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Vijay Vidrohi
शहीद देशभक्त उधम सिंह लंदन में जाकर जिसने दुश्मन को ललकारा था जलियांवाला बाग का कातिल जनरल डायर मारा था। बचपन में जो मंजर देखा दिल में ठान लिया था तभी, उसके बुलंद हौसलों आगे पूरा इंग्लैंड हारा था। जलियांवाला बाग में जिसने नरसंहार मचाया था किसान मजदूर की आम सभा पर गोली वह चलवाया था। उधम सिंह की आंखों में एक दहक रहा अंगारा था। जलियांवाला बाग का कातिल जनरल डायर मारा था धुन के पक्के होते देशभक्त कभी नहीं घबराते हैं, देश की रक्षा खातिर अपना तन मन धन लुटवाते हैं। उधम सिंह ने अपना जीवन देश की खातिर वारा था। जलियांवाला बाग का कातिल जनरल डायर मारा था। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 ©Vijay Vidrohi उद्यम सिंह जयंती #Udhamsingh #my #new #Poetry #love #india #Life punjabi poetry hindi poetry on life urdu poetry sad Extraterrestrial l
उद्यम सिंह जयंती #Udhamsingh #my #New #Poetry love #India Life punjabi poetry hindi poetry on life urdu poetry sad Extraterrestrial l
read moreaditi the writer
Unsplash न हो सिद्धि, साधन तो है बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है यही बहुत जो इसे सँजोऊ अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ सखा, सूत वा दूत न होऊँ पर यह जन प्रभु-जन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! माना मुक्त नहीं हो पाया, खींच मुझे यह बंधन लाया तब भी मेरी ममता-माया मिला मुझे नर-तन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! बाहर भी क्या आज खड़ा मैं काले कोसों दूर पड़ा मैं देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं तेरा खुला भवन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! ©aditi the writer #मैथिली शरण गुप्त Kumar Shaurya Raj Sabri vineetapanchal @it's_ficklymoonlight
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Unsplash न हो सिद्धि, साधन तो है बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है यही बहुत जो इसे सँजोऊ अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ सखा, सूत वा दूत न होऊँ पर यह जन प्रभु-जन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! माना मुक्त नहीं हो पाया, खींच मुझे यह बंधन लाया तब भी मेरी ममता-माया मिला मुझे नर-तन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! बाहर भी क्या आज खड़ा मैं काले कोसों दूर पड़ा मैं देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं तेरा खुला भवन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! ©aditi the writer #मैथिली शरण गुप्त Kumar Shaurya Raj Sabri vineetapanchal @it's_ficklymoonlight
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read moreचाँदनी
White कभी कभी वहा भी बोल नही फूट पाए जहाँ जरूरी था अंतस् ने दुआएँ दी और लगा पूरे हो गए मन्नत कुछ एहसास गुप्त ऊर्जा लिए डूब जाती है कितने बार शीर्ष तक उभरती भी नअंद पर क्या वाकई हमारे अंदर विकसित अलौकिक शक्तियां फल को भी गुप्त कर देती है या सृष्टि उसे स्वीकार कर सूर्य सा दीप्तिमान रौशनी का सृजन कर भेद देती है उस प्रकृति रस के अंदर ©चाँदनी #गुप्त एहसास
#गुप्त एहसास
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