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Divyanshu Pathak
रूप विलोकि नयन अटके चटके हिय के सब तार मेरे सुध बुध सब बिसराय दई पुलकित मन बेचैन हुआ तरुणाई पे तेरी ये सिर पटके ! :💕👨Good morning ji ☕☕🍉🍫🍫☕☕💕💕🍀☘🙏🌱🍨🍧 : निश्चित ही बिजली का आविष्कार बेंजामिन फ्रेंक्लिन ने किया लेकिन बेंजामिन फ्रेंक्लिन अपनी एक किताब में लि
AB
वषिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय I चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै “व” काराय नमः शिवायः II 💕🌸 ॐ नमः शिवाय 🌸💕 _________________________________________________ अनुवाद :- वसिष्ठ मुनि, अगस्त्य ऋषि और गौतम ऋषि तथ
Vikram Agastya
"सर्दियों के रात" सड़क से प्रेम और वादा/विक्रम अगस्त्य /_ सर्दियों के रात, विरान पड़ी सड़कें.. दोस्तों के चल रहे थे, कंधे पे हाथ रख हमसभी कुछ गुनगुना रहे थे। सर्द हवाएं साथ निभा रही थी, चाँद बादलों के पीछे शरमा रही थीं। विक्रम अगस्त्य झूम उठा , दोस्तों ने संगीत की रंज भरा, मौसम भी महक उठा , चाँद भी संमा देख खूबसूरत रौशनी से दहक उठा, मनोरंजन का पल था, विरान सड़कें भी जग रहा था। "कुछ दूर चलते ही सड़क की आखिरी छोर तक पहुंचा। ना जानें वो सड़कें मुझे से कुछ कह रही थी। राही तो चलते हैं, मुझपे अनेक... इतना जख्म मिला, इतना दरारें मिले, ना जाने तुम कहाँ से आऐं हो, ऐ राही आज मुझे तुमसे सच्चा प्यार मिला। विक्रम अगस्त्य_ मेरे चहेरे पे ठंडी मुस्कान दिखा, मैं उस सड़क को पीछे मुड़ -मुड़कर देख... उससे वादा कर बैठा...ये संमा वापस आऐगी, ये सर्द रात भी होगीं, चाँद की खूबसूरती भी होगीं, ये दोस्त भी साथ होगें, और विक्रम अगस्त्य का आशिकाना अंदाज़ भी होगा। "मन' इतना कह निकल पड़ा आगे.....। _-Vikram Agastya #NojotoQuote विक्रम अगस्त्य और सर्दियों में सड़कों से प्रेम "सर्दियों के रात" सड़क से प्रेम और वादा/विक्रम अगस्त्य /_ सर्दियों के रात, विरान पड़ी सड़के
Ruchi Baria
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय। चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम: शिवायः ॥ ©Ruchi Baria वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय। चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम: शिवायः ॥ वसिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि श्रेष्ठ मु
PARBHASH KMUAR
प्यारे भक्तजनों, क्या आपने कभी किसी ऐसी स्त्री के बारे में सुना है, जिसकी रचना स्वयं एक ऋषि मुनि ने की हो और आगे चलकर, वही उनके जीवनसाथी भी बने हों? अगर नहीं, तो आज हम आपको ऐसी ही एक रोचक कहानी से परिचित कराएंगे और बताएँगे, कि आखिर इस कथन के क्या मायने हैं, कि ‘जहां चाह वहां राह’। तो भक्तों, आप में से काफ़ी लोग धर्म ग्रंथो में शामिल रामायण और महाभारत से परिचित होंगे। इन्हीं ग्रंथों में, अगस्त्य मुनि नाम के एक ऋषि का भी परिचय भी मिलता है। ऐसी मान्यता है, कि वह प्रसिद्ध सप्त ऋषियों और प्रसिद्ध 18 सिद्धों में से एक थे, जो कई सालों तक पोथिगई की पहाड़ियों में विराजमान होकर, जीवनयापन करते रहे थे। महाभारत की एक कथा के अनुसार, एक समय अगस्त्य मुनि को अपने पितरों की तृप्ति और शांति के लिए, विवाह करने की प्रबल इच्छा जागृत हुई। मगर जब उन्हें अपने योग्य कोई कन्या प्राप्त नहीं हुई, तो उन्होंने बहुत सारे जीव-जंतुओं के अंश लेकर, स्वयं ही एक कन्या की रचना की। इसके साथ ही, उन्होंने उस कन्या को संतान के रूप में विदर्भराज को सौंप दिया, जो संतान प्राप्ति के लिए काफ़ी इच्छुक थे। यही कन्या, लोपामुद्रा थीं। इस बात का उल्लेख, काफ़ी सारी जगहों पर मिलता है, कि लोपामुद्रा खुबसूरत होने के साथ-साथ, अत्यंत बुद्धिमान भी थीं और उनके सौंदर्य के चर्चे भी हुआ करते थे। इसी कारणवश, जब उन्होंने ऋषि अगस्त्य से शादी करना स्वीकार किया, तब इस बात से लोगों को हैरानी भी हुई, कि ऐसी रूपवती और राजसी कन्या एक ऋषि से शादी के लिए, कैसे अपना ऐश्वर्य और ठाठ छोड़ रही है। मगर वो कहते हैं ना, कि नियत और नियति से सब कुछ परे है और धर्म ग्रंथ तो होते ही हैं, असंभव के आगे का रास्ता बताने के लिए। तो भक्तों, आप भी इस विचार के साथ अपने जीवन मार्ग में आगे बढ़ें, कि असंभव केवल एक मिथ्या है और कुछ नहीं। ©parbhashrajbcnegmailcomm प्यारे भक्तजनों, क्या आपने कभी किसी ऐसी स्त्री के बारे में सुना है, जिसकी रचना स्वयं एक ऋषि मुनि ने की हो और आगे चलकर, वही उनके जीवनसाथी भी
Vikram Agastya
Vikram Agastya
Vikram Agastya
Dr.Vikram Agastya मैं [विक्रम अगस्त्य] जानता हूँ, मुझसे प्रेम और नफरत करने वाला भी मुझसे प्यार करता हैं। क्योंकि वो मेरे बारे में कुछ तो सोच
Pratima pandey
विष्णु लक्ष्मी से पूछते हैं कि वह ब्राह्मणों से नाराज क्यों रहती हैं तो उत्तर देती हुई लक्ष्मी कहती हैं—अगस्त्य ऋषि ने नाराज होकर मेरे पिता समुद्र को ही पी लिया था, ब्राह्मण भृगु ने क्रोध में आकर आपकी छाती पर लात मारी थी और ये ब्राह्मण लोग बचपन से ही मेरी सौत सरस्वती को प्रसन्न करने का प्रयत्न करते रहते हैं, प्रतिदिन शिव की पूजा के लिए मेरे निवास स्थान से कमल पुष्पों को उजाड़ देते हैं। हे स्वामी! यही कारण है, जिससे मैं ब्राह्मणों से सदा दूर रहती हूं। । ©Pratima pandey विष्णु लक्ष्मी से पूछते हैं कि वह ब्राह्मणों से नाराज क्यों रहती हैं तो उत्तर देती हुई लक्ष्मी कहती हैं—अगस्त्य ऋषि ने नाराज होकर मेरे पिता