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Shailendra Anand
White रचना दिनांक ्26, जनवरी 2025,, वार रविवार समय सुबह पांच बजे ्भाव चित्र ् ््निज विचार ् ््शीर्षक ् ््््हां सीते हा रघुनाथ मर्यादा ही जिंदगी और मौत से बड़ी यात्रा प्रारम्भ और अंत,, अंततः अमिट प्रेम का संविधान होता है ्््् ््् मोहब्बत का भी इन्सानी विधान होता है ् निश्चित ही जिंदगी में एक संविधान होता है, प्रेमी संग प्रेमिकाओं में मानसिक रूप और आपसी समझ और रिश्ते की गहराईयों और अहमियत को तराशना किसी प्रेमी प्रेमिका के, अपने विचार मन और आत्मा के आत्मीय संचरण का , रक्त संचरण से किसी जिंदगी के हीरे मोती लाल बनकर तैयार रहती,, उम्मीद का नजारा देखने वाली अग्नि परीक्षा प्रेम शब्द से होती है्।। ,,,2,,,, प्रेम का अनंत रुप है वह हर समय हर नागरिक मतदाता का राष्ट्र धर्म संविधान में न्याय में देश में आंखें खोल कर देखें सपनो में ,, खो कर प्यार करने वाले को देशप्रेम देशभक्त वीरभूमि पर , प्राण आहूत करने वाले को शहीद कहां जाता है।। देश का संविधान में न्याय की बारिकियों में मानसिक रूप से, डाक्टर श्री भीमराव अम्बेडकर जी ने शोषित पीड़ित सर्वेहारा वर्ग श्रमिक मजदूर आम आदमी के जनजातीय जीवन शैली पर, अपना विचार देकर कहा कि इस देश में सभी धर्मों में समरुपता है,, एक मिशन है जो धरती पर जिंदगी का एक जीवंत प्रयास ही ,,, आदर्श आचार संहिता दर्शन मन का प्रेम गान राष्ट्र धर्म संविधान देश का रक्त संचरण ही सुन्दर है।। 26जनवरी 1949 को देश का संविधान लागू किया गया है यही सारे भारत प्रजातांत्रिक देश का स्वर्ण मुकुट धारण संविधान है।। ्कवि शैलेंद्र आनंद ् 26 जनवरी दोहजार पच्चीस ् ©Shailendra Anand #GoodMorning मोटिवेशनल कोट्स ऑफ़ द डे मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर सक्सेस मोटिवेशनल कोट्स फॉर स्टूडेंट्स मोहब्बत नामा है प्रेमी और प्रेमिका
#GoodMorning मोटिवेशनल कोट्स ऑफ़ द डे मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर सक्सेस मोटिवेशनल कोट्स फॉर स्टूडेंट्स मोहब्बत नामा है प्रेमी और प्रेमिका
read mores गोल्डी
चूम रहा है उसके डाले हुए दाने , चुनने कि जगह, ये कबूतर भी देखना मोहब्बत में मरेगा एक दीन। ©s गोल्डी चूम रहा है उसके डाले हुए दाने , चुनने कि जगह, ये कबूतर भी देखना मोहब्बत में मरेगा एक दीन।
चूम रहा है उसके डाले हुए दाने , चुनने कि जगह, ये कबूतर भी देखना मोहब्बत में मरेगा एक दीन।
read moretheABHAYSINGH_BIPIN
उतार दो अपने बदन की हरारत मुझ पर, इस सर्द दिसंबर को जून कर दो। लहू में बसा है अब तेरा शरारत का सफर, मेरे ख्वाबों को शोलों सा सुलगा दो। जाग रहा है इश्क़ का कबूतर खत पर, तेरे अंगों की महक में बिखेर दो। मेरे होठों पे उकेर, अपनी सासों की लकीर, इस रात को मुझे अपने बदन में बसा दो। भड़क रही है आग तेरे बदन की लहरों में, तेरी छुअन से हर नस को झुलसा दो। कबसे क़ैद है इश्क़ का ये सिपाही, अपने कोमल स्पर्श से आज़ाद कर दो। हर सांस तेरे रिदम से बंधी है अब, तेरे बदन की नर्म लकीरों में खो जाने दो। हवाओं में मिलकर जलते हुए इन लम्हों को, मेरी हर शरारत को ख़ुद में समा लो। ©theABHAYSINGH_BIPIN #erotica उतार दो अपने बदन की हरारत मुझ पर, इस सर्द दिसंबर को जून कर दो। लहू में बसा है अब तेरा शरारत का सफर, मेरे ख्वाबों को शोलों सा सुलग
#erotica उतार दो अपने बदन की हरारत मुझ पर, इस सर्द दिसंबर को जून कर दो। लहू में बसा है अब तेरा शरारत का सफर, मेरे ख्वाबों को शोलों सा सुलग
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