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Lalit Saxena
हमने ख़ुद को ज़िंदा जलते देखा है रोशन दिन आँखों में ढलते देखा है सांस-सांस पीर कसमसाती रहती मुर्दा सपने पांवपांव चलते देखा है उगते सूरज के जलवे देखे हर दिन उदास शाम को भी उतरते देखा है ख़्वाहिशें, सारे ही रंग उतार देती है उम्रदराज़ को भी, मचलते देखा है दरवाजे पर नहीं कोई दस्तक हुई हर सुब्ह उन्हें वैसे गुज़रते देखा है दिन बुरे हों, तो ये दरिया भी सूखे बुलंदियों को भी, बिखरते देखा है ©Lalit Saxena ग़ज़ल
ग़ज़ल
read moredharmendra kumar yadav
White मज़ाक था या सच जाने क्या सोचकर आया था मेरा अज़ीज़ मुझको गिफ्ट में आईना लाया था वो आसूं सिर्फ आसूं नहीं बाग़ी भी हो सकते थे पर क्या शख्स रहा था वो जो फिर भी निभाया था जिससे ज्यादातर नाराज़ ही रहता रहा ये दिल उसको ही अपने बुरे दिनों में अपने साथ पाया था वो मेरी जान से जिक्र की है कि वो मेरी होती जो मुझे उन दिनों बर्बाद ओ बेकार बताया था ©dharmendra kumar yadav ग़ज़ल
ग़ज़ल
read moreGautam ADARSH Mishra
ख़ुद से रूठे हैं हम लोग। टूटे-फूटे हैं हम लोग॥ सत्य चुराता नज़रें हमसे, इतने झूठे हैं हम लोग। इसे साध लें, उसे बांध लें, सचमुच खूँटे हैं हम लोग। क्या कर लेंगी वे तलवारें, जिनकी मूँठें हैं हम लोग। मय-ख़्वारों की हर महफ़िल में, खाली घूंटें हैं हम लोग। हमें अजायबघर में रख दो, बहुत अनूठे हैं हम लोग। हस्ताक्षर तो बन न सकेंगे, सिर्फ़ अँगूठे हैं हम लोग। "आदर्श मिश्र" ©Gautam ADARSH Mishra मोटिवेशनल कोट्स ऑफ़ द डे
मोटिवेशनल कोट्स ऑफ़ द डे
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