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kavi manish mann
अपना क्या है-२, कह कर चले गए। एक सुनामी आई, बाबा बहकर चले गए।।१।। भोली-भाली जनता को, बेवकूफ़ बनाते थे। भय दिखलाकर ईश्वर का, उन्हें डराते थे।।२।। भोली-भाली जनता, ख़ूब धन लुटाती थी। बाबा को परमपिता का, दूत बताती थी।।३।। सच्चाई को कौन कब तक, ढक सकता था। झूठ आखि़र और कब तक, बढ़ सकता था।।४।। भांँडा फूटा बाबा न न, कह कर चले गए। भीतर रोते बाबा अंदर, हंँसकर चले गए।।५।। अपना क्या है-२, कह कर चले गए। एक सुनामी आई, बाबा बहकर चले गए।।६।। अपना क्या है-२, कह कर चले गए। एक सुनामी आई, बाबा बहकर चले गए।।१।। भोली-भाली जनता को, बेवकूफ़ बनाते थे। भय दिखलाकर ईश्वर का, उन्हें डराते थे
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प्रिय, आपको सादर नमन एवं वंदन। आज इस कोरोनाकाल में आपका जो योगदान है वो निसंदेह अतुलनीय है। आपने स्वयं के प्राणों की चिंता किए बिना, जिस प्रकार से निस्वार्थ तन, मन से मानव जाति की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए सम्पूर्ण मानव जाति आपका ऋणी रहेगा। उस परमब्रह्म से प्रार्थना है कि आप धरा के (भगवान) समस्त चिकित्सक गण सदैव स्वस्थ,समृद्ध और सम्पन्न रहें। यही प्रभु से बारम्बार प्रार्थना है। पुनः आप सभी चिकित्सक गण को कोटि कोटि नमन और वंदन। आप सभी का शुभचिंतक मौर्यवंशी मनीष "मन" भरवारी कौशांबी (उ.प्र.) चिकित्सक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएंँ।💐💐💐 एक पत्र चिकित्सकों के नाम। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° प्रिय, डॉक्टर साहब। आपको सादर नम
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फल, फूल, शीतल छांँव, आजीवन भेंट करता रहा। हरियाली को तरसता सूखा दरख़्त, असहाय खड़ा मौन, स्तब्ध सोचता रहा। कई बरस हो गए यूंँ ही खड़ा रहा, कई रोग, अनेकों तूफ़ानों को खेलता रहा। अफ़सोस दरख़्त अब बूढ़ा हो चला, लेकिन अब भी हर शख्स पत्थर फेंकता रहा। पानी की एक बूंँद भी न दे सका, जिससे ताउम्र लालची लाभ लेता रहा। स्वार्थपूर्ति कर मनुष्य भूल जाता है, "मन" ताउम्र सोच इसी आग में जलता रहा। शीर्षक~ सूखा दरख़्त फल, फूल, शीतल छांँव, आजीवन वितरित करता रहा। हरियाली को तरसता सूखा दरख़्त, असहाय खड़ा मौन, स्तब्ध सोचता रहा। कई बरस हो ग
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आखिरी चाय कृपया कैप्शन में ज़रूर पढ़ें। 🙏😊😊 होली के महज़ चंद दिन बाकी थे। यूपी बोर्ड की परीक्षाएंँ भी हो चुकी थी। इसलिए स्वतंत्र हो चुका था। अब मेरा प्लान था कि होली करने गांव चलते हैं
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"मन" की बात (भाग - 6) शीर्षक - कभी उदास न होना। कृपया कैप्शन में ज़रूर पढ़ें ✍️ 🙏😊 मन की बात ( भाग - 6) शीर्षक - कभी उदास न होना। जब न कोई सहारा हो, चारों तरफ़ अंधेरा हो। इतिहास से कुछ सीखना, उस वक्त भी तुम चलना।
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शीर्षक - किसान का बेटा कृपया कैप्शन में ज़रूर पढ़ें ✍️ 🙏😊 👇 शीर्षक - किसान का बेटा हर दिन प्रातः ही उठकर, भोर में दौड़ लगाते हो। एक दिन वर्दी बदन में होगी, यही ख़्वाब सजाते हो।
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कृपया कैप्शन में ज़रूर पढ़ें.. ✍️🙏😊 दुनिया की सभी मांँ'ओं को "मन"। शीश झुका करे कोटि कोटि नमन।। मांँ ने जना मांँ को अर्पित ये तन मन। मेरी मांँ के लिए समर्पित मेरा सारा जीवन।।
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जिंदगी हम तेरे मज़दूर, खुशियों से हैं कोसो दूर..... "मन" की बात भाग - 4 कृपया कैप्शन में ज़रूर पढ़ें ✍️✍️ 🙏😊 शीर्षक - "मन" की बात भाग - 4 जिंदगी हम तेरे मज़दूर, खुशियों से हैं कोसो दूर। न कोई साथी न सहारा, हो गए जीवन से मजबूर।
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मैं "मन" मन की बात लिखूंँगा। नए नए इतिहास लिखूंँगा..... "मन" की बात भाग - 3 कृपया कैप्शन में पढ़ें ✍️✍️ 🙏😊 भाग -3 शीर्षक - "मन" की बात मैं "मन" मन की बात लिखूंँगा। नए नए इतिहास लिखूंँगा। सियासत के अत्याचार लिखूँगा। नारी की चित्कार लिखूंँगा।
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जब मन करता मनमानी,अंतर्मन से खींचातानी। नाक से गहरी सांस मैं लेता ,पीता जाकर थोड़ा पानी।। पूरा कैप्शन में पढ़ें✍️✍️✍️ 🙏😊 "मन" की बात भाग -1 तारीख़ - 27/04/2020 स्वरचित शीर्षक - मन की बात जब मन काबू में न आए। उलझन रात दिन सताए। आंँखों से नींद भाग जाए।