल अकेला रे

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे

यदि दिया ना जले ओरे ओ रे ओ अभागे दिया ना जले
यदि बदरी आंधी रात में द्वार बंद सब करे
तब वज्र शिखा से तू ह्रदय पंजर जला और जल अकेला रे
ओ तू हृदय पंजर चला और जल अकेला रे

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
ओ तू चल अकेला ....चल अकेला... चल अकेला ...चल अकेला रे #नोबेल_विजेता_रवींद्रनाथ_टैगोर_कृत 
ऐकला_चोलो_रे.... (Hindi version)

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो 
फिर चल अकेला रे फिर चल अकेला... चल अकेला.

Sunita D Prasad

#एक दिन...... एक दिन संग्रहालयों में.... दुर्लभ धर्मग्रंथों, खंडित प्रतिमाओं और सभ्यता के अवशेषों के स्थान पर संग्रहित किए जाएँगे..... वे #yqbaba #yqdidi #yqpowrimo

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पूर्व में घटित त्रासदियों से
सबक लेने से 
अधिक आवश्यक है..
प्रेम को समझना, सहेजना 
और उसको सँवारना। 
ताकि भावी पीढ़ियों को
आवश्यकता ही न पड़े
कट्टर धर्म अभिलेखों की
अहंकार में होने वाले
आपसी संघर्षों/युद्धों  का।।

--सुनीता डी प्रसाद💐💐

(कैप्शन में पढ़िए) #एक दिन......

एक दिन संग्रहालयों में....
दुर्लभ धर्मग्रंथों, खंडित प्रतिमाओं 
और सभ्यता के अवशेषों के स्थान पर 
संग्रहित किए जाएँगे.....
वे

रजनीश "स्वच्छंद"

बुरा क्यूं मान गए।। हमने तो बताई बात, आदम की सच्ची जात। बुरा क्यूं मान गए।। इज़्ज़त भी हुई तमाम, नँगे सब सरे हमाम। #kavita #कविता

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बुरा क्यूं मान गए।।

कविता।।

©रजनीश "स्वच्छंद" बुरा क्यूं मान गए।।

हमने तो बताई बात,
आदम की सच्ची जात।
बुरा क्यूं मान गए।।

इज़्ज़त भी हुई तमाम,
नँगे सब सरे हमाम।

रजनीश "स्वच्छंद"

समर कहाँ अब शेष है।। हुई पराजित मां बेटों से, समर कहाँ अब शेष है। यौवनधार कुंद पड़ी, अस्थि-पंजर का अवशेष है। गर्व करे मां किन पूतों पर, किन #falconfilms19

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समर कहाँ अब शेष है।।

हुई पराजित मां बेटों से, समर कहाँ अब शेष है।
यौवनधार कुंद पड़ी, अस्थि-पंजर का अवशेष है।

गर्व करे मां किन पूतों पर,
किन बल वो हुंकार भरे।
स्वार्थलोलुप लज्जित सन्ताने,
किस पर वो श्रृंगार करे।

छाती का दूध रगों में पानी है,
ये कैसे वो अंगीकार करे।
था शिशु कभी रोता उर में,
अब बैठ मां चीत्कार करे।

आनंद जो था वास करे, हूआ वहीं अब क्लेश है।
हुई पराजित मां बेटों से, समर कहाँ अब शेष है।

देशप्रेम का पाठ कहाँ अब,
ये बस पुस्तक की शोभा है।
हिन्द हिन्द तो रहा नही,
छल कपट और धोखा है।

आंखों में नीर नहीं भरता,
ये दृश्य बड़ा ही अनोखा है।
रवानी जिस पे गर्व बड़ा था,
शोणित को शर्म ने सोखा है।

नीव रखी भरत ने जिसकी, क्या ये वही अब देश है।
हुई पराजित मां बेटों से, समर कहाँ अब शेष है।

©रजनीश "स्वछंद" समर कहाँ अब शेष है।।

हुई पराजित मां बेटों से, समर कहाँ अब शेष है।
यौवनधार कुंद पड़ी, अस्थि-पंजर का अवशेष है।

गर्व करे मां किन पूतों पर,
किन

रजनीश "स्वच्छंद"

तुम्हे उठ ख़ुद ही चलना होगा।। सांत्वने का दौर नहीं, तुम्हे उठ ख़ुद ही चलना होगा। कोई है अवतार नहीं, तुम्हे बढ़ खुद ही लड़ना होगा। शकुनि से भरा #Poetry #Quotes #kavita #hindipoetry

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तुम्हे उठ ख़ुद ही चलना होगा।।

सांत्वने का दौर नहीं, तुम्हे उठ ख़ुद ही चलना होगा।
कोई है अवतार नहीं, तुम्हे बढ़ खुद ही लड़ना होगा।

शकुनि से भरा संसार है, पग पग खड़ा है कंस भी,
मुंह बाए कहीं है कालिया, जहरीला बड़ा है दंश भी।
ग्वाल बालों की क्रिया से अब हो जरा निवृत चलो,
जागने की बेला है आई, है सुबह, अभी तुम ना ढलो।
हर युग मे महाभारत रहा, तुम्हे कृष्ण बनना चाहिए,
लहु बड़ा अनमोल है, मनुज सेवा में बहना चाहिए।
छोड़ शय्या फूलों की तुम्हे कांटों पर ही पलना होगा।
सांत्वने का दौर नहीं, तुम्हे उठ ख़ुद ही चलना होगा।

कोई क्यूँ है भूखा रोता रहा, अस्थियों का पंजर लिए,
क्यूँ डबडबाई सी आंख है, आंसुओं का समंदर लिए।
मन द्रवित होता नहीं क्यूँ, बस स्वार्थ सर चढ़ बोलता।
आंखें तू अपनी मूंद कर, क्यूँ मन को नहीं है टटोलता।
कौन तेरा अपना रहा, किसी से रहा पराये का भेद क्यूँ,
किसी के दर्द में रोया बहुत, किसी पर हुआ ना खेद क्यूँ।
आंसू पोछने को इनके, अविरल तुम्हे ही बहना होगा,
सांत्वने का दौर नहीं, तुम्हे उठ ख़ुद ही चलना होगा।

सीख क्या मैं दूँ तुम्हे, तुम ज्ञानी विवेकी बलवान हो,
अंदर तुम झांको जरा, ख़ुद का तुम ही तो सम्मान हो।
जीवित किस ख़ातिर हो तुम, अहसान किसका रहा,
तुम भी मनुज, मैं भी मनुज, अभिमान किसका रहा।
रहा कोई अब देव नहीं, दानव भी कहाँ अब शेष है।
दोनों हैं तुझमे ही, मनुज ही लिए देव दानव भेष है।
बन देव, दानवों को, तुम्हे उठ ख़ुद ही दलना होगा,
सांत्वने का दौर नहीं, तुम्हे उठ ख़ुद ही चलना होगा।

©रजनीश "स्वछंद" तुम्हे उठ ख़ुद ही चलना होगा।।

सांत्वने का दौर नहीं, तुम्हे उठ ख़ुद ही चलना होगा।
कोई है अवतार नहीं, तुम्हे बढ़ खुद ही लड़ना होगा।

शकुनि से भरा

रजनीश "स्वच्छंद"

मैं वनवासी।। तेरा मेरा कर भेदहीन, मैं हूँ वनवासी शब्दों का। हर आखर में प्राण भरूँ मैं निर्बल निःशब्दों का। तुम अपनी बातें कह जाते, हो सबल #Poetry #Quotes #Life #kavita

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मैं वनवासी।।

तेरा मेरा कर भेदहीन, मैं हूँ वनवासी शब्दों का।
हर आखर में प्राण भरूँ मैं निर्बल निःशब्दों का।

तुम अपनी बातें कह जाते, हो सबल विलासी,
उनकी बातें कौन करे जो हक का अभिलाषी।
शब्द कहाँ कब फूटे मुख से पेट पकड़ जो सोये,
उस मां का अपराध बताओ जो है कोने रोये।
बच्चे बिलखते रोटी को, सूखा मां का दूध है,
तुम ही बोलो उसका किसने लिया कब सूध है।
एक निवाला पाने को जो दर दर ठोकर खाते हैं,
रात हुई, ओढ़ आसमा, फुटपाथों पे सो जाते हैं।
एक नहीं, है फिक्र किसे इन उपजते जत्थों का।
तेरा मेरा कर भेदहीन, मैं हूँ वनवासी शब्दों का।

तेरा नाथ है मंदिर बैठा, है उनका कोई नाथ नहीं,
धन के ही सब साथी हैं, निर्धन के कोई साथ नहीं।
दूध चढ़ा पत्थर पर, दुग्धाभिषेक तुम करते हो,
अंतर्मन से पूछो, क्या काम नेक तुम करते हो।
गीता पढ ली, कुरान पढ़ी, गुरुग्रंथ का पाठ किया,
शब्दों को ही रटते रहे, अर्थ कब आत्मसात किया।
पीछे मुड़ तुम देखो, सोचो अपने अतिरेक पर,
प्रश्नचिन्ह क्यूँ लगा रहे, तुम स्वयं के विवेक पर।
धर्म निभाओ तुम अपना, साथ न लो बस लब्जों का,
तेरा मेरा कर भेदहीन, मैं हूँ वनवासी शब्दों का।

शब्द मेरे तीक्ष्ण बड़े, कुछ कष्ट तुम्हे दे जाएंगे,
पर तेरे जीने का मतलब स्पष्ट तुम्हे दे जाएंगे।
भाव पड़े संकुचित, उनका जरा विकास तो हो,
भान रहे याद तुम्हे तेरा अपना इतिहास तो हो।
धरा की महत्ता मां से बड़ी, इसने ही तो पाला है,
इस हाड़ मांस के पंजर में रक्त बीज जो डाला है।
फ़र्ज़ कहो या कर्ज़ कहो, तुमको ही तो निभाना है,
इस पौरुष का दम्भ क्या जो मिट्टी में मिल जाना है।
तू नया संसार बना तज मोह ताज और तख्तों का
तेरा मेरा कर भेदहीन, मैं हूँ वनवासी शब्दों का।

©रजनीश "स्वछंद" मैं वनवासी।।

तेरा मेरा कर भेदहीन, मैं हूँ वनवासी शब्दों का।
हर आखर में प्राण भरूँ मैं निर्बल निःशब्दों का।

तुम अपनी बातें कह जाते, हो सबल
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