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रामजी महाराज [सबका मालिक एक]
संकट कटे मिटे सब फिरा! जो सुमराई हनुमत बल वीरा!! ©Ramji Maharaj सत्य मेव जायते #Identity
विष्णुप्रिया
यदि ऊर्जा " science " है तो, महादेव "vibration of origin " 🙏🙏 !! सदा शिव सहायते !! A theory of everything (TOE or ToE) is coherent theoretical framework of physics that fully explains and links tog
PraDeep
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} अध्याय 2 : सांख्ययोग श्लोका 20 न जायते म्रियते वा कदाचि न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।। अर्थ :- हे कुन्तीपुत्र ! शीत और उष्ण और सुख दुख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग का प्रारम्भ और अन्त होता है; वे अनित्य हैं, इसलिए, हे भारत ! उनको तुम सहन करो।। जीवन में महत्व इस श्लोक में कहा गया है कि आत्मा शरीर में होने वाले सभी दोषों से परे है। जन्म, अस्तित्व, वृद्धि, विकार, क्षय और विनाश शरीर में छह प्रकार के परिवर्तन हैं जिसके कारण जीव को भुगतना पड़ता है। लेकिन आत्मा इन दोषों से पूरी तरह मुक्त है। आत्मा शरीर की तरह पैदा नहीं होती क्योंकि वह हमेशा मौजूद रहती है। लहरें बनती और नष्ट होती हैं, लेकिन उनसे न तो समुद्र बनता है और न ही नष्ट होता है। जिसका आदि है, उसका अंत भी है। वर्तमान आत्मा के जन्म और विनाश का प्रश्न ही नहीं उठता। इसलिए यहां कहा गया है कि आत्मा अजन्मा और शाश्वत है। यद्यपि शरीर नष्ट हो जाता है, सर्वव्यापी आत्मा कभी नहीं मरती। यह दर्शाता है कि आत्मा केवल शरीर के परिवर्तनों जैसे जन्म, युवावस्था और मृत्यु और मन के दर्द और सुख के रूप में साक्षी के रूप में बनी हुई है। तूफानी बादलों के विक्षोभ का सूर्य या आकाश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता जिससे वे गुजरते हैं। इसलिए मनुष्य को अपने को नाशवान शरीर और लगातार काम करने वाले मन के साथ नहीं, बल्कि आत्मा के साथ तादात्म्य करना चाहिए। परम आनंद और साहस का अनुभव उन बुद्धिमानों द्वारा किया जाता है जो आत्मा के साथ एक हैं। मृत्यु का भय इस ज्ञान से तुरंत दूर हो जाता है कि वह एक अमर आत्मा है। ©N S Yadav GoldMine #City {Bolo Ji Radhey Radhey} अध्याय 2 : सांख्ययोग श्लोका 20 न जायते म्रियते वा कदाचि न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं प
Vikas Sharma Shivaaya'
☀️सूर्य नमस्कार🙏 सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है। यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है..., इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है..., 'सूर्य नमस्कार' स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है..., आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने। आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते ॥ (जो लोग प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं, उनकी आयु, प्रज्ञा, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है...)..., मन्त्र चक्र आसन... बीज नमस्कार 1 ॐ ह्रां ॐ मित्राय नमः अनन्तचक्र- प्रणामासन 2 ॐ ह्रीं ॐ रवये नमः विशुद्धिचक्र- हस्तोत्थानासन 3 ॐ ह्रूं ॐ सूर्याय नमः स्वाधिष्ठानचक्र- हस्तपादासन 4 ॐ ह्रैं ॐ भानवे नमः आज्ञाचक्र- एकपादप्रसारणासन 5 ॐ ह्रौं ॐ खगाय नमः विशुद्धिचक्र- दण्डासन 6 ॐ ह्रः ॐ पूष्णे नमः मणिपुरचक्र- अष्टांगनमस्कारासन 7 ॐ ह्रां ॐ हिरण्यगर्भाय नमः स्वाधिष्ठानचक्र-भुजंगासन 8 ॐ मरीचये नमः विशुद्धिचक्र- अधोमुखश्वानासन 9 ॐ ह्रूं ॐ आदित्याय नमः आज्ञाचक्र- अश्वसंचालनासन 10 ॐ ह्रैं ॐ सवित्रे नमः स्वाधिष्ठानचक्र- उत्थानासन 11 ह्रौं ॐ अर्काय नमः विशुद्धिचक्र- हस्तोत्थानासन 12 ॐ ह्रः ॐ भास्कराय नमः अनन्तचक्र- प्रणामासन 13 ॐ श्रीसवितृसूर्यनारायणाय नमः अनन्तचक्र-प्रणामासन 14 ॐ हे भो हरे नमः विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 550 से 561 नाम 550 कृष्णः कृष्णद्वैपायन 551 दृढः जिनके स्वरुप सामर्थ्यादि की कभी च्युति नहीं होती 552 संकर्षणोऽच्युतः जो एक साथ ही आकर्षण करते हैं और पद च्युत नहीं होते 553 वरुणः अपनी किरणों का संवरण करने वाले सूर्य हैं 554 वारुणः वरुण के पुत्र वसिष्ठ या अगस्त्य 555 वृक्षः वृक्ष के समान अचल भाव से स्थित 556 पुष्कराक्षः हृदय कमल में चिंतन किये जाते हैं 557 महामनः सृष्टि,स्थिति और अंत ये तीनों कर्म मन से करने वाले 558 भगवान् सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य जिनमें है 559 भगहा संहार के समय ऐश्वर्यादि का हनन करने वाले हैं 560 आनन्दी सुखस्वरूप 561 वनमाली वैजयंती नाम की वनमाला धारण करने वाले हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' ☀️सूर्य नमस्कार🙏 सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है। यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है...,
Gumnam Shayar Mahboob
Lajawab 2 Q1-न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य् नाम महद्यस:(यजुर्वेद अधयाय32,मंत्र 3) अर्थात- उस ईश्वर की कोई मूर्ति या प्रतिमा नही जिसका महान यश है चार वेदों