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WORDS OF VIVEK KUMAR SHUKLA
चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... ढूंढ़ते हैं... दुबक कर बैठे, फ़ूलों के गोद में तितलियों को....., चुनते हैं... जिनका नाम नहीं जानते, क्यारी से, पसंदीदा उन कलियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... चखते हैं... बिन छौंके -बघारे , माँ के हाथों के बने सुगंधित दलियों को....., खाते हैं... जले हाथों संग बने, तवें पर ही जले, फूले उन जीवनवृत्तियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... झूलते हैं... झूले से लटके, बरगद के मोटी तनों से झूले सोरियों को....., कूदते हैं... घुटनों के समानांतर, जमीन पर मिले, आमों के टहनियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... घूमते हैं... खलिहानों से आते, गाँव की ओर, सांपीया घुमावदार पगडंडियों को....., खेलते हैं... वही पुराने खेलों को और, मिलते हैं, बचपन के उन सारे साथियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... भरते हैं... औंधे मुह रखे, पनघट से, खाली हुए सुराहीयों को....., सुनते हैं... जीवन को जीने, कि कला सिखाते, दादी-नानी की कहानियों को। चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... ✍️विवेक कुमार शुक्ला ✍️ चल ना... वापस घूम आते हैं यादों की गलियों को ..... ढूंढ़ते हैं... दुबक कर बैठे, फ़ूलों के गोद में तितलियों को....., चुनते हैं... जिनका ना
Amar Anand
एक दिन के लिए ही सही चलो गाँव घूम आते हैं... पूरी कविता नीचे कैप्शन में... काशी से निज ग्राम प्रस्थान चलो चलें फिर से , वही गाम वही दलान जहाँ किये हमने आठों पहर गुणगान दिए हमने जहाँ सबसे कठिन इम्तिहान वही खेत वही खलिहान जहाँ नित भोर उठ.. बाग
हरिओम सुल्तानपुरी
चलो इक बार फिर से बचपने में घूम आते हैं गुज़रे हुए लम्हों को फिर से चूम आते हैं रौनकें ढूंढ़ते रहते हैं अब तो गांव के बच्चे...! चलो इस बार होली में भंग में झूम आते हैं कहां गुम हो गए साथी, कहां गुम हो गए हैं खेल चलो इक बार उन लम्हों को फिर से ढूंढ़ लाते हैं मेरा स्कूल मुझको याद करता है कहीं फिर से गलतफहमी में ही इस बार उसको चूम आते हैं बगीचे पूछ्ते होंगे पता भी और ठिकाना भी इसी उम्मीद में टहनी से अब तो झूल जाते हैं ये मौसम सर्दियों का अब हमें रहने नहीं देता चलो अब बाग से कुछ लकड़ियां भी ढूंढ़ लाते हैं ज़हन हर रोज कहता है नहीं मुमकिन यहां पर ये मगर इस बार उसको अपनी दास्तां हम सुनाते हैं सुनो! हरिओम तुम अब छोड़ दो सारी ये उम्मीदें कभी गुज़रे हुए लम्हें....... क्या लौट आते हैं #स्वरचित #हरिओम सुल्तानपुरी #+९१९४६७२५७८५५ ©हरिओम सुल्तानपुरी #Poetry #Childhood चलो इक बार फिर से बचपने में घूम आते हैं गुज़रे हुए लम्हों को फिर से चूम आते हैं रौनकें ढूंढ़ते रहते हैं अब तो गा
Prakash writer05
IshhQ
एक खाब देखा ऐसा। (कैप्शन में पढ़ें) आज सुबह हमने क्या वो नायाब सा खाब देखा। तुम्हारे हुस्न का वो नूर वो रौशन आफ़ताब देखा। बातें हो रही थी और हमने कहा चलो कहीं घूम आते हैं, तुमने
Chirag Gupta
तो चलो अतीत में घूम आते हैं उस मुलाक़ात को फिर से ज़ेहन में घोल आते हैं मैने उसको चाहा मैने उसको हर पल में शुमार किया मैने उस पर खुद से ज्याद
Ishaan Haque
एक खाब देखा ऐसा। (कैप्शन में पढ़ें) आज सुबह हमने क्या वो नायाब सा खाब देखा। तुम्हारे हुस्न का वो नूर वो रौशन आफ़ताब देखा। बातें हो रही थी और हमने कहा चलो कहीं घूम आते हैं, तुमने
Uttam Dixit
"माँ" (Dedicated to my Mother) I've written this poetry specially for my mom. She is the bestest mother ever in the whole universe. Love u mamma. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 👇👇👇👇👇👇👇 हर शाम थ
Uttam Dixit
"माँ" (Dedicated to my Mother) I've written this poetry specially for my mom. She is the bestest mother ever in the whole universe. Love u mamma. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 👇👇👇👇👇👇👇 हर शाम थ
Ajay Amitabh Suman
लौट के गाँधी आये दिल्ली आज के राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में गांधीजी अगर हिंदुस्तान आते तो उनका अनुभव कैसा होता, इस काल्पनिक लघु कथा में यही दि