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N S Yadav GoldMine
जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर्विंष अध्याय: श्लोक 32-50 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं; यह काल का उलट-फेर तो देखो। माधव। निश्चय ही दैव के लिये कोई भी कार्य अधिक कठिन नहीं है; क्योंकि उसने क्षत्रियों द्वारा ही इन शूरवीर क्षत्रिय षिरोमणियों का संहार कर डाला है। 📜 श्रीकृष्ण मेरे वेगशाली पुत्र तो उसी दिन मारे डाले गये, जबकि तुम अपूर्ण मनोरथ होकर पुनः उपप्लव्य को लौट गये थे। मुझे तो शान्तनुनन्दन भीष्म तथा ज्ञानी विदुर ने उसी दिन कह दिया था, कि अब तुम अपने पुत्रों पर स्नेह न करो। है जनार्दन। उन दोनों की यह दृष्टि मिथ्या नहीं हो सकती थी, अतः थोड़े ही समय में मेरे सारे पुत्र युद्ध की आग में जल कर भस्म हो गये। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- भारत। ऐसा कहकर शोक से मूर्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं, दु:ख से उनकी विवेकषक्ति नष्ठ हो गयी। तदन्तर उनके सारे अंगों में क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्र शोक में डूब जाने के कारण उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठीं। 📜 उस समय गान्धारी ने सारा दोष श्रीकृष्ण के ही माथे मढ दिया। गान्धारी ने कहा- श्रीकृष्ण। है जनार्दन। पाण्डव और धृतराष्ट्र के पुत्र आपस में लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी? महाबाहु मधुसूदन। तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत से सेवक और सैनिक थे। 📜 तुम महान् बल में प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षों से अपनी बात मनवा लेने की सामथ्र्य तुम में मौजूद थी। तुमने वेद-षास्त्रों और महात्माओं की बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छा से कुरू कुल के नाश की उपेक्षा की- जान-बूझकर इस वंष का विनाश होने दिया। 📜 यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो। चक्र और गदा धारण करने वाले है केशव। मैंने पति की सेवा से कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबल से तुम्हें शाप दे रही हूं। गोविन्द। 📜 तुमने आपस में मार-काट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों ओर पाण्डवों की उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओं का भी विनाश कर डालोगे। हैं मधुसूदन। आज से छत्तीसवां वर्ष उपस्थित होने पर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपस में लड़कर मर जायेंगे। 📜 तुम सबसे अपरिचित और लोगों की आंखों से ओझल होकर अनाथ के समान वन में विचरोगे, और किसी निन्दित उपाय से मृत्यु को प्राप्त होओगे। इन भरतवंषी स्त्रियों के समान तुम्हारे कुल की स्त्रियां भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओं के मारे जाने पर इसी प्रकार सगे-सम्बन्धियों की लाशों पर गिरेगी। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- राजन। वह घोर वचन सुनकर माहमनस्वी वसुदेव नन्दन श्रीकृष्ण ने कुछ मुस्कराते हुए से गान्धारी से कहा- क्षत्राणी। मैं जानता हूं, यह ऐसा ही होने वाला है। तुम तो किये हुए को ही कह रही हो। इसमें संदेह नहीं कि वृष्णिवंष के यादव देव से ही नष्ट होंगे। 📜 शुभे। वृष्णिकुल का संहार करने वाला मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं है। यादव दूसरे मनुष्यों तथा देवताओं और दानवों के लिये भी अवध्य हैं; अतः अपस में ही लड़कर नष्ट होंगे। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पाण्डव मन-ही-मन भयभीत हो उठे। उन्हें बड़ा उद्वेग हुआ। ये सब-के-सब अपने जीवन से निराष हो गये। एन एस यादव।। ©N S Yadav GoldMine #traintrack जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभार
Bhupendra Rawat
पहला श्लोक ( भगवत गीता ) कुरुछेत्र में कौरवों और पांडवो की सेना पहुंच जब महाराज धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा तब संजय ने श्री कृष्ण द्वारा दी गयी अपनी दिव्या दृष्टि का प्रयोग किया कुछ इस तरह संजय ने कुरुछेत्र में हुई संपूर्ण घटनाओ का वर्णन किया ©Bhupendra Rawat #Sukha पहला श्लोक ( भगवत गीता ) कुरुछेत्र में कौरवों और पांडवो की सेना पहुंच जब महाराज धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा तब संजय ने श्री कृष्ण द्व
Shaarang Deepak
Jupiter and its moon
पांच पति पांचाली के अभिमान बचाने ना आए। अपमानित होती नारी का सम्मान ना बचाने ना आए।। भीष्म द्रोण गुरू कृपाचार्य सब मान बचाने ना आए। वीर हुए कायरतम अबला आन बचाने ना आए।। केश पकड़ जब रजस्वला स्त्री पर अत्याचार हुआ। स्वजन बंधू सब मूक बने पंचाली संग व्यभिचार हुआ।। उपहास हुआ हर नारी का सब न्याय धर्म पर वार हुआ। निर्लज्ज सभा के भागी हर एक जन का तय संहार हुआ।। थे विकर्ण जैसे भी जिसने पाप सभा में सत्य कहे। विदुर सरीखे नितिकार सब सभा त्याग कर चले गए।। धृतराष्ट्र सम अंधा राजा दूर्योधन सा अत्याचारी। था पाखंड धर्म का या फिर थी पांडव की लाचारी।। जब जब वस्त्र हरण को कोई दुशासन आगे आए। तव आन मान अधिकारों पर जब जब अंधेरा छा जाए।। हे स्त्री! तुमको निज रक्षा के हेतु स्वयं जलना होगा। चंडी काली बनकर निशदिन महिषा मर्दन करना होगा। तुम जननी सब जग की भर्ता निज शंका का त्याग करो। वस्त्र हरण को बढ़ते हर दुशासन का तुम नाश करो।। कृष्ण नहीं आते हर युग में अबला आन बचाने को। सबला बन तुम स्वयं लड़ो निज आन और मान बचाने को।। ©Jupiter and its moon कृष्ण नहीं आते हर युग में! पांच पति पांचाली के अभिमान बचाने ना आए। अपमानित होती नारी का सम्मान ना बचाने ना आए।। भीष्म द्रोण गुरू कृपाचार्य
Bhupendra Rawat
मैंने अक्सर सत्ता में बैठे लोगों को मौन धारण करते देखा है चीरहरण की घटना पर नेत्रहीनों का जमघट देखा है नजाने कहां गया वो ग्वाला, जो भरी सभा मे आया था एक नारी के स्वाभिमान को राक्षसों से बचाया था। फ़क़त एक नारी का नही समस्त विश्व का अपमान है सत्ता में बैठे लोगों की कायरता का, यह परिणाम है नजाने कब सत्ता में बैठे धृतराष्ट्र की बुद्धि जागेगी? गांधारी कब अपनी आंखों से न्याय की पट्टी खोलेगी? विदुर नीति और भीष्म प्रतिज्ञा कब अपनी चुप्पी तोड़ेगी? अब हथियार उठा लो तुम अबला नही कहलाओगी सत्ता में बैठे कुशासित लोगों को तुम ही धर्म का पाठ पढाओगी। 23।07।2023 ©Bhupendra Rawat मैंने अक्सर सत्ता में बैठे लोगों को मौन धारण करते देखा है चीरहरण की घटना पर नेत्रहीनों का जमघट देखा है नजाने कहां गया वो ग्वाला, जो भरी
malay_28
निर्वस्त्र हुई द्रौपदी सरे बाज़ार में जल रही मानवता दहके अंगार में धृतराष्ट्र हैं बैठे अपने दरबार में सब ठीक चल रहा है राज्य में दरबारियों ने कहा एकल कंठ से सबका अडिग विश्वास है सरकार में. ©malay_28 #धृतराष्ट्र
N S Yadav GoldMine
है वासुदेव श्रीकृष्ण इसका यह मुख हिंसक जन्तुओं द्वारा आधा खा लिया गया है पढ़िए महाभारत !! 🙏🙏 महाभारत: स्त्री पर्व एकोनविंष अध्याय: श्लोक 1-17 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 गान्धारी बोलीं- माधव। यह मेरा पुत्र विकर्ण, जो विद्वानों द्वारा सम्मानित होता था, भूमि पर मरा पड़ा है। भीमसेन ने इसके भी सौ-सौ टुकड़े कर डाले हैं। मधुसूदन। जैसे शरतकाल में मेघों की घटा से घिरा हुआ चन्द्रमा शोभा पा रहा है, उस प्रकार भीम द्वारा मारा गया विकर्ण हाथियों की सेना के बीच में सो रहा है। 📜 बराबर धनुष लिये रहने से इसकी विशाल हथेली में घट्ठा पड़ गया है। इसके हाथों में इस समय भी दस्ताना बंधा हुआ है; इसलिये इसे खाने की इच्छा बाले गीध बड़ी कठिनाई से किसी किसी तरह काट पाते हैं। माधव। उसकी तपस्विनी पत्नी जो अभी बालिका है, मांस लोलोप गीधों और कौओं को हटाने की निरंतर चेष्टा करती है परंतु सफल नहीं हो पाती है। 📜 पुरुष प्रवर माधव। विकर्ण नवयुवक देवता के समान कांतिमान, शूरवीर, सुख में पला हुआ तथा सुख भोगने के योग्य ही था; परंतु आज धूल में लोट रहा है। युद्ध में कर्णी, नालीक और नाराचों के प्रहार से इसके मर्मस्थल विदीर्ण हो गये हैं तो भी इस भरतभूषण वीर को अभी तक लक्ष्मी (अंगकान्ति) छोड़ नहीं रही है। 📜 जो शत्रु समूहों का संहार करने वाला था, वह दुर्मुख प्रतिज्ञा पालन करने वाला संग्राम शूर भीमसेन के हाथों मारा जाकर समर में सम्मुख सो रहा है। तात् श्रीकृष्ण इसका यह मुख हिंसक जन्तुओं द्वारा आधा खा लिया गया है, इसलिये सप्तमी के चन्द्रमा की भांति सुशोभित हो रहा है। 📜 श्रीकृष्ण। देखो मेरे इस रणशूर पुत्र का मुख कैसा तेजस्वी है? पता नहीं, मेरा यह वीर पुत्र किस तरह शत्रुओं के हाथ से मारा जाकर धूल फांक रहा है। सौम्य। युद्ध के मुहाने पर जिसके सामने कोई ठहर नहीं पाता था उस देवलोक विजयी दुर्मुख को शत्रुओं ने कैसे मार डाला? 📜 मधुसूदन। देखो, जो धनुर्धरों का आदर्श था वही यह धृतराष्ट्र का पुत्र चित्रसेन मारा जाकर पृथ्वी पर पड़ा हुआ है। विचित्र माला और आभूषण धारण करने वाले उस चित्रसेन को घेरकर शोक से कातर हो रोती हुई युवतियां हिंसक जन्तुओं के साथ उसके पास बैठी हैं। 📜 श्रीकृष्ण। एक ओर स्त्रियों के रोने की आवाज है तो दूसरी ओर हिंसक जन्तुओं की गर्जना हो रही है। यह अद्भुत द्श्य मुझे विचित्र प्रतीत होता है । माधव। देखो, वह देवतुल्य नव-युवक विविंशति, जिसकी सुन्दरी स्त्रियां सदा सेवा किया करती थीं, आज विध्वस्त होकर धूल में पड़ा है। 📜 श्रीकृष्ण। देखो, बाणों से इसका कबच छिन्न-भिन्न हो गया है। युद्ध में मारे गये इस वीर विविंशति को गीध चारों ओर से घेरकर बैठे हैं । जो शूरवीर समरांगण में पाण्डवों की सेना के भीतर घुसकर लोहा लेता था, वही आज सत्पुरुषोचित वीरशैया पर शयन कर रहा है। 📜 श्रीकृष्ण। देखो, विविंशति का मुख अत्यंत उज्ज्वल है, इसके अधरों पर मुस्कराहट खेल रही है, नासिका मनोहर और भौहें सुन्दर हैं यह मुख चन्द्रमा के समान शोभा पा रहा है। ©N S Yadav GoldMine #WoRaat है वासुदेव श्रीकृष्ण इसका यह मुख हिंसक जन्तुओं द्वारा आधा खा लिया गया है पढ़िए महाभारत !! 🙏🙏 महाभारत: स्त्री पर्व एकोनविंष अध्याय:
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दुर्योधन को खून से लथपथ होकर सोया देख उसे हृदय से लगाकर गान्धारी दीन होकर रोने लगी पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व सप्तदष अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📄 वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय। दुर्योधन को मारा देखकर शोक से पीडि़त हुई गान्धारी वन में कटे हुए केले के वृक्ष की तरह सहसा पृथ्वी पर गिर पड़ी ।पुनः होश में आने पर अपने पुत्र को पुकार-पुकार कर वे विलाप करने लगीं। दुर्योधन को खून से लथपथ होकर सोया देख उसे हृदय से लगाकर गान्धारी दीन होकर रोने लगी। उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठी थीं। 📄 वे शोक से आतुर हो हा पुत्र। हा पुत्र कहकर विलाप करने लगीं। दुर्योधन के गले की विशाल हड्डी मांस में छिपी हुई थी। उसने गले में हार और निष्क पहने रखे थे। उन आभूषणों से विभूषित बेटे के वक्षःस्थल को आसूओं से सींचती हुई गान्धारी शोकागनी संतप्त हो रही थी । वे पास ही खड़े हुए श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहने लगीं- बृष्णिनन्दन। प्रभो। 📄 भाई-बन्धुओं का विनाश करने वाला जब यह भीषण संग्राम उपस्थित हुआ था उस समय इस नृपश्रेष्ठ दुर्योधन ने मुझसे हाथ जोड़कर कहा- माताजी। कुटम्बी जनों इस संग्राम में आप मुझे मेरी विजय के लिये आशीर्वाद दें। पुरुषसिंह श्रीकृष्ण। उसके ऐसा कहने पर मैं यह सब जानती थी कि मुझ पर बड़ा भारी संकट आने वाला है, तथापि मैंने उससे यही कहा- जहां धर्म है, वहीं विजय है। 📄 बेटा। शक्तिशाली पुत्र। यदि तुम युद्ध करते हुए धर्म से मोहित न होओगे तो निश्चय ही देवताओं के समान शस्त्रों द्वारा जीते हुए लोकों को प्राप्त कर लोगे। प्रभो। यह बात मैंने पहले ही कह दी थी; इसलिये मुझे इस दुर्योधन के लिये शोक नहीं हो रहा है। मैं तो इन दीन राजा धृतराष्ट्र के लिये शोक मग्न हो रही हूं जिनके सारे भाई-बन्धु मार डाले गये। 📄 माधव। अमर्षशील, योद्धाओं में श्रेष्ठ, अस्त्र विद्या के ज्ञाता, रणदुर्मद तथा वीर सयया पर पर सोये हुए मेरे इस पुत्र को देखो तो सही । शत्रुओं को संताप देने वाला जो दुर्योधन मूर्धा भिशिक्त राजाओं के आगे-आगे चलता था, वही आज यह धूल में लोट रहा है। काल इस उलट-फेर को तो देखो। 📄 निश्चय ही वीर दुर्योधन उस उत्तम गति को प्राप्त हुआ है, जो सबके लिये सुलभ नहीं है क्योंकि यह वीर सेवित शैया पर सामने मुंह किये सो रहा है। पूर्वकाल में जिसके पास बैठकर सुन्दरी स्त्रियां उसके मनोरंजन करती थीं, वीर शैया पर सोये हुए आज उसी वीर का ये अमंगलकारिणी गिदडि़या मन बहलाव करती हैं। 📄 जिसके पास पहले राजा लोग वैठकर उसे आनन्द प्रदान करते थे, आज मरकर धरती पर पड़े हुए उसी वीर के पास गीध बैठे हुए हैं । पहले जिसके पास खड़ी होकर युवतियां सुन्दर पंखे झला करती थीं आज उसी को पक्षीगण अपनी पाखों से हवा करते हैं। यह महाभाहू सत्य पराक्रमी बलवान वीर दुर्योधन भीमसेन ,द्वारा गिराया जाकर युद्धस्थल में सिंह के मारे हुए गजराज के समान सो रहा है। 📄 श्री कृष्ण। भीमसेन की चोट, खाकर खून से लथपथ हो गदा लिये धरती पर सोये हुए दुर्योधन को अपनी आंख से देख लो । केशव। जिस महाबाहु वीर ने पहले ग्यारह अक्षौहिणी सेनाओं को जुटा लिया था वही अपनी अनिति के कारण युद्ध में मार डाला गया। N S Yadav... ©N S Yadav GoldMine #TechnologyDay दुर्योधन को खून से लथपथ होकर सोया देख उसे हृदय से लगाकर गान्धारी दीन होकर रोने लगी पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व
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हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा था पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 1-21 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय। ऐसा कहकर गान्धारी देवी ने वहीं खड़ी रहकर अपनी दिव्य दृष्टि से कौरवों का वह सारा विनाश स्थल देखा। गान्धारी बड़ी ही पतिव्रता, परम सौभाग्यवती, पति के समान वृत का पालन करने वाली, उग्र तपस्या से युक्त तथा सदा सत्य बोलने वाली थीं। पुण्यात्मा महर्षि व्यास के वरदान से वे दिव्य ज्ञान बल से सम्पन्न हो गयी थीं अतः रणभूमि का दृश्य देखकर अनेक प्रकार विलाप करने लगीं। 📜 बुद्धिमी गान्धारी ने नरवीरों के उस अदभूत एवं रोमान्चकारी समरांगण को दूर से ही उसी तरह देखा, जैसे निकट से देखा जाता है। वह रणक्षेत्र हडिडयों, केशों और चर्बियों से भरा था, रक्त प्रवाह से आप्लावित हो रहा था, कई हजार लाशें वहां चारों ओर बिखरी हुई थी। हाथी सवार, घुड़ सवार तथा रथी योद्धाओं के रक्त से मलिन हुए बिना सिर के अगणित धड़ और बिना धड़ के असंख्य मस्तक रणभूमि को ढंके हुए थे। 📜 हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा थ। सियार, बुगले, काले कौए, कक्क और काक उस भूमि का सेवन करते थे। वह स्थान नरभक्षी राक्षसों को आनन्द दे रहा थ। वहां सब ओर कुरर पक्षी छा रहे थे। अमगलमयी गीदडि़यां अपनी बोली बोल रही थीं, गीध सब ओर बैठे हुए थे। उस समय भगवान व्यास की आज्ञा पाकर राजा धृतराष्ट्र तथा युधिष्ठिर आदि समस्त पाण्डव रणभूमि की ओर चले। 📜 जिनके बन्धु-बान्धव मारे गये थे, उन राजा धृतराष्ट्र तथा भगवान श्रीकृष्ण को आगे करके कुरूकुल की स्त्रियों को साथ ले वे सब लोग युद्वस्थल में गये। कुरूक्षेत्र में पहुंचकर उन अनाथ स्त्रियों ने वहां मारे गये अपने पुत्रों, भाइयों, पिताओं तथा पतियों के शरीरों को देखा, जिन्हें मांस-भक्षी जीव-जन्तु, गीदड़ समूह, कौए, भूत, पिशाच, राक्षस और नाना प्रकार के निशाचर नोच-नोच कर खा रहे थे। 📜 रूद्र की क्रीडास्थली के समान उस रणभूमि को देखकर वे स्त्रियां अपने बहूमूल्य रथों से क्रन्दन करती हुई नीचे गिर पड़ीं । जिसे कभी देखा नहीं था, उस अदभूत रणक्षेत्र को देख कर भरतकुल की कुछ स्त्रियां दु:ख से आतुर हो लाशों पर गिर पड़ीं और दूसरी बहुत सी स्त्रियां धरती पर गिर गयीं। उन थकी-मांदी और अनाथ हुई पान्चालों तथा कौरवों की स्त्रियों को वहां चेत नहीं रह गया था। 📜 उन सबकी बड़ी दयनीय दशा हो गयी थी। दु:ख से व्याकुलचित हुई युवतियों के करूण-क्रन्दन से वह अत्यन्त भयंकर युद्वस्थल सब ओर से गूंज उठा। यह देखकर धर्म को जानने वाली सुबलपुत्री गान्धारी ने कमलनयन श्रीकृष्ण को सम्बोधित करके कौरवों के उस विनाश पर दृष्टिपात करते हुए कहा- कमलनयन माधव। मेरी इन विधवा पुत्र वधुओं की ओर देखो, जो केश बिखराये कुररी की भांति विलाप कर रही हैं। 📜 वे अपने पतियों के गुणों का स्मरण करती हुई उनकी लाशों के पास जा रही हैं और पतियों, भाईयों, पिताओं तथा पुत्रों के शरीरों की ओर पृथक- पृथक् दौड़ रही हैं । महाराज कहीं तो जिनके पुत्र मारे गये हैं उन वीर प्रसविनी माताओं से और कहीं जिनके पति वीरगति को प्राप्त हो गये हैं, उन वीरपत्नियों से यह युद्धस्थल घिर गया है। पुरुषसिंह कर्ण, भीष्म, अभिमन्यु, द्रोण, द्रुपद और शल्य जैसे वीरों से जो प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी थे, यह रणभूमि सुशोभित है। ©N S Yadav GoldMine #boat हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा था पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत
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युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था पढ़िए महाभारत !! 📜📜 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 19-16 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था, उन्हीं दिनों तीर्थ यात्रा के प्रसंग से मुझे एक महात्मा का इस रूप में अनुग्रह प्राप्त हुआ। तीर्थ यात्रा के समय देवर्षि लोमष का दर्षन हुआ था। उन्हीं से मैंने यह अनुस्मृति विद्या प्राप्त की थी। इसके सिवा पूर्व काल में ज्ञान योग के प्रभाव से मुझे दिव्य दृष्टि भी प्राप्त हो गयी थी। धृतराष्ट्र ने पूछा- भारत। यहां जो अनाथ और सनाथ युद्धा मरे पड़े हैं, क्या तुम उनके शरीरों का विधि पूर्वक दाह संस्कार करा दोगे। 📜 जिनका कोई संस्कार करने वाला नहीं है तथा जो अग्निहोत्री नहीं रहे हैं, उनका भी प्रेत कर्म तो करना ही होगा, तात । यहां तो बहुतों के अंतेष्टि कर्म करने हैं, हम किस-किस का करें। युधिष्ठिर। जिनकी लाशों का गरूड़ और गीध इधर-उधर घसीट रहें हैं, उन्हें तो श्राद्व कर्म से ही शुभ लोक प्राप्त होंगे। वैशम्पायनजी कहते हैं- महाराज। राजा धृतराष्ट्र के ऐसा कहने पर कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर ने सुधर्मा, धौम्य, सारथी संजय, परम बुद्धिमान विदुर, कुरूवंषी युयुत्सू तथा इन्द्रसेन आदि सेवकों एवं सम्पूर्ण सूतों को यह आज्ञा दी कि आप सब लोग इन सबके प्रेत कार्य को सम्पन्न करावें। 📜 ऐसा न हो कि कोई भी लाष अनाथ के समान नष्ठ हो जाये। धर्मराज के आदेष से विदुरजी, सारथी संजय, सुधर्मा, धौम्य तथा इन्द्रसेन आदि ने चंदन और अगर की लकड़ी कालियक, घी, तेल, सुगन्धित पदार्थ ओर बहुमूल्य रेषमी वस्त्र आदि बस्तुऐं एकत्रित कीं, लकडि़यों का संग्रह किया, टूटे हुए रथों और नाना प्रकार के अस्त्र-षस्त्रों को भी एकत्र कर लिया। फिर उन सबके द्वारा प्रयत्न पूर्वक कई चिताऐं बनाकर क्रम से सभी राजाओं का शास्त्रीय विधि के अनुसार उन्होंने शांत भाव से दाह संस्कार सम्पन्न कराया। 📜 राजा दुर्योधन, उनके निनयानवें माहरथी भाई, राजा शल्य, शल, भूरिश्रवा, राजा जयद्रथ, अभिमन्यु, दुषासन पुत्र, लक्ष्मण, राजा धृष्टकेतु, बृहन्त, सोमदत्त, सौसे भी अधिक संजय वीर, राजा क्षेमधन्वा, बिराट, द्रुपद, षिखण्डी, पान्चालदेषीय द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न, युधामन्यु, पराक्रमी उत्तमौजा, कोसलराज बृहदल, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सुबल पुत्र शकुनि, अचल, बृषक, राजा भगदत्त, पुत्रों सहित अमर्षशील वैकर्तन कर्ण, महाधनुर्धर पांचों कैकय राजकुमार, महारथी त्रिगर्त, राक्षसराज घटोत्कच, बक के भाई राक्षस प्रवर अलम्बुस और राजा जलसंघ- इनका तथा अन्य बहुतेरे सहस्त्रों भूपालों का घी की धारा से प्रज्वलित हुई अग्नियों द्वारा उन लोगों ने दाह कर्म कराया। 📜 किन्ही महामनस्वी वीरों के लिये पितृमेघ (श्राद्वकर्म) आरम्भ कर दिये गये। कुछ लोगों ने वहां सामगान किया तथा कितने ही मनुष्यों ने वहां मरे हुए विभिन्न जनों के लिये महान् शोक प्रकट किया। सामवेदीय मंत्रों तथा ऋचाओं के घोष और स्त्रियों के रोने की आवाज से वहां रात में सभी प्राणियों को बड़ा कष्ट हुआ। उस समय स्वल्प धूप युक्त प्रज्वलित जलाई जाती हुई चिता की अग्नियां आकाष में सूक्ष्म बादलों से ढके हुए ग्रहों के समान दिखाई देती थी। एन एस यादव।।। 📜 इसके बाद वहां अनेक देसो से आये हुए जो अनाथ लोग मारे गये उन सबकी लाशों को मंगवाकर उनके सहस्त्रों ढेर लगाये। फिर घी-तेल में भिगोई हुई बहुत सी लकडि़यों द्वारा स्थिर चित्त बाले लोगों से चिता बनाकर उन सबको विदुर जी ने राजा की आज्ञा के अनुसार दग्ध करवा दिया। इस प्रकार उन सबका दाह कर्म कराकर कुरूराज युधिष्ठिर धृतराष्ट्र को आगे करके गंगाजी की ओर चले गये। ©N S Yadav GoldMine #Sitaare युधिष्ठिर बोले- महाराज। पहले आपकी आज्ञा से जब मैं वन में बिचरता था पढ़िए महाभारत !! 📜📜 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्ल