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Devesh Dixit
नींद (दोहे) सबसे प्यारी नींद है, पूरी करना मान। जिसको आती यह नहीं, होता वह हैरान।। थका-थका तब वह लगे, नींद करे बेहाल। जब तक सोता है नहीं, पीड़ित रहे कपाल।। बना रहे व्यवधान भी, काम रहे नाकाम। त्रुटियों से भरपूर वह, अनुचित हो अंजाम।। आती खुद से नींद जब, उचित रहे व्यवहार। सफल रहे वह काम में, जीवन सुखी अपार।। आती खुद से है नहीं, निद्रा जिसको जान। लेनी पड़ती है दवा, पूरी होती मान।। ईश्वर ने दी नींद है, उचित करो उपयोग। समय-समय पर लें इसे, दूर रहें तब रोग।। अधिक समय इस नींद को, देना मत तुम मान। काम सभी हों देर से, बनो नहीं नादान।। ......................................................... देवेश दीक्षित स्वरचित एवं मौलिक ©Devesh Dixit #नींद #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry नींद (दोहे) सबसे प्यारी नींद है, पूरी करना मान। जिसको आती यह नहीं, होता वह हैरान।। थका-थका त
Abhishek 'रैबारि' Gairola
खौस पूर्णता की क्या बात है यदि यह अगर सिद्धि का मापक होती तो हरित पादपों के कपाल पर सफ़ेद पुष्पों की खौस न होती। ©Abhishek 'रैबारि' Gairola खौस पूर्णता की क्या बात है यदि यह अगर सिद्धि का मापक होती तो हरित पादपों के कपाल पर सफ़ेद पुष्पों की खौस न होती। ।। #love #life #poem #poet
सुसि ग़ाफ़िल
खुरचनों के कंकाल पर कपाल रख कर बैठा हूं सुबह सवेरे रौंदे गए अधिकार लेकर बैठा हूं आई है हिस्से में सूखे के पतों की नस मरहम के लिए हाथ में कपास के फोहे लिए बैठा हूं जड़ से आया है दर्द फुटकर बहार और मैं सीने पर गुलाब लिए बैठा हूं रहम कर भी लोग खुदा ना जाने में क्या क्या हिसाब लिए बैठा हूं // खुरचनों के कंकाल पर कपाल रख कर बैठा हूं सुबह सवेरे रौंदे गए अधिकार लेकर बैठा हूं आई है हिस्से में सूखे के पतों की नस
Rupam Jha
प्रथम पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि🙏आज आप सबसे ये भावविभोर कर देने वाली रचना साझा कर रही हूं जो Raunak जी के द्वारा लिखी गयी थी हमारे पूर्
S. Bhaskar
आघात कर रात काली कपाल भारी जुग्नुओं का देश है, जो ढल रहा है खुद में ही ये कैसा परिवेश है, जो ताप पर है सांप जैसा फन निकाले देख रहा, जहर में भी मिठास है तू मूक हो क्यूं मौन रहा, ये युद्ध है कुरुक्षेत्र का तू सारथी क्यूं बन गया, धनुष उठा प्रहार कर जो तेरा है उसपर है आघात कर। शस्त्र त्याग भूमि गत क्यों घुटनों के बल चल रहा, शत्रु है ये मित्र नहीं जो हसी में तेरा मान छल रहा, मिटा दे तू पाप अब मिटा दे पापियों का घमंड, सब देख तुझे कांप जाए दिखा दे ऐसा रूप प्रचंड, जो तुझपे उठे सवाल गर्व से जवाब पर सवार कर, अपने पराए का भेद नहीं बस तू आघात कर। जो तुझमें है क्रोध की लपटें जला के इसको भस्म कर, ना हो सके तो घूंट पी और वक्त पर थोड़ा सब्र कर, नियति ने सबको दिया है तेरा भी वक्त आएगा, बिना की भी शस्त्र का तो लंका पर विजय फहराएगा, डर को बना हथियार और पर सिने पर प्रहार कर, अपने पराए का भेद नहीं बस तू आघात कर। अपने साथ होंगे जब तुझमें सब समर्थ होगा, किन्तु समय कभी ना कभी तो विभक्त होगा, लहू का तू घूंट ले और शत्रु का मन से हार कर, उठा जबान और बस तू आघात कर आघात कर। आघात कर रात काली कपाल भारी जुग्नुओं का देश है, जो ढल रहा है खुद में ही ये कैसा परिवेश है, जो ताप पर है सांप जैसा फन निकाले देख रहा, जहर में
Rohit Sharma
शमशान में हूँ नाचता, मैं मृत्यु का ग़ुरूर हूँ साम दाम तुम्हीं रखो, मैं दंड में सम्पूर्ण हूँ चीर आया चरम को मैं, मार आया मैं को मैं मैं मैं नहीं मैं भय नहीं, जो तू सोचता हैं वो ये हैं नहीं काल का कपाल हूँ, मूल की चिंघाड़ हूँ मैं आदि अनंत महाकाल हूं.. महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें । ।। जय श्री महाकाल ।। #शिव_गोरी🙏 ©Rohit Sharma शमशान में हूँ नाचता, मैं मृत्यु का ग़ुरूर हूँ साम दाम तुम्हीं रखो, मैं दंड में सम्पूर्ण हूँ चीर आया चरम को मैं, मार आया मैं को मैं मैं मैं न
AB
मेरी कोई तृष्णा नहीं एक शिव मेरे ... और मैं आपकी प्रकृति... अंत तुम, आरम्भ तुम आदि तुम, अनादि तुम राग तुम, बैराग तुम महेश तुम, ओंकार तुम जोगी तुम, ताँडव तुम आशुतोष तुम,उमाकांत तुम प्रलय तुम, मुक्तेश्वर तुम रूद्र तुम, अभयंकर तुम नागेश्वर तुम, विश्वेशवर तुम अमर तुम, मृत्युंजय तुम हे ! महाकाल, महादेव अर्धनारीश्वर तुम... और मैं आपकी...अर्द्धांगिनी ! " साधती हूं मन में जपती हूं ओंमकार मन में, मेरे मन में ह्रदय में बसते तुम, मेरी भोंहो के बिल्कुल बीच में विराजमान तुम कपाल में, नेकों-अनेको
अशेष_शून्य
अमिट हैं , अडिग हैं, ये अविनाशी हैं, ______मेरे गिरिश्वर कैलाश वासी हैं । सरल हैं , सुगम हैं , ये कल्याणकारी हैं, ______मेरे शंकर को काशी प्यारी है । आदि हैं , अंत हैं , ये कामारी हैं, ______मेरे महेश्वर चंद्र धारी हैं । कठिन हैं , अगम हैं , ये त्रिनेत्रधारी हैं, _______मेरे विश्वेश्वर शूल पाणी हैं । उग्र हैं , रूद्र हैं , ये पिनाकी हैं, _____मेरे पर्मेश्वर कपाली हैं । सौम्य हैं , कोमल हैं , ये शिवाप्रिय हैं, ________मेरे अनीश्वर सामप्रिय हैं । प्रेम हैं , जीवन हैं , ये स्वरमयी हैं ______मेरे भूतपति जगद्व्यापी हैं। सत्य हैं , शाश्वत हैं , ये कपर्दी हैं _____मेरे मृत्युंजय कृपानिधि हैं ।। -Anjali Rai अमिट हैं , अडिग हैं, ये अविनाशी हैं ______मेरे गिरिश्वर कैलाश वासी हैं । सरल हैं , सुगम हैं , ये कल्याणकारी हैं ______मेरे शंकर को काशी प्य
Tarun Vij भारतीय
'चीख़' (कविता अनुशीर्षक में पढ़े) चीख एक ध्वनि है, ध्वनि, जो वर्षों की पीड़ा से भरी है, जिसमें वेग है, संवेदनाएं है और जो उत्पन होती है एक वक्त की अशांति के बाद, जब पीड़ा इ
Tarun Vij भारतीय
मैं जी भर जिया, मन से मरूं। लौट कर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं। :- श्री अटल बिहारी वाजपेई जी एक याद है, एक छोटे से बच्चे की जिसने लाउडस्पीकर के शोर में एक बहुत ही आकर्षक, ताकतवर आवाज में एक कविता सुनी थी, "हार नहीं मानूंगा, रार नहीं