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Eron (Neha Sharma)
माँ गेहूँ की टँकी से गेहूँ निकाला करती थी। फिर बोरे को उठाकर बाहर डाला करती थी। गेहूं को फटककर छाज से उसे छलनी में निकाला करती थी। धोकर गेहूओं को तब माँ छत पर डालकर सुखाया करती थी। घर की चक्की में माँ गेहूँ को पीसकर लाया करती थी। फिर उसी गेहूं के आटे की माँ गोल गोल रोटी बनाकर खिलाया करती थी।-नेहा शर्मा। माँ के हाथ की रोटी
KAKE KA RADIO
आज मुझे ये पता चला माँ कितने कष्ट उठाती है , गरम तवे पर अपने हाथों को रोज ही रोज जलाती है । क्या तुम्हें पता है वो गरम रोटियां इतनी स्वादिष्ट क्यों होती हैं ? माँ का प्यार भरा होता है उसमें और उसकी जलन की आहें होती हैं। #NojotoQuote माँ के हाथ की रोटी !
Mere Shabdo Ki Duniya
चन्द सिक्को की खातिर जान की बाजी लगाते है सड़कों पर तमाशा दिखाकर इज़्ज़त की रोटी कमाते हैं कलाकार✍️ कलाकार #कहानी #कलाकार #विचार #इज्ज़त #रोटी #जान #बाजी #चन्द #सिक्कें #कला #कविता
Dipin Tarbundiya
हमनें भी जिद्द छोड़ दी उसे पा ने की... उसे लगता था कि हम बहुत जिद्दी हैं पर उसे ये पता नहीं था कि जिद्द से ज्यादा हमें हमारी इज्ज़त प्यारी थी... खुद की इज़्ज़त...
ANITA SINGH
बचपना ही अच्छा था. यार क्यॊ बड़े हो गये. माँ के हाथ की नमक की रोटी ही अच्छी थी. क्यॊ स्वीगी जमेटो के आदि हो गये. मैरे माँ के हाथ की रोटी.
Vickram
खूबसूरती और संगीत का भी खूब तालमेल रहा है,,, कला को तो कई चीजों की जरूरत रही है हमेशा,,, अधूरे है दोनों हर पल प्यासा और पानी की तरह ,, कलाकार इसे और संवारने के लिए बेताब रहता ,, वो नहीं चाहता कि कोई खामियां रह जाए इसमें,, एक भी गलती वो फिर से दोहराना नहीं चाहता,,, कलाकार की कला,,,, ©Vickram कलाकार की ख्वाहिश,,,
Lalit Patil Gurjar
चल आज घर चलते हैं, माँ के हाथों की रोटी और अचार ख़ा कर आते हैं। माँ के हाथ की रोटी । घर से दूर ।
Saurabh Baurai
किल्लत रोटी की तब जानी जब रोटी ने नाता तोड़ा। कीमत खुद की तब पहचानी जब अपनो ने हाथ ये छोड़ा।। भटक रहे थे खाली पेट तो अश्रुनीर से प्यास बुझाई। थाम रहे थे जब खुद को तो हर दहलीज़ से ठोकर पाई।। गगन में उड़ना चाहा जब भी जंज़ीरों से लिपट गए। छाव की चाह में जब भी बैठें वृक्ष भी बहुधा सिमट गए।। दर्द भी पहले आंशू बनकर हर क्षण टपका करते थे। पूरे जग से होकर अक्सर मुझपर अटका करते थे।। विवश का आंगन छोड़ के इक दिन पृथक सा बनना ठान लिया। झूठे गणित के विश्व मे मैंने खुद को शून्य सा मान लिया।। ना जाने क्यों अब हर कोई मेरा साथ यूँ चाहते है। जग के बड़े अंक भी देखो शून्य से जुड़ना चाहते है।। जान गया हूँ जग से इतना रक्त तो यहां बहाना है। यहाँ से पाई हर रोटी का मोल ये सबको चुकाना हैं।। रोटी की कीमत