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Rahul
White निगाहों से तेरे दिल पर पैगाम लिख दूं तुम कहो तो अपनी रूह तेरे नाम लिख दूं.💕 ©Rahul निगाहो से तेरे दिल पर पैगाम लिख दू.... 💔 #Ni30 #loV€fOR€v€R
Dinesh Sharma Jind Haryana
White तुझे अपना कह दूं या चांद कह दूं एक ही तो बात है ©Dinesh Sharma Jind Haryana अपना कह दू
KUNWA SAY
White कई ठोकरों के बाद भी ,,सभालता रहा हूँ मैं ,... गिर गिर कर उठ खड़ा हूँ ,,और चलता रहा हूँ मैं ,. mere youtobe chenal name Rajkumarikp hai saport kare ©KUNWA SAY #mountain कई ठोकरों के बाद भी ,,सभालता रहा हूँ मैं ,... गिर गिर कर उठ खड़ा हूँ ,,और चलता रहा हूँ मैं ,.
Razzj D
White यु ही खङा हूँ मैं , कुछ हार कर, सब कुछ हार कर... ©Razzj D #SAD यु ही खङा हूँ मैं , कुछ हार कर, सब कुछ हार कर...
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
कुछ लम्हें सुकून के जीना चाहता हूँ, मैं अकेले बैठ कर चाय पीना चाहता हूँ। ©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS #teatime कुछ लम्हें सुकून के जीना चाहता हूँ, मैं अकेले बैठ कर चाय पीना चाहता हूँ।
Poetry-Meri Diary Se
Men walking on dark street हैरान हूँ मैं अपने किस्मतों पर... खुशियों को मुझसे जुदा किया, ग़मों से रिश्ता मेरा जोड़ दिया! हर कदम धोखा और फरेब मिला, मिली तो सिर्फ नाक़ामी और रुसवाई! बेबस कर दिया मुझें हर कदम पर, बस लगता हैँ जैसे मज़ाक हैँ ये! भूल गया मुस्कुराना क्या होता हैँ, बस उदासी ज़िन्दगी बन गयी हैँ! ©ABi Aman #Emotional हैरान हूँ मैं अपने किस्मतों पर @#
Sangeeta Kalbhor
पर ना जाने.. मैं लिखा करती थी मुझे अब ना जाने कहाँ गुम हो गई हूँ निकलना चाहती हूँ भवंड़र से पर ना जाने कहाँ खोई हुई हूँ रुठ गई है कलम मुझसे दवा कोई कराओ ना दिल नही मानता आसानी से आकर कोई मनाओ ना जिद कर बैठा है मन करके मन्नते मैं हार गई हूँ निकलना चाहती हूँ भवंड़र से पर ना जाने कहाँ खोई हुई हूँ जानती हूँ ये ठिक नही है हो जो रहा है मुझसे कौन मेरा यहाँ अपना है जो बताऊं सब उससे आता नही कोई थामने पुकार कर मैं थम गई हूँ... निकलना चाहती हूँ भवंड़र से पर ना जाने कहाँ खोई हुई हूँ..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #Preying पर ना जाने.. मैं लिखा करती थी मुझे अब ना जाने कहाँ गुम हो गई हूँ निकलना चाहती हूँ भवंड़र से पर ना जाने कहाँ खोई हुई हूँ रुठ गई है
Vikas sharma
गम को पनाह दी तो ...क्यूँ खुशी के ना रहे बाँधे रखने का हुनर था जिनमे.किसी के ना रहे हथेली से जो छूटा..धुआँ धुआँ सा हो गया जिनकी फ़ितरत राख सी है ,वो ज़मीं के ना रहे गुजरते, पूछ लेता था ,अक्सर हाल किनारो के प्यास लगने पर,फिर क्यूँ .उस नदी के ना रहे ज़माने से लड़ रहा था जो, उस इक के ख़ातिर वो इक..ज़माने के हो गये.. बस उसी के ना रहे ख़बर है कि..मुक़दमा जीत गया है वो मुलाक़ातों के ये सिलसिले,अब कभी के ना रहे बस चंद पलो में ..सहर को पा ही लेगा वो रातभर संग जलने वाले तो.अब कहीं के ना रहे @विकास ©Vikas sharma #Apocalypse मुकदमा