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Randeep Yagyik
नई नहीं पुरानी हो चली एक बात है "अश्वथामा" मारा गया युधिष्ठिर का उवाच है लेकिन अश्वथामा अमर है कृष्ण का यह अभिशाप है युधिष्ठिर ने क्या झूठ बोला फिरसे जानने की यह बात है फिरसे गर्भ पर हमला हुआ देखने की यह बात है लेकिन हां "अश्वथामा" मार दिया गया युधिष्ठिर का सत्य ही उवाच है जंगल और शहर के रहने वालों की यह बात है शहर के अश्वथामा ने जंगल के अश्वथामा को मारा पुरानी नहीं अभी की ही एक बात है.. - " रणदीप " 😢 #अश्वथामा
Harpinder Kaur
भटक रहा है मन रूपी अश्वथामा वैर, क्रोध, लालच, उतेजना, अहम लिए पृथ्वी के दर दर पर शायद इस मन को मृत्यु का भय नहीं तभी तो कृष्ण द्वारा अश्वथामा को दिया अभिशाप फलित हो रहा हर एक अश्वथामा के अन्दर और न जाने कितने समय तक , कितनों में ये अभिशाप चक्र चलता रहेगा ©Harpinder Kaur # अश्वथामा #walkingalone
Ajay Amitabh Suman
.............. ©Ajay Amitabh Suman दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-39 #महाभारत #दुर्योधन #अश्वथामा # वैष्णवास्त्र #Mahabharata #Duryodhan #Asvatthama #Vaishnavastra ===== दुर्योधन क
N S Yadav GoldMine
धृतराष्ट्र का शोकातुर हो जाना और विदुरजी का उन्हें पुन शोक निवारण के लिये उपदेश पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 महाभारत: नवम पर्व चतुर्थ अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey} धृतराष्ट्र का शोकातुर हो जाना और विदुरजी का उन्हें पुन: शोकनिवारण के लिये उपदेश :- 🎯 जनमेजय ने पूछा–विप्रर्षे ! भगवान् व्यास के चले जाने पर राजा धृतराष्ट्र ने क्या किया ? यह मुझे विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें। इसी प्रकार कुरुवंशी राजा महामनस्वी धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने तथा कृप आदि तीनों महारथियों ने क्या किया ?(Rao Sahab N S Yadav) 🎯 अश्वथामा का कर्म तो मैंने सुन लिया, परस्पर जो शाप दिये गये, उनका हाल भी मालूम हो गया। अब आगे का वृत्तान्त बताइये, जिसे संजय ने धृतराष्ट्र को सुनाया हो। वैशम्पायनजी ने कहा–राजन् ! दुर्योधन तथा उसकी सारी सेनाओं के मारे जाने पर संजय की दिव्य दृष्टि चली गयी और वह धृतराष्ट्र की सभा में उपस्थित हुआ। 🎯 संजय बोला–राजन् ! नाना जनपदों के स्वामी विभिन्न देशों से आकर सब-के-सब आप के पुत्रों के साथ पितृलोक के पथिक बन गये। भारत ! आपके पुत्र से सब लोगों ने सदा शान्ति केलिये याचना की, तो भी उसने वैर का अन्त करने की इच्छा से सारे भूमण्डलका विनाश करा दिया। महाराज ! अब आप क्रमश: अपने ताऊ, चाचा, पुत्र और पौत्रों का तृतक सम्बन्धी कर्म करवाइये। 🎯 वैशम्पायनजी कहते हैं–राजन् ! संजय का यह घोर वचन सुनकर राजा धृतराष्ट्र प्राणशून्य की भाँति निश्चेष्ट हो पृथ्वीपर गिर पड़े। पृथ्वीपति धृतराष्ट्र को पृथ्वी पर सोया देख सब धर्मों के ज्ञाता विदुरजी उनके पास आये और इस प्रकार बोले। राजन् ! उठिये, क्यों सो रहे हैं? भरतश्रेष्ठ ! शोक न कीजिये। लोकनाथ ! समस्त प्राणियों की यही अन्तिम गति है। 🎯 भरतनन्दन ! सभी प्राणी जन्म से पहले अव्यक्त थे, बीच में व्यक्त हुए और अन्त में मृत्यु के बाद फिर अव्यक्त ही हो जायेंगे, ऐसी दशा में उनके लिये शोक करने की क्या बात है। शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न ही मरता है। 🎯 जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है, तब आप किस लिये बारंबार शोक कर रहे हैं ? महाराज ! जो युद्ध नहीं करता, वह भी मरता है और युद्ध करने वाला भी जीवित बच जाता है। काल को पाकर कोई भी उसका उल्लंघन नहीं कर सकता। काल सभी विविध प्राणियों को खींचता है। 🎯 कुलश्रेष्ठ ! काल के लिये न तो कोई प्रिय है और न कोई द्वेष का पात्र ही। भरतश्रेष्ठ ! जैसे वायु तिनकों को सब ओर उड़ाती और गिराती रहती है, उसी प्रकार सारे प्राणी काल के अधीन होकर आते-जाते रहते हैं। एक साथ आये हुए सभी प्राणियों को एक दिन वहीं जाना है। 🎯 जिसका काल आ गया, वह पहले चला जाता है फिर उसके लिये व्यर्थ शोक क्यों ? राजन् ! जो लोग युद्ध में मारे गये हैं और जिनके लिये आप बारंबार शोक कर रहे हैं, वे महामनस्वी वीर शोक करने के योग्य नहीं हैं, वे सब-के-सब स्वर्गलोक में चले गये। अपने शरीर का त्याग करने वाले शूरवीर जिस तरह स्वर्ग में जाते हैं, उस तरह दक्षिणावाले यज्ञों, तपस्याओं तथा विद्या से भी कोई नहीं जा सकता। ©N S Yadav GoldMine #humanrights धृतराष्ट्र का शोकातुर हो जाना और विदुरजी का उन्हें पुन शोक निवारण के लिये उपदेश पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 महाभारत: नवम पर्व चतुर्थ