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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
चौपाई छन्द , चित्र-चिंतन काशी के हैं घाट निराले । भक्त सभी है डेरा डाले ।। माँ गंगा की करें आरती । होती खुश हैं मातु भारती ।। भोले बाबा की यह नगरी । गलियां मिलती टेढ़ी सकरी ।। बम-बम बम-बम होती काशी । हरते दुख सबके अविनाशी ।। यह तन है मिट्टी की काया । इसकी बस कुछ दिन की छाया ।। आज मान लो मेरी बातें । होगी जगमग तेरी रातें ।। माँ गंगा में ध्यान लगाओ । भव से सभी पार हो जाओ ।। यह तन माया की है गठरी । हाथ न आये बिल्कुल ठठरी ।। पाप सभी गंगा धुल आये । फिर भी मन में पाप छुपाये ।। पाप नाशिनी होती गंगा । मारा डुबकी मन है चंगा ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चौपाई छन्द , चित्र-चिंतन काशी के हैं घाट निराले । भक्त सभी है डेरा डाले ।। माँ गंगा की करें आरती । होती खुश हैं मातु भारती ।। भोले बाबा क
तरु_का_आध्यात्मिक_आशियाना(मेरठी_कुड़ी)
ਸੀਰਿਯਸ jatt
ARTI JI
White *❤️❤️📘फ्री बुक "ज्ञान गंगा" स्पेशल भगवान की बुक फ्री होम डिलीवरी के साथ पाने के लिए लिंक को क्लिक करके फॉर्म भर दीजिए जी✅🙏🏻👩🏻💻👇🏻* http://bit.ly/3UzXtOa ©ARTI JI #election_2024 #IPL2024 #भक्ति #voting #शायरी #मोटिवेशनल #वीडियो #कॉमेडी #लव #IPL *❤️❤️📘फ्री बुक "ज्ञान गंगा" स्पेशल भगवान की बुक फ्री होम ड
Vandana Rana
सबको अपने कर्मों का पता होता है, यूं ही गंगा स्नान के लिए इतनी भीड़ नहीं होती! ©Vandana Rana सबको अपने कर्मों का पता होता है, यूं ही गंगा स्नान के लिए इतनी भीड़ नहीं होती!
Bharat Bhushan pathak
सिक्त अंगार,अब यौवन,अधर उपमा,नहीं होगी। नयन से बह,चुकी गंगा,न नारी प्राण सुन देगी।। पुरानी रीत होती थी,बहाए चोट पर आँसू। संभल के सुन, रहो पापी,लगेगी मार अब धाँसू।। ©Bharat Bhushan pathak #oddone सिक्त अंगार,अब यौवन,अधर उपमा,नहीं होगी। नयन से बह,चुकी गंगा,न नारी प्राण सुन देगी।। पुरानी रीत होती थी,बहाए चोट पर आँसू। संभल के सु
theunnamedpoet99
तुम बनारस सा इश्क तो दिखाना अगर मैं गंगा घाट ना हो जाऊं तो फिर कहना। ©theunnamedpoet99 तुम बनारस सा इश्क तो दिखाना अगर मैं गंगा घाट ना हो जाऊं तो फिर कहना।
BROKENBOY
तराशे गये किसी वचन की तरह। मोहब्बत करी हमने फ़न की तरह।। मिट जाते थे गिले शिकवे मिलते ही- वो थी गंगा के आचमन की तरह।। थकन को क्या खूब सुकून देती थी- सोफ़े पर रखे हुए कुशन की तरह। ©BROKENBOY #Tulips तराशे गये किसी वचन की तरह। मोहब्बत करी हमने फ़न की तरह।। मिट जाते थे गिले शिकवे मिलते ही- वो थी गंगा के आचमन की तरह।। थकन को क्या