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Kavi Bharat Bhushan
वो मेरा बचपन चला गया। बस यादो के पन्ने छोड़ गया। मै ढूढू कहा गलियों में जाने वो किस और गया। बस विचरण करता उन गलियों में उन आँगन की रंगरलियों में बस देखु सुनी गलियों को सुने आँगन की रंगरलियों को अब मेरा मन इस और गया मै खेला इन गलियों में कूदा आँगन की रंगरलियों में अब मै कुछ दूर गया पीपल की छाँव में रुक गया अब वो भी सुना नज़र आता है, अब उसकी नज़र रुक गयी उसकी मस्ती छुप गयी। को मारे किलकारी दर पे। वो भी अब बचपन चाहता है। नज़रे उसकी देखे मुझको वो भी बचपन मे घूम हो जाता है । कवि भरत भूषण बैरागी कवि भूषण की कविता