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ʀᴏʏᴀʟ.यादववंशी.
फूल चाहे कितने भी हो वो सिर्फ अपने मालिक से प्यार करता है.. क्योंकि मालिक को ही पता होता है कोई चीज टूट जाने पर दर्द होता है।की हम तो तोड़ के किसी के हाथ में दे देते हैं फिर उसकी कदर कोई नहीं करता...🌼🌺 ©ʀᴏʏᴀʟ.यादववंशी. दो दिन हाथ में रखते हैं अगले दिन उसी को फेक देते हैं। जो की किसी का दिल जीता था....🌺🌼🥀 The flower is very precious, don't throw it away...🌼🌺
Ankur tiwari
White अपने मुंह मियां मिट्ठू ना बन, लंबी लंबी मत तू फेक हैं मुझे पता क्या मन में तेरे लगते तेरे इरादे नही हैं नेक जो कह रहा कि वक्त तेज़ बड़ा हैं जल्दी रुकता यह नही कहीं तो ज़रा कभी तू किसी और का इंतजार तो करके देख पता लगेगा वक्त हैं पर्वत कभी ख़त्म होता ही नही सागर सी गहराई हैं इसमें जिसे नाप कोई है सका नही ©Ankur tiwari #sad_shayari अपने मुंह मियां मिट्ठू ना बन, लंबी लंबी मत तू फेक हैं मुझे पता क्या मन में तेरे लगते तेरे इरादे नही हैं नेक जो कह रहा कि वक
ʀᴏʏᴀʟ.यादववंशी.
Deep Line.🦋 जलने वाले बोहोत है.. साथ में पानी लेकर चला करो काम आएगा..💧 ©ʀᴏʏᴀʟ.यादववंशी. जलने वाले बहुत है साफ़ मुँह पे पानी फेक दिया करो आगे वो सब भूल जाएगा
Sangeeta Kalbhor
White मोकळ्या आकाशी.. मोकळ्या आकाशी मुक्त नभाशी हितगुज मला करावयाचे आहे व्रत करुनिया सत्त्व राखूनिया मलाच माझे व्हावयाचे आहे हवा कशाला घोर फुकाचा कोण इथे आहे का कुणाचा स्वार्थी बरबटलेल्या या जगी अर्थ समजतो कोण मौनाचा जोखड सांभाळले आजवरी दूरवरी मला फेकावयाचे आहे व्रत करुनिया सत्त्व राखुनिया मलाच माझे व्हावयाचे आहे फापटपसारा हा विचारांचा झोंबतो त्रागा किती अंतरीचा संकल्पाविना ना सिद्धी लाभते मंत्र असे हा सुखी जीवनाचा करुनिया प्रण नियंत्रित मन आता मजला राखावयाचे आहे व्रत करुनिया सत्त्व राखूनिया मलाच माझे व्हावयाचे आहे..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #Emotional मोकळ्या आकाशी मुक्त नभाशी हितगुज मला करावयाचे आहे व्रत करुनिया सत्त्व राखूनिया मलाच माझे व्हावयाचे आहे हवा कशाला घोर फुकाचा कोण
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
हमारी नियति है। कभी शून्य से आगे बढ़ ही नहीं पाए , जब भी हमने सोचा की शायद अब नियति मे कुछ बदलाव आया होगा तो तभी कुछ ऐसा होता है की फिर उसी मोड़ पर आकर खड़े हों जाते हैं। कभी कभी तो लगता है अपने हाथ पैर मारना ही छोड़ दे ताकि कुछ पल सुकून के तो मिल सके पर यह भीं इसे मंजूर नहीं होता है, फिर कोई न कोई राह दिखा कर फिर उसी मोड़ पर ले आती है। ना यह चेन से जीने देती है और ना मरने देती है। जब तकलीफ़ का दौर देखा और अपने आप को कोसने लगे तो फिर इसे शख्स को सामने लाकर खड़ा कर देगी। जो हमसे भीं ज्यादा तकलीफ़ मे होगा, उसे देख कर और उनकी तकलीफ़ को सुनकर उनके लिए प्रार्थना करने के लिए अपने आप भगवान के आगे उठ जाते हैं। और आंखो में अश्रु भर जाते हैं। बस और बस केवल उनकी ही पीड़ा मन में रहती है। जब हाथ पकड़ कर कहती हूं सब ठीक हों जायेगा। तो वो जैसे ही ठीक हों जाता था। तो हमे भूल जाता है। और मन में एक ठीस सी उठती है। हमें दुःख किस बात का हुआ वो भूले इस कारण यां उनकी पीड़ा हमारे अंदर आ गई उसके कारण.. समझ नहीं आता की नियति क्या खेल खेलती है। हमारा मन एक कोरा कागज़ है उसपर हर तरह के रंग भर देती है। चाहें हमें पसंद हों यां नहीं। बस भरे जा रहीं हैं, भरे जा रही है। जो देखेगा तो उसका अलग ही मत होगा। कोई अपनी अलग ही राय कायम करेगा। पर इन सब के बीच में पिसता पेपर हैं। अगर रंग अच्छे भरे तो सुंदर चित्र उभर कर आयेगा और उसे साथ ले जायेगा। और किसी को पसंद नहीं आया तो कचरे के डिब्बे में फेका जायेगा, तब वो स्याही भीं ख़राब तो उस पेन की चुबन और वो पेपर भीं ख़राब हों जायेगा। और बाद में हमारी नियति भीं ख़राब बता दी जायेगी क्योंकि सबसे बड़ी कलाकार हमारी नियति है और हम वो प्लेन पेपर है, और दुःख, सुख, शांति, पीड़ा, संघर्ष रूपी कलम सभी हमारी नियति है। और शून्य से बढ़े तो शून्य में ही विलीन हों गए। ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma #aaina हमारी नियति है। कभी शून्य से आगे बढ़ ही नहीं पाए , जब भी हमने सोचा की शायद अब नियति मे कुछ बदलाव आया होगा तो तभी कुछ ऐसा होता है की
Dk Patil
Ravendra