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Rishi Ranjan
White जो गुरु (शिक्षक) होता है उसे कभी किसी बात का गुरुर नही होता है, और जिसने गुरुर पाल लिया वह किसी का गुरु नही बन सकता । ©Rishi Ranjan #ramnavmi #poem
Capital_Jadon
क्या करोगे यूँ रातों को गुफ़्तगू तो कर रहे हो हमसे, जो दिल लगा बैठे तो क्या करोगे मानता हु कि अभी हम कुछ नहीं तुम्हारे, मगर जो हमे कुछ मान बैठे तो क्या करोगे यूँ रातों को गुफ़्तगू तो कर रहे हो हमसे, जो दिल लगा बैठे तो क्या करोगे ये प्यार की बातें किताबों में रहने दो, हकीकत में दिल लगा बैठे, तो उजड जाओगे कहते है फिर दुबारा नहीं बसा करते,उजड़े हुए दिल जो हमारे होगये ,तो क्या करोगे यूँ रातों को गुफ़्तगू तो कर रहे हो हमसे, जो दिल लगा बैठे तो क्या करोगे क्या कर पाओगी यकीन फिर से इश्क़ पे, या ज़माने के डर से बिछड़े तो न जाओगे बन्झर से दिलों के इस बीरान सफर में ताउम्र साथ चल पाओगे क्या कह पाओगे ज़माने को की फिर से इश्क हुआ है, या डर के ज़माने से फिर भागा जाओगे ©Capital_Jadon #poem
Aarti Sirsat
Village Life गुम है सभी अपनी- अपनी परेशानियों में, यहां एक दूसरे का हालचाल अब पूछता कौन है....! क्या फर्क पड़ता है आँसू गम के है या खुशी के है, यहां आँसुओं की भाषा अब समझता कौन है....!! नाजुक से दिल को तोड़कर सुकून की नींद आ जाती है, यहां लैला मजनूँ जैसी मौहब्बत अब करता कौन है....! उत्सव मनाया जाता है अब तो दिलों से खेलकर यहां खिलौनों से भला अब खेलता कौन है....!! मैं तो पूछता चला गया हर मोड़ पर मंजिल का पता, मगर यहां सही रास्ता अब दिखाता कौन है...! दिखाया जाता है सच्चाई का आइना एक दूसरे को, मगर यहां खुद के भीतर अब झाँकता कौन है....!! सौ कारण दे दियें जायेंगे आँसू बहाने के लिए, वजह हँसाने की यहां अब जानता कौन है....! छोड़ दिया जाता है आधें रास्ते में ही हाथ को, जनाब यहां पूरा साथ अब निभाता कौन है....!! ©Aarti Sirsat #poem #villagelife
Aarti Sirsat
वक्त शायद जख़्मो को भर भी दे, मगर जाओं... जिंदगी से पूछकर आओं... क्या वोह मेरी उम्र की भरपाई कर पायेगी....! ©Aarti Sirsat #poem
Kartik Choure
जगता एवढं आचरा फक्त , स्वाभिमानाचा मान ठेवा आठवूण चेहरा स्वप्नांचा कष्ट सुद्धा गहाण ठेवा ... स्वप्न एवढी मोठी विचारा सूर्यालाही तहान लागेल , जिद्द एवढी साठवून ठेवता की सागरालाही घाम फुटेल ... कित्येक काटे बोचले जरी मेहनतीला आपला सार्थी करा अलगद त्यांना सरकावून बाजूला विजयाची समशेर आसमंती धरा..... -कार्तिक ©Kartik Choure #poem
Priya Chaturvedi
जब मैं शहर को जाता था तू कितना कुछ कर देती थी मेरे बैग में चुपके से लड्डू पेड़े भर देती थी मुझे छोड़ने दूर गांव के टीले तक आया करती रोते-रोते नम आंखों से वापस घर जाया करती उस टीले पर अब तुझ सा कोई दीदार नहीं करता मां तेरे जैसा अब मुझको कोई प्यार नहीं करता ©Priya Chaturvedi #poem
Sunil Nagar 'srgm'
कà¥à¤¯à¤¾ लिखूठमैं ज़िंदगी में शामिल, हूँ कौन पढ़ लेना। मैं चुप रहूँ लेकिन , तुम मौन पढ़ लेना।। ©Sunil Nagar 'srgm' #poem