Nojoto: Largest Storytelling Platform

New समाजशास्त्र की प्रकृति क्या है Quotes, Status, Photo, Video

Find the Latest Status about समाजशास्त्र की प्रकृति क्या है from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, समाजशास्त्र की प्रकृति क्या है.

    PopularLatestVideo

Harpinder Kaur

# क्या है प्रकृति? #Poetry

read more
इंसान ने कितना कुछ बदल दिया
प्रकृति को बदलने के लिए 
पर ये ना सोचा कि
जिस दिन प्रकृति बदलेगी 
उस दिन क्या होगा
बस होगा वही जो चाहेगी प्रकृति करना
और प्रकृति क्या क्या कर सकती है
ये कोई नहीं जानता
कैसे जान सकता है कोई कि
प्रकृति भी कुछ कर सकती है
अगर ये समझ गए होते कि
बहुत कुछ कर सकती है प्रकृति 
तो.... 
यूँ  ना छलते तुम प्रकृति

©Harpinder Kaur # क्या है प्रकृति?

Shaurya chauhan

प्रकृति मैं परिवर्तन ,परिवर्तन की प्रकृति है। #Poetry

read more
प्रकृति मैं परिवर्तन ,परिवर्तन की प्रकृति है।

KUMARI USHA AMBEDKAR

प्रकृति की शक्ति नारी है #Poetry

read more
mute video

Shreya Joshi

# प्रकृति की लीला है न्यारी

read more
mute video

गौतम विश्वकर्मा

पुष्प प्रकृति की शोभा है।

read more
पुष्प प्रकृति की शोभा है। पुष्प प्रकृति की शोभा है।

Parasram Arora

समाजशास्त्र का विषय.......

read more
ऎसा मैने  कभी सोचा  भी    नहीं  था 
कि  शहर  मे  घुमक्क्ड  सूअर   का  झुण्ड 
समाजशास्त्र  के लिए  चर्चा  का  विषय  बन सकता हैँ 
क्यों कि  एक दिन  जब मैने देखा 
कूड़े  का  डस्टबिन  कूड़े  की भ्रावक्षमता के 
उच्चतम  शिखर आ  चुका  था . 

तो  उस   कूड़े को  पाने के  लिए  सूअरों का झुण्ड 
अपने पेट मे पलते  हुए  बच्चो  के लिए   चिंघाड़  रहे   थे  ! समाजशास्त्र का  विषय.......

@Sikho_bro

प्रकृति की हवा हमे सिखाती है। #जानकारी

read more
mute video

Amit Gupta

प्रकृति प्रेम @ प्रकृति की तपन

read more
ये धूप, तू मान मेरी 

ये धूप, तेरा यूं नित्य बढ़ना लाजमी है मानता हूं मैं,
तेरी तपन तुझको मानवों ने ही दिए, जानता हूं मैं
पर क्या तू भी बन जाओगी निर्मोही और निष्ठुर 
तू मान मेरी, कर दे ऐसी सभी नाराजगी तू दूर  
मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है
तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । 
आकांक्षाओं कि परिसिमा लांघते गए ओ इस कदर 
पेड़ काटे, पर्वत - पहाड़ तोड़े, और न जाने क्या-क्या किए
दर्द तेरी समझता हूं, ऐसे ही नहीं ढा रही तू ये कहर 
पर तुझसे से तो हमने ना कभी ऐसी उम्मीद किए 
मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है
तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । 
अच्छे, बुरे, लोभी, लालची, मतलबी चाहे जैसे भी 
आखिर ये भी तो तेरे संग ही रहते, तू रखे चाहे जैसे भी 
मान जा, तू जिद न कर, बढ़ तू पर न इस तरह
देख, प्रकृति प्रेमियों के भी आंसू बने पसीने कि तरह
मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है
तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है ।
नन्हे बच्चों की अभी छुट्टियां भी तो नहीं हुई 
तेरी तपन उन्हें तड़पाती है, न जाऊंगा स्कूल, कहलवाती है
ये भविष्य कल के, पढ़ कर समझेंगे तेरी वेदना को 
तू भी तो समझ बागों से दूर होते इनकी संवेदना को 
मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है
तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । प्रकृति प्रेम @ प्रकृति की तपन

Sanjay Sahu

#प्रकृति की सुरक्षा भी हमारी जिम्मेदारी है।

read more
"प्रकृति के रंग"

इस फिज़ा में कुछ रंग मिलाओं,
प्रकृति का भी मन बहलाओं।
देती है वो नित्य नव जीवन,
उसको भी तो सुंदर बनाओं।

अपने जीवन में करें हम प्रण,
हर शुभ अवसर पर लगें एक वृक्ष।
आओं मिलकर लें फिर संकल्प,
प्रकृति के लिए हों नित्य नया कर्म।

✍मेरे विचार... #प्रकृति की सुरक्षा भी हमारी जिम्मेदारी है।

Deepali Singh

प्रकृति की हुंकार

read more
प्रकृति की हुँकार
कब से आस लगाये बैठी थी ये प्रकृति 
इसे भी मिल जाए सांस लेने की अनुमति
धुआँ ही धुआँ दिखता था हर जगह
और हो रहे थे ज़ुल्म इसपर बेवजह 
ढूंढ रही अपने अस्तित्व को जाने कब से,
चुप बैठी थी गुमसुम सी इतने वर्षों से 
ठहरी थी जिंदगी बहुत दूर इससे 
पर ऐसी बर्बादी कतई ना थी मंज़ूर इसे,
रहती थी खोई सी,खामोशियों मे सोई थी
उन दूषित गर्म हवाओं में खुद को पिरोई भी
काया से इसके लिपट कर वायु ने 
स्वच्छ शीतल चंचल उड़ान था भरा
उन नर्म साँसों में, ठहरी ठंडी रातों में
सरसराते इठलाते बहकते पत्तों में,
धड़कते पत्थर के उन सहमे दरारों में
छुकर अपने धरा के कर कण-कण को
मस्ती में इतराते अपने हस्ती पे
फ़िर उड़ता चला चुमने गगन को
वो मतवाला मनचला बहता चला
आज़ाद सोंच में झूमता उठता रहा
फिर कैद हुआ कुछ के क्रूर गुरुर से
और तड़प रहा गुब्बारों में तो सिलेंडर में
सुकून सा देकर तेरे घुँटते फेफड़ों को
जो जीवन दिया वो ये वायु ही तो
जिताकर तुझे ऐसे जीवन जंग से 
लौटना है इन्हें उपवन जंगल में
जो बनाता रहा दूरी कुदरत से
क्या खोया है ज़रा पूछ खुद से
प्रकृति के आगे हम मजबूर ठहरे 
इनकी नज़रों से कुछ भी नहीं परे 
प्रकृति को हमारी ज़रूरत नहीं
पर हमें प्रकृति की ज़रूरत ज़रूर है 
यूँही नहीं प्रकृति को खुद पर गुरुर है
तभी तो प्रकृति खुद मे मगरूर है

 
‌

©Deepali Singh प्रकृति की हुंकार
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile