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Bhaskara Bedi
मेरे बगीचे का गुलाब:- जिम्मेदारियों के बोझ तले,उम्मीदों को साथ लेकर,रंग बदलने मैं चला बगीचे में एक गुलाब खिलाऊँ मैनें इस ख्वाब को पाला। आसान नहीं था इतना इस मुकाम को पाना, खाली पड़ी उस बंजर भूमि में एक गुलाब खिलाना। नेमतें थी मेरे साथ नामुमकिन तो कुछ भी नहीं, खून-पसीने से सिंचा खाली पड़ी थी जो बंजर भूमि । सुरभित हो मेरा गुलिस्तान ढलती शाम ने दुहाई दी। ख्वाब अधुरे न रह पाए ,लिख लो तुम खुद की कहानी मौन पड़ा था मानव प्राणी खुद के लिखे मुकद्दर से, पर जाग उठा अब मेरा अन्तर्मन एक सुर्ख कलि के खिल जाने से। कितने अरमान सज चुके थे,सपने हो रहे थे साकार, किरणों ने जिसका मुख खोला ,उसने प्रकट किया अपना आभार । था उद्वेलित मेरा हृदय ,अलंकृत हो चला मेरा उपवन,पर लगे ख्वाबों को, व्यथित न हो मेरा मन नमन किया, शून्य से फुटे उजास को। शनैः शनैः काल बीता,हरेक पहेली मैं सुलझाता उस गहराती रैन में, एक सुबह मंजिल देखी खिले जो उस गुलाब में। पड़े हुए थे कई संदेशें गुलाब के उस पंखुडियों में,कितने किस्से छिपे थे फूलों की मुस्कान में। झूमता था रोज वह सनसनाती हवाओं में,हर रहस्य जाना मैनें बदलते हर मौसम में। किसके काम आऊँगा मैं,कहाँ तू चढ़ाएगा मुझे ,क्या मैं यहाँ महफूज़ हूँ? अजीब सवालात थे यहाँ,सुन हालात उनके रोज टपकते मेरे आँसू । अनभिज्ञ था मैं धर्म -अधर्म के आडम्बर से,धिक्करा खुद को मैनें । क्या मैनें पाप किया,क्या मैनें अन्याय किया,तुम्हें नया जन्म देकर, नहीं,तिरंगे में तुम लिपटे जाओगे,चढ़ाऊँगा तुम्हें शहीदों की चिता पर बलिदान तुम्हारा व्यर्थ न जाए,कर दो पावन उसके आँगन को, नाचती जो घूँघरू पहन धूमिल न कर उसकी मर्यादा को। वज़ूद नहीं मेरा यहाँ जालिमों की बस्ती में। मैं यूँ ही बेबुनियाद हो जाऊँगा इस सियासी समरांगण में। पुलकित,पुष्पित,पल्लवित हो जिस धरा को तुम चूमो। द्वंद्व ,बैर सब मिटे ऐसे तुम जग में मुस्काओ। क्यों मिटता नहीं अहम मानव का,फँस चुका जो अन्तर्द्वन्द्व में। कोई सत्य से परेशां हैं ,कोई मरघट से अंजान है, देखा नहीं किसी ने गुलाब को ,हँसता है काटों में फिर भी वो मौन है। बाकी रह गया था कुछ सन्देशा,काल चक्र ने रूप दिखाया । वक़्त के थपेडों में,हवाओं ने अपना रूख मोड़ा। देख मुरझाते गुलाब को अश्कों का सैलाब उमड़ पड़ा, वही सहर था,वही शाम थी,बस गुलशन में गुल की कमी थी । एकांतता का आभास हुआ ,विरह का ताप उठा। किस्से तेरे पूरे होंगें,मेरे बाग का गुलाब कह छोड़ मुझे चला। :-भास्कर बेदी ।। मेरे बगीचे का गुलाब
LalitPurohit
इन्शान के भेस में आज बहुत पागल दिख रहे उस कुदरत ने बनाया इन्शान को उसके बगीचे की देखभाल के लिए आज मतलब के लिए आज वो कुदरत को नुकसान पहुंचा के खुद की चित्ता जलाने की तैयारी कर रहा है और कहता है इन्शान की सबसे होशियार है कैसे बताओ ?????? lalitpurohit28 #NojotoQuote जरा ख्याल रखो इस कुदरती बगीचे का
Rahul Shastri worldcitizens2121
Safar July 10,2019 सत्संग का अर्थ होता है गुरु की मौजूदगी! गुरु कुछ करता नहीं हैं, मौजूदगी ही पर्याप्त है। ओशो सत्संग का अर्थ
Aman Baranwal
मिट्टी का जिस्म और आग सी ख्वाहिशें, खाक होना लाजमी है, क्योंकि आदमी आखिर आदमी है! जीवन का अर्थ
divya...
इश्क़ आज भी है मगर राधा- कृष्ण जैसा नहीं ... होगे एक - आध भी उनके जैसे अगर... तो उनको चैन का जीवन नहीं... लोगो को प्रेम का हर दस्तूर झुटा लगता है... क्योंकि उन्होंने कभी किसी से .... सच्चा प्रेम किया ही नहीं... प्रेम का अर्थ...
Kumar Gunjan
"सफलता" कभी भी अर्थ शिक्षा, पद या गरिमा द्वारा निर्धारित नहीं की जा सकती सफलता एक संतुष्टि हैं, जिसे आप निर्धारित करते है। सफलता का अर्थ
नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
जीवन का अर्थ ..........…........... इस पृथ्वी पर मानव आता है, जीता है,चला जाता है। लेकिन जीने का अर्थ कम ही लोग समझ पाते हैं। जिस जीवन में दया,क्षमा,परोपकार न हो उसका कोई अर्थ नहीं होता।त्याग भी जीवन का एक अभिन्न अंग है। लेकिन समय, काल और परिस्थिति के अनुसार कब किसका त्याग करना उचित होगा इसका भी ज्ञान होना बहुत जरूरी है। सुमार्ग पर चलना,कल्याणकारी काम करना ही जीवन का अर्थ होता है। ©नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।) # जीवन का अर्थ।