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Aarti Sirsat
पेड़ से इक दरख़ास्त है, कली को कली ही रहने देना, जो फुल बन जाएगी... टूट जाएगी...! ©Aarti Sirsat #poem #Love #pool
gopi kiran
ఎవడి బ్రతుకు భయం వాడిది ఎవడి గెలుపు పోరాటం వాడిది ఎవడి ఎజండా వాడిది ఎవడి మెను కార్డ్ వాడిది ఒంటరిగా పోరాడెప్పుడు పొయెదెమి లేదు కాని కలిసి సాగాలనుకున్నప్పుడె ఇబ్బందంతా అంతా మనటొనె ఉన్నట్టుంటారు ఎవరూ మనవారు కాదు మాటలు ఆప్యాయతను నటిస్తుంటాయి గుందెలు ఎదురుతిరిగుతుంటాయి అక్కడె మన మీద కొలుకొలేని దెబ్బ పడుతుంది విశ్వం లో ఉనికే ఊహాచిత్రమవుతుంది మన అస్తిత్వం ఎమిటనే ప్రశ్న నెనెక్కడ అనె అనుమానం నేనెనందుకు అనె సందేహం అప్పుడె మనసులోతుల్లొ బాధల శిలలు కరగడం మొదలయ్యెది అప్పుడె అంతరాంతరలల్లొ వ్యధా భరిత సన్నివేశాల రూపకల్పన జరిగేది ఏకాంతమనుకున్నదంతా ఒంటరితనమని తెలుసుకున్న మనసు ఆవేదనతో గిలగిలలాడెది నడిసంద్రం మధ్యలోకి దిక్కులెకుందా విసిరెయబడ్డ అనుభూతి ఈత రాకపొతే సరే చిటుక్కున చచ్చిపోవచ్చు తెలిసి తెలియక చేతులు కొట్టుకోవడం వస్తే ఇంకంతే మరన యాతన ఎంటి...? ఈ జీవితం ప్రశ్నార్దకానికి ప్రస్నార్దకానికి మధ్య జిరిగే జవాబా ..? ప్రశ్నె లేని జవాబా....? మనిషి ఆశతో బ్రతికితే ఉదయించే పరిస్థితే ఇది మనసుకి ఊహలకి మధ్య అవినాభావ సంభంధం ఎర్పడితె జరిగేదిదే మనిషి బ్రతుకింతే మనసు గతి ఇంతే చావుకు బ్రతుక్కి మధ్య ప్రశ్నలా జీవితం ఇలా నిస్తెజంగా, నిర్లిప్తంగా, నిర్మానుష్యంగా సాగుతునే ఉంటుంది .................... ©gopi kiran #leaf
M@nsi Bisht
सिसकती है उस मौसम की डाल । जब अक्सर उसकी पत्ती ही उसका साथ छोड़ दें । ©M@nsi Bisht #leaf
Kirbadh
तेरे इंतज़ार में बैठे रहे ठगे से कहीं अंधेरे में ख़ामोश तन्हा अकेले साजिशों के घेरे में थोड़ा उनींदे थोड़ा थके से आस की मद्धिम लौ में चाहत के परवाने को साथ बिठाए यादों में खोए से इंतज़ार में तुम्हारी बैठे रहे ठगे से ©Kirbadh #Alive #love #waiting #poem
Rishi Ranjan
' तलाश ' ये लेखनी की बातें वो ख्वाबों में मुलाकातें सब तुमसे ही थीं मगर तुमने पहचाना ही नहीं। मैं लिखता रहा तुम पढ़ते रहे मैं कहता रहा तुम सुनते रहे इतना पढ़कर-सुनकर भी तुम पढ़-सुन न सके सब तुम्हारे लिए ही था मगर तुमने अपना माना ही नहीं। ©Rishi Ranjan #talaash #poem #Love
राहुल Shiv
प्रश्न ये की अगर गौतम बुद्ध किसी के प्रेम में पड़े होते तो क्या निर्वाण को प्राप्त हो पाते..? महलों का वैभव तो त्याग दिया था.. क्या प्रेम से विरक्त हो पाते। क्या तज पाते प्रेयसी को पत्नी की तरह । बंध पाते वैराग्य में प्रेम से मुक्त होकर। कर पाते ध्यान किसी और आराध्य का । आँख बंद करते, वही मूरत दिखाई देती ध्यान तो छोड़िए, सो भी नही पाते और हर दिन कोरी आंखों सवेरा होता। जब सवार होती वेदना रूपी प्रताड़ना, तो ज्ञान का बोध चुनते या साथी का । प्रेम के निम्तम रूपों मोह, आकर्षण, वासना पर तो उन्होंने पार पा लिया था. दूसरों से मिले प्रेम को तो उन्होंने भावनाओं का ज्वार समझ कर नकार दिया लेकिन एक बार अपनी समस्त इन्द्रियों को साक्षी मानकर उन्होंने अपने चंचल ह्रदय में अगर किसी को बसाया होता..सुना होता किसी की सांसों का संगीत..बिताये होते एकांत के कुछ पल हाथों में हाथ लेकर..तो उनके मोक्ष के मायने बदल गए होते। अगर मन हुआ होता रक्तरंजित अपने प्रिय के इंकार से ..होता कभी जो प्रणय निवेदन अस्वीकार.. ह्रदय बिखरा होता छलनी होकर.. तो उन्हें मौन से ज्यादा मृत्यु, मुक्ति का मार्ग लगती। हर स्मृति, हर कल्पना, हर भावना बस एक ही विंदु पर आकर सिमट जाती ..और वो केंद्र विंदु होता प्रेम । ये शायद नियति ही थी कि गौतम बुद्ध के ह्रदय में प्रेम के बीज नही पड़े वर्ना विश्वास कीजिये वो सिदार्थ से गौतम तो हो जाते..पर शायद कभी बुद्ध नही हो पाते। ©राहुल Shiv #Path #Love #Hindi #poem