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Shivkumar
ब्रह्माण्ड में चारों तरफ़ सिर्फ अंधकार था व्याप्त। चौथे रुप में माता ने तब किया अण्ड निर्माण।। सभी जीवों और प्राणियों में है मां का तेज। माता के कृपा बिना हो जाते हैं सब निस्तेज।। सारा चराचर जगत है मां के ही माया से मोहित। मां के ही प्रेरणा से होता है जगत में सबका हित।। दिव्य प्रकाश जगत में मां कुष्मांडा फैलाती। ममतामई, करुणामई, कल्याणकारी कहलाती।। सौम्य स्वभाव वाली है मेरी मां अष्टभुजाओंवाली। भक्तों की सारी विपदा दूर करती है महामाई।। जो कोई श्रद्धा भक्ति से मां के शरण में आता। सुख, समृद्धि,धन, सम्पदा बिन मांगे मिल जाता।। ©Shivkumar #navratri #navratrispecial #नवरात्रि #navratri2024 #ब्रह्माण्ड में चारों तरफ़ सिर्फ #अंधकार था व्याप्त । चौथे रुप में माता ने तब किया
Bharat Bhushan pathak
चित्रपदा छंद विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण चार चरण, दो-दो समतुकांत भगण भगण गुरु गुरु २११ २११ २ २ नीरद जो घिर आए। तृप्त धरा कर जाए।। कानन में हरियाली। हर्षित है हर डाली।। कोयल गीत सुनाती। मंगल आज प्रभाती। गूँजित हैं अब भौंरे। दादुर ताल किनारे।। मेघ खड़े सम सीढ़ी। झूम युवागण पीढ़ी।। खेल रहे जब होली। भींग गये जन टोली।। दृश्य मनोहर भाते। पुष्प सभी खिल जाते।। पूरित ताल तलैया। वायु बहे पुरवैया।। भारत भूषण पाठक'देवांश' ©Bharat Bhushan pathak #holikadahan #होली#holi#nojotohindi#poetry#साहित्य#छंद चित्रपदा छंद विध
Mukesh Poonia
सारा जग है प्रभु तेरी शरण में सर झुकाते हैं शिव तेरे चरण में हम बनें भोले की चरणों की धूल आओ शिव जी पर चढ़ायें श्रद्धा के फूल। महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं ©Mukesh Poonia #mahashivaratri सारा जग है #प्रभु तेरी #शरण में सर झुकाते हैं #शिव तेरे चरण में हम बनें #भोले की चरणों की धूल आओ शिव जी पर चढ़ायें #श्रद्धा
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी :- राधे राधे जप कर , बुलाते हैं गिरधर , दौड़े-दौड़े चले आते , मन से पुकारिये ।। राधा में ही श्याम दिखे , श्याम को ही राधा लखे , दोनो की ये प्रीति भली , कभी न बिसारिये ।। रूप ये बदल आये , देख निधिवन आये , मिले कभी समय तो , उधर निहारिये ।। कट जाये जीवन यूँ , राधे-राधे जपते यूँ , शरण बिहारी के यूँ , जीवन गुजारिये ।।१ पटरी की रेल है ये , जीवन का खेल है ये , तेरा मेरा मेल है ये , प्रीति ये बढ़ाइये । चाँद जैसी सूरत है , अजन्ता की मूरत है , सुन चुके आप हैं तो , घुंघट उठाइये ।। नहीं हूर नूर देखो , पीछे हैं लंगूर देखो , जैसे भी हूँ अब मिली , जीवन गुजारिये ।। आई हूँ तू ब्याह कर , नहीं ज्यादा चाह कर , मुझे और नखरे न , आप तो दिखाइये ।।२ २९/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :- राधे राधे जप कर , बुलाते हैं गिरधर , दौड़े-दौड़े चले आते , मन से पुकारिये ।। राधा में ही श्याम दिखे , श्याम को ही राधा लखे
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया :- नम आँखों से बेटियाँ , करती बस ये चाह । मातु-पिता की अब यहाँ , कौन करे परवाह ।। कौन करे परवाह , हमारी डोली उठते । ले जाती मैं साथ , साथ जो मेरे चलते ।। अब क्या मेरे हाथ , मुझे ले जाते हमदम । देख पिता को आज , हुई मेरी आँखें नम ।। देने को तैयार हूँ , सभी *परीक्षा* आज । जैसे चाहो साँवरे , रोकों मेरे काज ।। रोको मेरे काज , शरण तेरी मैं पकडूँ । यही हृदय की चाह , प्रीति में तेरी अकडूँ ।। आओगे तुम पास , भेद फिर मेरे लेने । रहूँ सदा तैयार , परीक्षा जो हैं देने ।। उतनी तुमने साँस दी , इतनी है अब शेष । और नहीं कुछ आस है , फिर क्यों भदलूँ भेष ।। फिर क्यों बदलू भेष , *परीक्षा* देने आया । बनकर बैठा शिष्य , हृदय क्यों है घबराया ।। पाया हूँ जो ज्ञान , कहूँ कम कैसे इतनी । कपट न पाया सीख , रही बस देखो उतनी ।। ०१/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- नम आँखों से बेटियाँ , करती बस ये चाह । मातु-पिता की अब यहाँ , कौन करे परवाह ।। कौन करे परवाह , हमारी डोली उठते । ले जाती मैं स
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सुन रघुवर के रूप हैं । शरण चला जा उनके प्यारे , वह भी तेरे भूप हैं ।। मन को अपने आज सँभालो , उलझ गया है बाट में । सारे तीरथ मन के होते , जो है गंगा घाट में ।। तन के वस्त्र नहीं मिलते तो, लिपटा रह तू टाट में । आ जायेगी नींद तुझे भी , सुन ले टूटी खाट में ।। जितनी मन्नत माँग रहे हो , जाकर तुम दरगाह में । उतनी सेवा दीन दुखी की , जाकर कर दो राह में ।। सुनो दौड़ आयेंगी खुशियाँ , बस इतनी परवाह में । मत ले उनकी आज परीक्षा , वो हैं कितनी थाह में ।। जीवन में खुशियों का मेला , आता मन को मार के । दूजा कर्म हमेशा देता , सुन खुशियां उपहार के ।। जीवन की भागा दौड़ी में , बैठो मत तुम हार के । यही सीढ़ियां ऊपर जाएं , देखो नित संसार के ।। २८/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सु
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत हम बच्चे इतना तो सीखें , जीवन में संकल्प बड़ा है । जिसने भी इसको अपनाया , वही शिखर पे आज खड़ा है ।। हम बच्चे इतना तो सीखें... तुम भी मानों साथी मेरे , गुरुवर की सब बातें प्यारी । मन की इच्छा शक्ति बढ़ाओ , और कर्म के बनो पुजारी ।। क्यों की गली-गली में भैय्या , अब तो बल्ला बैट चला है । हम बच्चे इतना तो सीखें .... जीवन में मीठी बातें तो , करते अपने और पराये । लेकिन राह तुम्हें जीवन की , सुन लो कोई नहीं बताये ।। एक माँ और दूजे गुरुवर , नहीं मार्ग तुमको भटकाये । हम बच्चे तो इतना सीखें..... सच्चा शिष्य वही धरती पे , मन जिसके मत लोभ रहा है । विद्या धन वह करता अर्जित , जो गुरुवर के शरण रहा है ।। यही विनय है मातु-पिता की , तुझसे ही अभिमान मिला है । हम बच्चे तो इतना सीखें ...... हम बच्चे इतना तो सीखें , जीवन में संकल्प बड़ा है । जिसने भी इसको अपनाया , वही शिखर पे आज खड़ा है ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR हम बच्चे इतना तो सीखें , जीवन में संकल्प बड़ा है । जिसने भी इसको अपनाया , वही शिखर पे आज खड़ा है ।। हम बच्चे इतना तो सीखें... तुम भी मानों
Mukesh kumar dewangan
Shree Ram चल रहा हूँ धूप में तो महावीर तेरी छाया है शरण है तेरी सच्ची बाकी तो सब मोह माया है। ©Mukesh kumar dewangan #shreeram चल रहा हूँ धूप में तो महावीर तेरी छाया है शरण है तेरी सच्ची बाकी तो सब मोह माया है।