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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार  ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न । #कविता

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दोहा :-
अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार ।
पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार  ।।१
मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।
खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।२
वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद ।
ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।३
तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद ।
छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।४
बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप ।
अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।५
मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद ।
हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।६
मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग ।
उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।७
हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन ।
सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।८
खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन ।
सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।९
टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश ।
वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।१०
अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन ।
भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।११
थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज ।
कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।१२
मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल ।
तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।१३
२५/०४/२०२४     -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :-

अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार ।

पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार  ।।१


मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।

Fragrance

#SAD १२ #विचार

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

चित्र-चिंतन :- कुण्डलिया ताला मुँह पर मैं लगा , बैठा अब तक यार । सोचा था अनमोल है , प्रेम जगत व्यहवार ।। प्रेम जगत व्यहवार , इसी में जीव #कविता

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चित्र-चिंतन :- कुण्डलिया
ताला मुँह पर मैं लगा , बैठा अब तक यार ।
सोचा था अनमोल है , प्रेम जगत व्यहवार ।।
प्रेम जगत व्यहवार , इसी में जीवन फलता ।
लेकिन पग-पग आज , हमारा जीवन जलता ।।
त्याग छोड़ व्यहवार , समय कहता है लाला ।
बुजदिल समझें लोग , देखकर मुँह पर ताला ।।


१२/०४/२०२४     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चित्र-चिंतन :- कुण्डलिया


ताला मुँह पर मैं लगा , बैठा अब तक यार ।

सोचा था अनमोल है , प्रेम जगत व्यहवार ।।

प्रेम जगत व्यहवार , इसी में जीव

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :-  नवदुर्गा माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य । पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।। लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा । #कविता

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कुण्डलिया :-  नवदुर्गा

माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य ।
पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।।
लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा ।
देख शारदे मातु , झुका चरणों में माथा ।।
माँ अम्बें की आज , आरती जन-जन गाता ।
होकर खुश वरदान , दिए भक्तों को माता ।।
१२/०४/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-  नवदुर्गा

माता के नव रूप का , दर्शन का सौभाग्य ।
पाया जो वागीश ये , लिखने बैठा काव्य ।।
लिखने बैठा काव्य , जगत जननी की गाथा ।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- बढ़ाकर हाथ को छू लो गगन को । मिटा दो दिल से तुम अब हर शिकन को ।।१ चलोगे नेक पथ पर जब कभी भी । झुकेंगें फिर वो सिर तेरे नमन को ।।२ हिदा #शायरी

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ग़ज़ल :-
बढ़ाकर हाथ को छू लो गगन को ।
मिटा दो दिल से तुम अब हर शिकन को ।।१

चलोगे नेक पथ पर जब कभी भी ।
झुकेंगें फिर वो सिर तेरे नमन को ।।२

हिदायत तो यही सबको मिली है ।
कि भूलोगे न फिर अपने वतन को ।।३

न जाने पाये वो बचकर इधर से ।
डगर में आज बैठा दो  नयन को ।।४

नहीं आती हमें है नींद तुम बिन ।
करूँ क्या मैं भला जाके शयन को ।।५

उठी आवाज है दिल से अभी ये ।
निभाना है हमें सारे वचन को ।।६

वफ़ा का नाम मत लेना प्रखर तुम ।
तरसते रह गये वह सब कफ़न को ।।७

१२/०४/२०२४   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
बढ़ाकर हाथ को छू लो गगन को ।
मिटा दो दिल से तुम अब हर शिकन को ।।१
चलोगे नेक पथ पर जब कभी भी ।
झुकेंगें फिर वो सिर तेरे नमन को ।।२
हिदा

Mahadev Son

गर बिछड़ जाये लाल उसका क्षण भर के लिये माँ कमली कमली ढूंढ़दी फिरदी यहाँ तहाँ इस जग में पर लगता मैंनु मनालो त्वांनु जिन्ना वी तैनु फर्क नी पै #Bhakti

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गर बिछड़ जाये लाल उसका
क्षण भर के लिये माँ कमली कमली
ढूंढ़दी फिरदी यहाँ तहाँ इस जग में 

पर लगता मैंनु मनालो त्वांनु जिन्ना वी
तैनु फर्क नी पैंदा लगता मैंनु पथरों के विच
बै बै के दिल भी तेरा पत्थरा दा हो गया 

सौगंध तुझको तेरे लाल की और न
देरकर बस आजा अब न दे सज़ा
न रुला अब और तरसा....

©Mahadev Son गर बिछड़ जाये लाल उसका
क्षण भर के लिये माँ कमली कमली
ढूंढ़दी फिरदी यहाँ तहाँ इस जग में 

पर लगता मैंनु मनालो त्वांनु जिन्ना वी
तैनु फर्क नी पै

Shaarang Deepak

Shri Hanuman Chalisa (श्री हनुमान चालीसा) chaupai (11 & 12) explained with Hindi meaning (हिंदी अनुवाद/ अर्थ) ॥ Let's Learn with The Mystic #भक्ति #hanumanjayanti #JaiShreeRam #Shorts #hanumanji #hanumanchalisa #hanumantemple #हनुमान_चालीसा #hanumanbhajan

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pitandru

10 वी के छात्र 😀 Comedy #pitandru #hunarbaaz

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- उनकी बातों का एतबार मत करना । ऐसे ही दरिया पार मत करना ।।१ इस तरह इंतजार मत करना । हुस्न वालों से प्यार मत करना ।।२ प्यार करते बहुत #शायरी

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ग़ज़ल :-
उनकी बातों का एतबार मत करना ।
ऐसे ही दरिया पार मत करना ।।१

इस तरह इंतजार मत करना ।
हुस्न वालों से प्यार मत करना ।।२

प्यार करते बहुत सुना उससे ।
इसका लेकिन करार मत करना ।।३

खा लिया ठोकरें बहुत तुमने ।
जान को अब निसार मत करना ।४

मुफ्त में दे रहा तुम्हें ये दिल ।
इसका तुम भी व्यापार मत करना ।।५

अपने जैसा गरीब ही समझो ।
मुझको यूँ दरकिनार मत करना ।।६

बात ऊँची कभी यहाँ करके ।
हम को खुद पे सवार मत करना ।।७

हर गली चापलूस बैठे हैं ।
तुम उन्हें होशियार मत करना ।।८

हार जाते हो बार बा देखा ।
जीत की अब हुँकार मत करना ।।९

प्यार में सौदे भी लगे होने ।
अब प्रखर तुम उधार मत करना ।।१०

१२/०३/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
उनकी बातों का एतबार मत करना ।
ऐसे ही दरिया पार मत करना ।।१

इस तरह इंतजार मत करना ।
हुस्न वालों से प्यार मत करना ।।२

प्यार करते बहुत

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- यहाँ कोई भी मतदानी नहीं है । बिके हैं सब बेईमानी नहीं है ।।१ गिरा जो आँख से पानी नहीं है । बयां  करना भी आसानी नहीं है ।।२ #शायरी

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ग़ज़ल :-

यहाँ कोई भी मतदानी नहीं है ।
बिके हैं सब बेईमानी नहीं है ।।१

गिरा जो आँख से पानी नहीं है ।
बयां  करना भी आसानी नहीं है ।।२

लगाओ खूब नारे हिंद के अब ।
यहाँ कोई भी यूनानी नहीं है ।। ३

जरा सा हौसला करके तो देखो  ।
कोई भी दरिया तूफ़ानी नहीं है ।।४

तुम्हीं से पूछने आये चले हम ।
हमीं पे क्यूँ मेहरबानी नहीं है ।।५

चुनावी खेल चालू हो गये तो ।
दिखा कोई भी अभिमानी नहीं है ।।६

लगे आरोप झूठे सैनिकों पे ।
हमारा देश बलदानी नहीं है ।।७

अदब से सर झुकाते हैं उन्हें बस ।
प्रखर की वह महारानी नहीं है ।।८

१२/०३ २०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-

यहाँ कोई भी मतदानी नहीं है ।
बिके हैं सब बेईमानी नहीं है ।।१

गिरा जो आँख से पानी नहीं है ।
बयां  करना भी आसानी नहीं है ।।२
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