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Alok Vishwakarma "आर्ष"
दीप्ति बरी ब्रह्मरंध्रन में, श्वेत-श्वेत व्यप ध्याया है । समाधिस्थ प्रेरण अभ्यन्तर, अलल विहंगम पाया है ।। दीप्ति बरी ब्रह्मरंध्रन में, श्वेत-श्वेत व्यप ध्याया है । समाधिस्थ प्रेरण अभ्यन्तर, अलल विहंगम पाया है ।। #रौशनी #collab #yqdidi #alok
विष्णुप्रिया
समाधि स्त्री के लिए पूर्णतः विलीन होना ब्रह्म में नही अपितु कुटुंब में.... सुनो शाक्य, जानती हूं तुम बुद्ध हो, परमतेज, आत्मज्ञानी, समाधिस्थ स्वयं में... विलक्षित सृष्टि में.... जानती हूं तपस्वी हो, वर्षों की तपस्या
Sunita D Prasad
#यदि दुःख कहने भर के होते..... कुछ समय से प्रकृति के थोड़ा और करीब आई हूँ अब दक्षिणायन होते सूर्य को अपनी काया पर महसूस कर पाती हूँ उत्तर के समाधिस्थ पर्वत धरा का सारा शीत ओढ़े हैं मेरी त्वचा के रोएँ शीत से जड़ हो आई उसकी देह को अब महसूस कर पाते हैं विशाल जलनिधियाँ समजलवायु की हिमायती रहीं पर फिर भी कहाँ बाँध पाईं वे किसी एक ऋतु को! मैं नहीं समझ पाती हूँ प्रेम और दुःख के मध्य का संबंध! जबकि प्रकृति का सानिध्य मुझे विवश करता है प्रतिस्पर्श रूपी तुम्हारे चुम्बनों को फिर से अनुभूत करने के लिए तब मैं अज्ञेय की क्लिन्न, सूनी, शिशिर भीगी रात को सीने से लगाए सोचती हूँ कि क्या दुःख केवल उतना ही है जितना दिखा या बताया गया....? --सुनीता डी प्रसाद💐💐 #यदि दुःख कहने भर के होते..... कुछ समय से प्रकृति के थोड़ा और करीब आई हूँ अब दक्षिणायन होते सूर्य को अपनी काया पर महसूस कर पाती हूँ
अशेष_शून्य
ब्रह्मांड की असीम पीड़ाओं के गर्त में समाधिस्थ होकर रची जाती हैं सर्वश्रेष्ठ "ईश्वरीय रचनाएं" -Anjali Rai (शेष अनुशीर्षक में) _____°°°°_____ ब्रह्मांड की असीम पीड़ाओं के गर्त में समाधिस्थ होकर रची जाती हैं सर्वश्रेष्ठ "ईश्वरीय रचनाएं"
Deepak Kanoujia
"तेरे यार भतेरे ने मेरा तू ही है बस यारा" " तेरे नाल होना ऐ गुज़ारा जट्टी दा मेरा नहीयो होर कोयी हाल किसे नाल " दृश्य 1 : एक सुन्दर सरोवर जिसमें तरह तरह के फूल खिले हैं और विभिन्न प्रकार के जलचर जल की क्रीङाये कर रहे हैं...आसपास ऊँचे पर्वत और उनसे क
Anil Siwach
विष्णुप्रिया
गृहस्थ और वैराग्य के मध्य उलझे कुछ विचार, कुछ भाव, कुछ मान्यताएं, और, उनका उत्तर खोजती मैं... इसी उधेड़बुन में यह कहनी रच गई... ' हिमाद्रि ' कैप्शन में पढ़े... हिमालय....यह....नाम सुनते ही तीव्र अद्यात्मिक ऊर्जा का संचार सा होने लगता है मेरे भीतर । फिर भी आज तक हिमालय दर्शन का सौभाग्य, प्राप्त ना हो