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KUNWA SAY
White तुम बिलकुल नाजुक हो गुलाब जैसी हो , तुम दिलकश अंदाज जैसी हो ,लबो को छूकर जिस्म में उतर जाऊं ,,तुम संगेमरमर आफताब जैसी हो ,,👩❤️💋👨 मेरे को फोलो करें बहूत मेहनत करते है ©KUNWA SAY #Couple तुम बिलकुल नाजुक गुलाब जैसी हो ,तुम दिलकश अंदाज जैसी हो ,... ,लबो को छूकर जिस्म में उतर जाऊं ,... ,तुम संगेमरमर आफताब जैसी हो ,,
Bindu Sharma
हाले ए दिल का अगर हमारे, उनको इल्म होता, खैरियत पूछने की , उन को जरूरत क्या होती... हाल है नाजुक, यह खबर उन को हो गई होती... ©Bindu Sharma #नाजुक
Sethi Ji
♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️ ♥️ माँ की मोहब्बत , ख़ुदा की इबादत ♥️ ♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️ दिल टूट जाते हैं , जब उम्मीदे टूट जाती हैं बिना कुछ करें इंसान की किस्मत लूट जाती हैं मोहब्बत का क्या हैं , मोहब्बत फिर मिल जाती हैँ जीवन के किसी हसीन मोड़ पर जवानी भी लगाने लगती हैं बोझ मुझे जब मेरी माँ मुझसे रूठ जाती हैं 💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 ©Sethi Ji 🩷💫 इश्क़ में आबाद 💫🩷 🩷💫 इश्क़ में आज़ाद 💫🩷 तेरे प्यार में खुद को बर्बाद किया ।। आज बड़ी फुरसत से तुझे याद किया ।। तुम चले गए हमको छोड़ कर
bhim ka लाडला official
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया :- पहले जैसे अब नहीं , होते मयके मान । पर लड़की तो आज भी , इन सबसे अंजान ।। इन सबसे अंजान , खुशी से मयके रहती । भाई-भाभी मातु , उसी के घर को डसती ।। सौहर है चुपचाप , बीवियाँ होती दहले । इसीलिए तो आज ,बीवियाँ बोले पहले ।। बिटिया का घर द्वार वो , पाता नहीं उबार । देती रहती मातु जो , पग-पग नये विचार ।। पग-पग नये विचार , कलह भर घर में होता । मिलता नहीं सकून , बैठकर सौहर रोता ।। मिले नही उपचार , दर्द की खाता टिकिया । खुश होते वो लोग , वहम में रखकर बिटिया ।। पहले कसकर बाँध ले , तू अपने हर छोर । छूट न पाये फिर कभी , जीवन की ये डोर ।। जीवन की ये डोर , हाथ में अपने लेकर । देना सुख की छाँव , यहाँ जो भी हो बेघर ।। लेकिन रख लो याद , नही बनना तुम नहले । ये जग भोलेनाथ , तभी सौपेंगे पहले ।। नहले पे दहला बनो , तभी बनेगी बात । मानेगा संसार भी , तभी तुम्हें दिन रात ।। तभी तुम्हें दिन रात , प्रेम सबसे तुम भरना । बदी करे जब लोग , अँगुलियाँ टेढ़ी करना । बनकर भोले नाथ , करो फिर तांडव पहले ।। फिर मिले समाधान , बनोगे जब तुम दहले ।। सरसों के वह फूल सी , नाजुक लगती आज । करना चाहे हम सदा , दिल में उसके राज ।। दिल में उसके राज , यही हम अभी छुपाएँ । सोच रहा हूँ आज , उसे हम क्यों न बताएँ ।। मन में इतनी चाह , छुपाए कैसे बरसों । आ जाए जो पास , लगे वह नाजुक सरसों ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- पहले जैसे अब नहीं , होते मयके मान । पर लड़की तो आज भी , इन सबसे अंजान ।। इन सबसे अंजान , खुशी से मयके रहती ।