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अज्ञात
कलम की धुरी से रेखाओं को मिलाते हुये वो मुक्तहस्त महारत अक्श मेरा बनाता है.... कभी श्वेतपटल पर कभी अंतःकरण पर निमग्न होकर .. नयन नक्श उकेरता हुआ कुछ सोचता हुआ बढ़ते जाता है.. चित्त की छवि को स्व-भावों के सादृश में पटल पर गढ़ते जाता है.... कभी रुकता, क्षुब्ध होता मन टटोल त्रुटियां सुधारकर फिर कोई गीत गुनगुनाता है.... कभी केश कर्ण भृकुटि बनाते हुये लबों पे कलम दबाता है.... रेखाओं को रेखाओं से मिलाते हुए.... स्याह फैलाते हुये.... श्वेत श्याम रंग रंग जाता है... इस तरह वो धीर गंभीर रचियेता निज लक्ष्य की ओर बढ़ते चला जाता है.. वो शब्दकार होकर भी चित्रकार बन जाता है.... कलम की ताकत से चित्र विचित्र गढ़ जाता है... ©अज्ञात #चित्रकार
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Beautiful Moon Night दोहा :- माता तेरे नाम का , रखता हूँ उपवास । सुत मेरा भी हो सही , बस इतनी है आस ।।१ बदलो मेरे भाग्य की , माता जी अब रेख । हँसते हैं सब लोग अब , कष्ट हमारे देख ।।२ जीवन से मैं हार कर , होता नही निराश । करता रहता कर्म हूँ , होगा क्यों न प्रकाश ।।३ इस दुनिया में मातु पर , रखना नित विश्वास । वे ही अपने लाल के , रहती हैं निज पास ।।४ कहकर उसको क्यों बुरा , बुरे बने हम आज । ये तो विधि का लेख है , करता वह जो काज ।।५ कभी किसी के कष्ट को , देख हँसे मत आप । वह भी माँ का लाल है , हँसकर मत लो श्राप ।।६ मदद नही जब कर सको , रहना उनसे दूर । कल उनके जैसे कहीं , आप न हों मजबूर ।।७ करने उसकी ही मदद , भेजे हैं रघुवीर । ज्यादा मत कुछ कर सको ,बँधा उसे फिर धीर ।।८ जग में सबकी मातु है, जीव-जन्तु इंसान । कर ले उनकी वंदना , मिल जाये भगवान ।।९ माँ की सेवा से कभी , मुख मत लेना मोड़ । उनकी सेवा से जुड़े , हैं जीवन के जोड़ ।।१० ११/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- माता तेरे नाम का , रखता हूँ उपवास । सुत मेरा भी हो सही , बस इतनी है आस ।।१ बदलो मेरे भाग्य की , माता जी अब रेख । हँसते हैं सब लोग अ
Parastish
लगाना रंग कुछ ऐसे मिरे दिल-दार होली पर करे दो चार को घायल सर-ए-बाजार होली पर हवा में हो उठे हल-चल, बहारें रश्क कर बैठें यूँ सर से पा लगूँ मैं प्यार में गुल-बार होली पर निगाहों से छिड़क देना यूँ चश्म-ए-शोख़ का जादू लगें मय का कोई प्याला मिरे अबसार होली पर लबों की सुर्ख़ रंगत को, यूँ मलना तुम मिरे आरिज़ कि तितली गुल समझ के चूम ले रुख़्सार होली पर अबीरों ओ गुलालों से, हो फ़नकारी मुसव्विर सी धनक आ के गिरे दामन में अब के बार होली पर ©Parastish चश्म-ए-शोख़ - lovely eyes अब्सार - आँखें आरिज़ - रुख़्सार/गाल फ़नकारी - कलाकारी/ artistry मुसव्विर - चित्रकार/painter धनक - इंद्रधनुष/rai
अदनासा-
Shankara
जिंदगी एक कोरे कागज की तरह है ध्यान से कोरोगे तो सुंदर चित्र बनेगा बिना ध्यान के कोरोगे तो गजब का विचित्र हो जाएगा खुद भी समझ नहीं आएगा कि कहां-कहां से गुजर रहा हूं ©Shankara #bachpanSeBudapeTak एक अच्छा चित्रकार बनिए वरना जिंदगी आपको विचित्रकार बना देगा