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Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 11 सीताजी मन में सोचने लगती है जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच। मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥ फिर सब रा #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏

दोहा – 11

सीताजी मन में सोचने लगती है
जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥
फिर सब राक्षसियाँ मिलकर जहां तहां चली गयी-तब सीताजी अपने मनमें सोच करने लगी की –एक महिना बितने के बाद यह नीच राक्षस (रावण) मुझे मार डालेगा ॥11॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

सीताजी और त्रिजटा का संवाद
माता सीता, त्रिजटा को, श्रीराम से विरहके दुःख के बारे में बताती है
त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी।
मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥
तजौं देह करु बेगि उपाई।
दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥
फिर त्रिजटाके पास हाथ जोड़कर सीताजी ने कहा की हे माता-तू मेरी सच्ची विपत्तिकी संगिनी (साथिन) है॥सीताजी कहती है की जल्दी उपाय कर
नहीं तो मै अपना देह तजती हूँ(जल्दी कोई ऐसा उपाय कर जिससे मै शरीर छोड़ सकूँ)क्योंकि अब मुझसे अति दुखद विरहका दुःख सहा नहीं जाता॥

सीताजी का दुःख
आनि काठ रचु चिता बनाई।
मातु अनल पुनि देहि लगाई॥
सत्य करहि मम प्रीति सयानी।
सुनै को श्रवन सूल सम बानी॥
हे माता! अब तू जल्दी काठ ला और
चिता बना कर मुझको जलानेके वास्ते जल्दी उसमे आग लगा दे॥
हे सयानी! तू मेरी प्रीति सत्य कर- रावण की शूल के समान दुःख देने वाली वाणी कानो से कौन सुने?सीता जी के ऐसे शूल के सामान महा भयानाक वचन सुनकर॥

त्रिजटा सीताजी को सांत्वना देती है

सुनत बचन पद गहि समुझाएसि।
प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी।
अस कहि सो निज भवन सिधारी॥
त्रिजटा ने तुरंत सीताजी के चरण पकड़ कर उन्हे समझायाऔर प्रभु रामचन्द्रजी का प्रताप, बल और उनका सुयश सुनाया और  सीताजी से कहा की हे राजपुत्री! हे सुकुमारी!अभी रात्री है, इसलिए अभी आग नहीं मिल सकत ऐसा कहा कर वहा अपने घरको चली गयी॥

सीताजी को प्रभु राम से विरह का दुःख आसमान के तारे

कह सीता बिधि भा प्रतिकूला।
हिमिलि न पावक मिटिहि न सूला॥
देखिअत प्रगट गगन अंगारा।
अवनि न आवत एकउ तारा॥
तब अकेली बैठी बैठी सीताजी कहने लगी की क्या करूँ विधाता ही विपरीत हो गया-अब न तो अग्नि मिले और न मेरा दुःख कोई तरहसे मिट सके॥ऐसे कह तारो को देख कर सीताजी कहती है की ये आकाश के भीतर तो बहुत से अंगारे दिखाई दे रहे है,परंतु पृथ्वी पर पर इनमे से एक भी तारा नहीं आता॥

चन्द्रमा और अशोक वृक्ष
पावकमय ससि स्रवत न आगी।
मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥
सुनहि बिनय मम बिटप असोका।
सत्य नाम करु हरु मम सोका॥
सीताजी चन्द्रमा को देखकर कहती है कि यह चन्द्रमा का स्वरुप अग्निमय दिख पड़ता है,पर यह भी मानो मुझको मंदभागिन जानकार आग को नहीं बरसाता॥अशोक के वृक्ष को देखकर उससे प्रार्थना करती है कि -हे अशोक वृक्ष!मेरी विनती सुनकर तू अपना नाम सत्य कर।अर्थात मुझे अशोक अर्थात शोकरहित कर।मेरे शोकको दूर कर (मेरा शोक हर ले)॥

सीताजी को दुखी देखकर हनुमानजी को दुःख होता है

नूतन किसलय अनल समाना।
देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥
देखि परम बिरहाकुल सीता।
सो छन कपिहि कलप सम बीता॥
तेरे नए-नए कोमल पत्ते अग्नि के समान है ,तुम मुझको अग्नि देकर मुझको शांत करो॥इस प्रकार सीताजीको विरह से अत्यन्त व्याकुल देखकर हनुमानजी का वह एक क्षण कल्प के समान बीतता गया॥

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 466 से 477 नाम
466 स्ववशः जगत की उत्पत्ति, स्थिति और लय के कारण हैं
467 व्यापी सर्वव्यापी
468 नैकात्मा जो विभिन्न विभूतियों के द्वारा नाना प्रकार से स्थित हैं
469 नैककर्मकृत् जो संसार की उत्पत्ति, उन्नति और विपत्ति आदि अनेक कर्म करते हैं
470 वत्सरः जिनमे सब कुछ बसा हुआ है
471 वत्सलः भक्तों के स्नेही
472 वत्सी वत्सों का पालन करने वाले
473 रत्नगर्भः रत्न जिनके गर्भरूप हैं
474 धनेश्वरः जो धनों के स्वामी हैं
475 धर्मगुब् धर्म का गोपन(रक्षा) करने वाले हैं
476 धर्मकृत् धर्म की मर्यादा के अनुसार आचरण वाले हैं
477 धर्मी धर्मों को धारण करने वाले हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏

दोहा – 11

सीताजी मन में सोचने लगती है
जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥
फिर सब रा

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 29 सभी वानर भगवान् राम को प्रणाम करते है प्रीति सहित सब भेंटे रघुपति करुना पुंज॥ पूछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज ॥29॥ #समाज

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🙏सुन्दरकांड 🙏
दोहा – 29
सभी वानर भगवान् राम को प्रणाम करते है
प्रीति सहित सब भेंटे रघुपति करुना पुंज॥
पूछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज ॥29॥
करुणानिधान श्री रामचन्द्र जी प्रीतिपूर्वक सब वानरों से मिले और
उनसे कुशल पूछा-तब उन्होंने कहा कि हे नाथ!आपके चरण कमलो के दर्शन पाने से अब हम कुशल हें ...,
श्री राम, जय राम, जय जय राम

जाम्बवान और प्रभु श्री राम का संवाद
ईश्वर की कृपा से भक्त का निरंतर कुशल
जामवंत कह सुनु रघुराया।
जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया॥
ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर।
सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर॥
उस समय जाम्बवान ने रामचन्द्रजी से कहा कि हे नाथ! सुनो,आप जिसपर दया करते हो-उसके सदा सर्वदा शुभ और कुशल निरंतर रहते हें-तथा देवता मनुष्य और मुनि सभी उस पर सदा प्रसन्न रहते हैं...,

भगवान् की कृपा का फल
सोइ बिजई बिनई गुन सागर।
तासु सुजसु त्रैलोक उजागर॥
प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू।
जन्म हमार सुफल भा आजू॥
और वही विजयी (विजय करने वाला), विनयी (विनय वाला) गुणों का समुद्र होता है और उसकी सुख्याति तीनों लोकों में प्रसिद्ध रहती है॥यह सब काम आपकी कृपासे सिद्ध हुआ हैं और हमारा जन्म भी आज ही सफल हुआ है...,

जाम्बवान श्री राम को हनुमानजी के कार्य के बारें में बताते है
नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी।
सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी॥
(जो मुख लाखहु जाइ न बरणी॥)
पवनतनय के चरित सुहाए।
जामवंत रघुपतिहि सुनाए॥
हे नाथ! पवनपुत्र हनुमान जी ने जो काम किया है,उसका हजार मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता॥(वह कोई आदमी जो लाख मुखों से कहना चाहे,तो भी वह कहा नहीं जा सकता)...,
हनुमानजी की प्रशंसा के वचन और कार्य जाम्बवान ने रामचन्द्रजी को सुनाये...,

हनुमानजी और प्रभु श्री राम का संवाद
भगवान् राम हनुमानजी से माता सीता के बारें में पूछते है
सुनत कृपानिधि मन अति भाए।
पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए॥
कहहु तात केहि भाँति जानकी।
रहति करति रच्छा स्वप्रान की॥
उन वचनों को सुन कर दयालु श्री रामचन्द्वजी ने उठ कर हनुमान जी को अपनी छाती से लगाया॥और श्रीराम ने हनुमानजी से पूछा कि हे तात! कहो, सीता किस तरह रहती है?और अपने प्राणोंकी रक्षा वह किस तरह करती है?॥

🚩🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️
 🙌🚩🔱 मां जगदम्बे🔱हमेशा हमारा आपका मार्गदर्शन करती रहे...,

📖✒️जीवन की पाठशाला 📙

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

नवरात्र के आठवें दिन मां दुर्गा का      स्वरूप:मां महागौरी

नवरात्र के आठवें दिन दुर्गाजी के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा और अर्चना का विधान है- जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है कि इनका वर्ण पूर्ण रूप से गौर अर्थात् सफेद है- इनके वस्त्र भी सफेद रंग के हैं और सभी आभूषण भी श्वेत हैं जिस कारण इन्हें श्वेतांबरी भी कहा जाता है-इनका वाहन वृषभ अर्थात् बैल है और इनके चार हाथ हैं-इनका ऊपर वाला दाहिना हाथ अभयमुद्रा में है और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है, बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू है और नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है...,

मंत्र:
 या देवी सर्वभू‍तेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है-देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा...,

श्लोक:
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बर धरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

Affirmations:
86.मै हर समय पूर्णतः परिपूर्ण हूं...
87.मुझे बराबर अविश्वसनीय उपहार मिलते रहते हैं...
88.मेरे सारे सबंध प्रेम से ओतप्रोत है...
89-मैं शांति से हूँ...
90-इस स्थिति की आवश्यकता को मुक्त करने में तैयार हूं...

बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गई की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ....सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ....!
🙏सुप्रभात 🌹
आपका दिन शुभ हो 
विकास शर्मा'"शिवाया" 
🔱जयपुर -राजस्थान 🔱

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏
दोहा – 29
सभी वानर भगवान् राम को प्रणाम करते है
प्रीति सहित सब भेंटे रघुपति करुना पुंज॥
पूछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज ॥29॥
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