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अभिव्यक्ति और अहसास -राहुल आरेज
White नौकरी बजानी होती है सहाब, झोला उठाकर निकल जाता हूं लौट आता निस्तेज मै क्या करूं, पेट बडा हो गया है मेरा सब डकार जाता है रद्दी हो या बेकार, नौकरी बजानी होती है सहाब पकने लगे है अब बाल मेरे , सब पता है फिर भी चलायमान तन मन, रूकता कहां है थमता कहां है हा ठिकाना भी जानता हूं साठ के बाद का वही पिछले का पुराना पलंग , गंदी तकिया और वो अंतिम पथ का प्रथम कोना। हास्यपद है फिर भी नौकरी बजानी पडती है सहाब। ©अभिव्यक्ति और अहसास -राहुल आरेज नौकरी बजानी होती है सहाब
नौकरी बजानी होती है सहाब
read moreहिमांशु Kulshreshtha
नहीं जानता क्या रिश्ता है मेरी रूह से तुम्हारी रूह का जो भी है ये, मगर खूब है ये अधूरा सा रिश्ता हमारा तन के रिश्ते, ना थे पहचान कभी मेरे इश्क की…. रूहों के मिलन से से होगा नायाब ये अधूरा सा रिश्ता हमारा ©हिमांशु Kulshreshtha क्या रिश्ता है..
क्या रिश्ता है..
read moreAnuradha T Gautam 6280
#मां_को_मां_की_जरूरत मां क्या होती है एक मां ही समझ सकती है जाकर मां से पूछो जिनकी मां नहीं होती अरे हमारे सामने तो मां होती है पर उसकी कद
read moreParasram Arora
White धर्म! आखिर ये धर्म है क्या? मैंने तो सिर्फ जीवन को ही जाना है जीवन के अलावा मैंने किसी को नहीं जाना है. और मेरी दृष्टि मे जीवन का अर्थ है. खेत हल कुवा और लहल्हाती फसल जीवन का अर्थ है पत्नी बच्चे और सुखद सफल दाम्पत्य ©Parasram Arora आखिर ये धर्म है क्या?
आखिर ये धर्म है क्या?
read moreMatangi Upadhyay( चिंका )
प्रेम क्या है..? मन की व्यथा जब कहनी ना पड़े, तन की पीड़ा जब बतानी ना पड़े, आँसू गिरे तो किसी की हथेली नर्म कर दे, निगाहें उठे तो गुस्सा शांत कर दे, मन जब उस मुकाम पर किसी के कंधे पर सर रख कर मुस्कुराए और आँखें भीग जाए, वो एहसास वो मुकाम प्रेम है..! ©Matangi Upadhyay( चिंका ) प्रेम क्या है?? #matangiupadhyay #Nojoto
प्रेम क्या है?? #matangiupadhyay
read moreMiss Khushi
तकलीफ तो होती है पर क्या करे...! हम किसी को जबरदस्ती अपना नहीं बना सकते...!!💯💔🥹 ©Miss Khushi तकलीफ तो होती है पर क्या करे...! हम किसी को जबरदस्ती अपना नहीं बना सकते...!!💯💔🥹
तकलीफ तो होती है पर क्या करे...! हम किसी को जबरदस्ती अपना नहीं बना सकते...!!💯💔🥹
read moreनवनीत ठाकुर
वो शौक, वो जोश, वो किस्से पुराने, सब दब गए हैं वक्त के तहखाने में। अब तो जाम भी लगता है बेअसर सा, ना वो तासीर है, ना वो दीवाने में। मस्ती थी कभी खुद को भुलाने में, अब ग़म छुपते हैं हंसने के बहाने में। खुशबू थी कभी हर बहार के तराने में, अब वो यादें भी उलझीं हैं अफसाने में। जिंदगी के रंग अब स्याह लगने लगे, जैसे खुशियां कहीं खो गईं इस ज़माने में। सवाल हजारों हैं दिल के आईने में, बस धुंधली तस्वीर सी फसाने में। गुज़री हुई बातों की सदा आती है, जैसे कोई पुकार हो वीराने में। जो मिल ना सके, वो याद बहुत आते हैं, ना जाने क्या जादू है बेगाने में। ©नवनीत ठाकुर ना क्या जादू है बेगाने में
ना क्या जादू है बेगाने में
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