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Sheetal Agrawal

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M K Singh

चरवाहा और मैग्नोलिया

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"छोटानागपुर की रानी" नेतरहाट की अमर प्रेम गाथा चरवाहा और मैग्नोलिया

Parasram Arora

भेड़ और चरवाहा......

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ज़ब भी  हम दुनिया  मे  आते हैँ
हमारा पूरा मनोविज्ञान
मांगता है. कि 
कोई हमेँ  बचाने  वाला
जरूर हो
हम भेड़  बनने  को  सदैव तैयार हैँ.
तो जरूरत आ पड़ती है किसी ऐसे
चरवाहे  की  ज़ो हमेँ सांत्वना  दे कि 
"डरो मत  सिर्फ मुझ पर भरोसा करो
और मैं तुम्हे  बचा लूँगा
मैं तुम्हारा ध्यान रखूंगा "
कदाचित  इसीलिए  जरूरत  होती है  ऐसे
परमात्मा की ज़ो सर्वशक्तिमान. हो
जिसके पास  सम्पूर्णन  शक्तियां  हो
ज़ो सब जगह  अपनी  उपस्तिथि  दर्ज़ कराता हो

©Parasram Arora भेड़  और चरवाहा......

Vinod Rana

भजन 23:1-6 यीशु मेरा चरवाहा हैँ #MusicalMemories #जानकारी

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तुषार"आदित्य"

वो श्याम रंग का स्वामी है,कहते है अन्तर्यामी है। वो चरवाहा है जगभर का,वो जाने सबकी खामी है। वो माखन चोरी करता है,छलिया है सबको छलता है। कहने #खोज #मौज #जगतपति #मनमोहन

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वो श्याम रंग का स्वामी है,कहते है अन्तर्यामी है।
वो चरवाहा है जगभर का,वो जाने सबकी खामी है।
वो माखन चोरी करता है,छलिया है सबको छलता है।
कहने को तो है जगतपति,पर अपनी माँ से डरता है।
वो मीरा जिसकी जोगन है,खुद मोहहीन,मनमोहन है।
बड़ी मीठी बंसी बजाता है,उसकी बातें सम्मोहन है।
कोई खबर तुम्हें है? कहाँ है वो?
हाँ! कभी-कभी दिखता है वो।
मैं उसे ढूंढने निकला हूँ,तुम्हें मिले कहीं कह देना।
कोई मौज में उसकी निकला है।
कोई खोज में उसकी निकला है। वो श्याम रंग का स्वामी है,कहते है अन्तर्यामी है।
वो चरवाहा है जगभर का,वो जाने सबकी खामी है।
वो माखन चोरी करता है,छलिया है सबको छलता है।
कहने

Rahul Kr Gaurav

आखिर क्यों आज भी लालू गरीबों के मसीहा है? शेरो का विध्वंस हो रहा मांद था सर्वश्रेष्ठ शब्द हो रहा बर्बाद था स्वतंत्र भारत में हो रहा दलित आज #nojotophoto

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 आखिर क्यों आज भी लालू गरीबों के मसीहा है?

शेरो का विध्वंस हो रहा मांद था
सर्वश्रेष्ठ शब्द हो रहा बर्बाद था
स्वतंत्र भारत में हो रहा दलित आज

vishnu prabhakar singh

भारत गांवों का देश... सुदूर गांवों के प्रमंडल में एक पुरानी मंडी,'मुरलीगंज' एक जीवन रेखा!! मेरे कसबा में मंडी के आत्मा से देखो तो सुनिश्चित #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #देखनेकोबहुत #विप्रणु

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मेरे कसबा में
मंडी के आत्मा से देखो तो
सुनिश्चित आश से सम्बोधन
बाज़ार!
दूर गाँव की जिजीविषा
प्रतिदान की सभ्यता 
कुकुरमुत्ता शैली की दुकान
हर ग्राहक वैश्य।
पतरचट पर रख्खी मालभोग केला
एक घौर, छितराया हुआ
बच्चों से बहलाया हुआ
उसी चट्टी पर आँचल भर मिर्च
छटाक भर सोंठ
भरोसे की भेंट।
आगे एक मेमना
अनहोनी की पूर्वाग्रह में निढ़ाल
अब उसका चरवाहा बकरी नहीं पालेगा
मेमना ने जो घास का मूल्य चुकाया,उसे ले
अपने खून को धीरज में समेट
दो कोस की पग यात्रा
धीरज को शक्ति देने
कल्याण के द्वार।
साइकिलों में कुछ मोटर साईकिल
खटकते हुए
उस पर ढोंग की सवारी
काज से बढ़ा भटकाव
हलवाई के मुँह बोले जवांई
पान,ठंडे के मक्खी।
सिनेमा घर
नव दम्पति के सौगंध-वचन
नया सिंगार,नई वय
'इंसाफ हो के रहेगा'की लय
मध्यांतर में सब साथी है
पिक्चर अभी बाकी है! भारत गांवों का देश...
सुदूर गांवों के प्रमंडल में एक पुरानी मंडी,'मुरलीगंज' एक जीवन रेखा!!

मेरे कसबा में
मंडी के आत्मा से देखो तो
सुनिश्चित

CalmKazi

This would one of my favorite pieces I wrote long back when I was away from home. Its poignant and reminds me of everything I loved about my #Morning #दिन #सुबह #yqbaba #हिंदी #कविता #yqdidi #छोटेशहर #rememberingchildhood #calmkaziwrites #SmallTownMornings

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कुछ सुबह की बातें

चाय का ठेला
लगता है हर नुक्कड़ पर
पैदल सड़क पर घूमते हैं लोग और गाय मदमस्त
लेखक है एक कोने में सोता
रात को कुछ थका सा था
वहीँ दूसरी ओर लफंदर लौंडे
ठिठोली करते हैं किसी अनसुनी बात पर
कुछ ऐसी सुबह होती है मेरे शहर में
जैसे रात का साया ही न रहा हो कभी

गिनी चुनी खाली थैलियाँ
और कुछ प्लास्टिक के छोटे खिलोने
बटोर रही वो बूढी अम्मा
और कहीं दूर से घंटियों की टनटनाहट
आती है मेरे कानो में
सुबह की पूजा चल रही होगी उस घर में
कुछ ऐसी सुबह होती है मेरे शहर में
जैसे रात का साया ही न रहा हो कभी

(Read caption for full text) This would one of my favorite pieces I wrote long back when I was away from home. Its poignant and reminds me of everything I loved about my

CalmKazi

(READ FULL POETRY BELOW) कुछ सुबह की बातें... चाय का ठेला, लगता है हर नुक्कड़ पर । पैदल सड़क पर घूमते हैं लोग, और गाय मदमस्त । लेखक है एक #Morning #दिन #yqbaba #हिंदी #कविता #yqdidi #repost #Allahabad #mycity #छोटेशहर #rememberingchildhood #calmkaziwrites #SmallTownMornings #ReverseTimelineChallenge

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कुछ सुबह की बातें

चाय का ठेला
लगता है हर नुक्कड़ पर
पैदल सड़क पर घूमते हैं लोग और गाय मदमस्त
लेखक है एक कोने में सोता
रात को कुछ थका सा था
वहीँ दूसरी ओर लफंदर लौंडे
ठिठोली करते हैं किसी अनसुनी बात पर
कुछ ऐसी सुबह होती है मेरे शहर में
जैसे रात का साया ही न रहा हो कभी

गिनी चुनी खाली थैलियाँ
और कुछ प्लास्टिक के छोटे खिलोने
बटोर रही वो बूढी अम्मा
और कहीं दूर से घंटियों की टनटनाहट
आती है मेरे कानो में
सुबह की पूजा चल रही होगी उस घर में
कुछ ऐसी सुबह होती है मेरे शहर में
जैसे रात का साया ही न रहा हो कभी (READ FULL POETRY BELOW)

कुछ सुबह की बातें...

चाय का ठेला,
लगता है हर नुक्कड़ पर ।
पैदल सड़क पर घूमते हैं लोग, और गाय मदमस्त ।
लेखक है एक

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 12 - अर्थार्थी 'बेशर्म कहीं का' सरदार की आखें गुस्से से लाल हो गयी। फड़कते ओठों से

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9

|| श्री हरि: ||
12 - अर्थार्थी

'बेशर्म कहीं का' सरदार की आखें गुस्से से लाल हो गयी। फड़कते ओठों से
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