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Vivek Vistar
जगत हेतु मानवता के मानकों की पराकाष्ठा का प्रतीकशास्त्र निर्धारित करने वाले और उन मानकों की कसौटी पर स्वयं को कसने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम सियावर रामचंद्र के जन्मोत्सव श्रीराम नवमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं । ©Vivek Vistar जगत हेतु मानवता के मानकों की पराकाष्ठा का प्रतीकशास्त्र निर्धारित करने वाले और उन मानकों की कसौटी पर स्वयं को कसने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम स
Sarita Shreyasi
पत्नी हूँ मैं,यूँ तो स्त्री की उपजाति हूँ, किन्तु जब स्त्री आलोचना की बारी आती है, तो मैं अपनी जाति की प्रतिनिधि बन जाती हूँ, घर बसाने, वंश बढ़ाने के लिए अपनायी जाती हूँ, भिन्न-भिन्न मानकों और प्रतीकों से तौली जाती हूँ, मेरी निष्ठा और समर्पण तभी सिद्ध होते हैं,जब मैं, अपने माँ-बाप के लिए पूर्णतया परायी हो जाती हूँ, इसलिए यदि तुम पर अपना अधिकार चाहती हूँ, तो इसमें आलोचना और नाजायज़ माँग कैसी ? मैं तुम्हारे लिए ही तो अपना सब पीछे छोड़ आती हूँ। सिंदूर बिंदी शाखा-पोला,न मंगल-सूत्र ही मेरे नाम का, चलता नहीं साथ तुम्हारे,कोई भी चिन्ह मेरे सुहाग का, बच्चे की माँ हूँ, ये तो मेरी फैली काया से ही दिख जाता है, बच्चे के बाप का नाम तो बस कागज ही में लिखा जाता है। घर से बाहर,मुझ से दूर,तुम पूरी तरह कुँवारे ही हो, मैं जहाँ तक चली जाऊँ,ब्याहता हूँ,और तुम्हारी ही हूँ। इसलिए तुम्हारे प्रेम की अभिव्यक्ति हर बार चाहती हूँ, वफादारी का आश्वासन तुमसे बार-बार मांगती हूँ। पत्नी हूँ मैं,यूँ तो स्त्री की उपजाति हूँ, किन्तु जब स्त्री आलोचना की बारी आती है, तो मैं अपनी जाति की प्रतिनिधि बन जाती हूँ, घर बसाने, वंश
vishnu prabhakar singh
'जीत तो अब आरम्भ है' देखो शीर्ष पर राम को सौजन्य, अनुमोदन एवं आचार सोचो कुछ तो घटा है जो कोविद है । विरोध हुआ समानांतार चयन हुआ विराट जीत तो अब आरम्भ है लम्बित पर अनुशंसा भर नहीं उस पथ की जो कोविद है। आगाज है केवल समर्पन का अचूक या लक्ष्य भेदि नहीं केवल निराला अखिल भारत सा संरचित दृष्टिकोणो पर समर्पण में एक और हाथ बढ़ा जो कोविद है। गौण रहस्यमयता और एेसी एकाग्रता प्रतिष्ठित ही कर लेने की ललक उत्सर्जित अन्य व अन्य आयामो के मध्य सरलता से सत्य लिए कठोर वैज्ञानिक है यह कोविद है। प्रारंभ से जो क्रमिक विकास की ओर मूलभूत एवं अनुशांधनिक दौड़ में जुगत लगाती जोश लचीला कदम बढ़ाती कांधे से कांधा मिलाने को आधुनिकता की ओर यह संयोग कोविद है। अनेक मानकों पर उपस्थिति विस्तार लिए संचित परकाष्ठा द्वारा परिभाषित आचरण सत्र दर सत्र विपक्ष का निर्माण करती समाजिक समरसता मे समुहिकता बढ़ाती विरोधाभाषी लोकतंत्र मे यह कोविद है। कविता, वर्तमान महामहिम के चयन के विशेष दिन लिखी गई थी।फेसबुक स्मृति से योरकोट तक का सफर करती यह कविता नये आयामों में प्रवाहित होती लगी।इसलिए
Anuradha T Gautam 6280
The Sarvajeet Krishna
"मुझे भाता है मेरे अंदर का गँवार " (Caption) मुझे भाता है मेरे अंदर का गँवार वो मेरे शहरी रूप से कहीं अच्छा था जो समझ आता था बोल जाता था अभी की तरह उसे तौल कर बोलना नहीं आता था जिसे कभ
KP EDUCATION HD
KP GK SAGAR STUDY short YouTube channel questions ©KP STORY CREATOR इसके साथ ही आरबीआई ने बैंकों से 2,000 रुपये का नोट देने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने को कहा है। उसने बैंकों से 30 सितंबर तक ये नोट जमा करने
Aprasil mishra
संघर्ष बनाम सफलता उम्मीदों को सम्हालते हुए अब तक एक अरसा व्यतीत हो चुका है, मन अब हर दिन उबासियां ले रहा है। चेतन्यबोध क्षण प्रति क्षण विवेक शून्
Divyanshu Pathak
21वीं सदी के इन 20 वर्षों में दुनिया के बाकी 142 देश शानदार प्रगति कर रहे हैं जिनमें - चीन ब्राजील रूस इंडोनेशिया तुर्की केन्या दक्षिण अफ्रीका के साथ हमारा भारत भी शामिल है । इस विकास की हमारे देश ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। आबादी की बेलगाम बढ़ोतरी और अनियंत्रित अनियोजित औद्योगिकीकरण ने कई शहरों को पर्यावरणीय नर्क बना डाला और तमाम नगर इसी राह पर चल रहे हैं। देश के 88 में से 75 जॉन बुरी तरह प्रदूषित हो चुके हैं और पवित्र नदियों का पानी नहाने लायक भी नहीं बचा है। 💕🙏#नमस्कार 💕🙏 : बढ़ती जनसंख्या के दबाव और अंधाधुंध तरीके से औद्योगिकीकरण व शहरीकरण की मार झेल रहे हमारे देश में इन समस्याओं से निपटने के नाम
Peeyush Umarav