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Ankur tiwari
White कुछ बात पुरानी लिखनी थी मुझे एक कहानी लिखनी थी यूं ही अच्छा बनने में जो बीत गईं मुझे वो एक जवानी लिखनी थी ज्यादा खोया कम ही पाया वो यादें धुंधली धुंधली सी बाकी हैं बेकार जो ऐसे ही बीत गईं वो एक जवानी बाकी हैं सबका सोचा सबका जाना मन की अपने ना किया कभी फिर भी लांक्षन ही मिला उसे वो भले रहा कितना भी सही वो समय गया वो दिन गुजरे पर आज तलक वो अकेला है जीवन का बसंत हैं बीत गया पर अब भी एकांत का मेला हैं सब दोस्त यार भी हंसते हैं देते ताना हर बार उसे चाहें भीड़ में हो या मेले में मिलती अक्सर दुत्कार उसे अब तो खुद पर पछताता हैं पर कुछ भी कर ना पाता है हसता दिखता हैं बाहर से अंदर से घुटता जाता हैं फिर भी दुनियां में जी हैं रहा आंसू घुट घुट कर पी है रहा जीवन की जंग से हारा है वो लड़का एक बेचारा हैं ©Ankur tiwari #Moon कुछ बात पुरानी लिखनी थी मुझे एक कहानी लिखनी थी यूं ही अच्छा बनने में जो बीत गईं मुझे वो एक जवानी लिखनी थी ज्यादा खोया कम ही पाया वो
Yashpal Sharma &J.K
White शतरंज कि चालो का खोफ तो उनहे होता हैं, जो सियासत करते हैं, हम तो भगवान परशुराम के बंशज है ना हार की फिक्र और ना जीत का जिक्र। ©Yashpal Sharma &J.K #akshaya_tritiya_2024 शतरंज कि चालो का खोफ तो उनहे होता हैं, जो सियासत करते हैं, हम तो भगवान परशुराम के बंशज है ना हार की फिक्र और ना जीत का
Bharat Bhushan pathak
मन साफ सदा रखें, कभी किसी को न ठगें, वैर भाव पाले नहीं, प्रेम अपनाइए। बिखरे असंख्य रंग, दया बिन बदरंग, विश्वास सभी पे करें, अब समझाइए। दुनिया का लगा मेला, खूब भागे यहाँ रैला, भलाई जो कर रहे, उसे ना सताइए। पाप-पुण्य,मोह-माया, काम-क्रोध यहाँ आया, ईर्ष्या का घना कुहरा, खुद को बचाइए। ©Bharat Bhushan pathak #सँभल मन साफ सदा रखें, कभी किसी को न ठगें, वैर भाव पाले नहीं, प्रेम अपनाइए। बिखरे असंख्य रंग, दया बिन बदरंग,
Khushiram Yadav
बाहर से मुस्कुराता है ये शक्स अंदर नहीं जानते कितने कांटों का मेला है 💝😔✨ ©Khushiram Yadav #intezaar काटो का मेला है😔
Internet Jockey
सुख दुख तो समय का गोल चक्कर है भैया खेला एक जाएगा तो दूसरा आएगा, यही जीवन का मेला ©Internet Jockey सुख दुख तो समय का गोल चक्कर है भैया खेला एक जाएगा तो दूसरा आएगा, यही जीवन का मेला
Ravendra
Shailendra Gond kavi
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सुन रघुवर के रूप हैं । शरण चला जा उनके प्यारे , वह भी तेरे भूप हैं ।। मन को अपने आज सँभालो , उलझ गया है बाट में । सारे तीरथ मन के होते , जो है गंगा घाट में ।। तन के वस्त्र नहीं मिलते तो, लिपटा रह तू टाट में । आ जायेगी नींद तुझे भी , सुन ले टूटी खाट में ।। जितनी मन्नत माँग रहे हो , जाकर तुम दरगाह में । उतनी सेवा दीन दुखी की , जाकर कर दो राह में ।। सुनो दौड़ आयेंगी खुशियाँ , बस इतनी परवाह में । मत ले उनकी आज परीक्षा , वो हैं कितनी थाह में ।। जीवन में खुशियों का मेला , आता मन को मार के । दूजा कर्म हमेशा देता , सुन खुशियां उपहार के ।। जीवन की भागा दौड़ी में , बैठो मत तुम हार के । यही सीढ़ियां ऊपर जाएं , देखो नित संसार के ।। २८/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सु