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Parasram Arora
Unsplash मेरी बिगड़ेल चाहतो से मुझे राहत मिलेगी कब? मेरे शरारती स्वार्थी तत्व आखिर कब समझ पायगे जीवन का यथार्थ? मेरा मौन चिल्लाना चाहता है युगो से आखिर उनकी आवाज़ मै सुन पाऊंगा कब? ©Parasram Arora कब?
कब?
read moreF M POETRY
Unsplash ज़िन्दगी उलझी हुई पहेली है.. कैसे हल होगी ये मालूम नहीं.. यूसुफ़ आर खान... ©F M POETRY #ज़िन्दगी उलझी हुई.....
#ज़िन्दगी उलझी हुई.....
read moreParasram Arora
White हवाए तों अभी भी अपनी शालीन गति से बह रहीं है इसके बावजूद उसकी साँसे रुकी हुई दिख रहीं है हो सकता है वो आदमी इतने लम्बे अर्से से साँसे लेते लेते थक गया हो और अब वो एक लम्बी नींद लेकर अपनी उस थकान को विश्रान देने की कोशिश कर रहा हो ©Parasram Arora रुकी हुई साँसे
रुकी हुई साँसे
read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी कब छटेगे दुविधाओं के बादल साफ कभी अरमानो का आसमान होगा खता हमने कुछ की नही फिर कहर कियो हम सत्ता का झेल रहे है कण कण में भगवान रहते फिर सर्वे कर गुमराह कियो है सियासी दाँव मजहब बन गया इंसानियत का आसमान कब तक साफ होगा प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #sad_quotes इंसानियत का आसमान कब तक साफ होगा
#sad_quotes इंसानियत का आसमान कब तक साफ होगा
read moreCricket
neelu
White होने में सिर्फ दो लोग शामिल होते हैं नहीं होने में चार लोग शामिल होते हैं यह क्या बात हुई ©neelu #sad_quotes #यही_तो_ज़िंदगी_है #क्या_कहेंगे_लोग #बात_बस_इतनी_सी_है हुई
#sad_quotes #यही_तो_ज़िंदगी_है #क्या_कहेंगे_लोग #बात_बस_इतनी_सी_है हुई
read moreनवनीत ठाकुर
ज़ुबां कहे भी तो किसे सुनाए ग़म, जिस दिल ने जिया है, वही समझे कम। बेनिशान थी आरज़ू, मगर गहरी छाप छोड़ गई, ज़ुबां खामोश रही, मगर दास्तां बोल गई। दिल के अंदर एक कहानी दबी थी, जो न कह सका, वो नरगिस ने सुनाई थी। गहरी छाप थी मोहब्बत की, वक़्त ने छोड़ दी, ज़ुबां की खामोशी में सच्चाई खोल दी। दर्द को छिपाकर, दिल ने उसे सहा, जिसे कह न सका, वही आह में बहा। मौन की गहराई में, दिल की आवाज़ पाई, जो अल्फ़ाज़ न थे, वो खामोशी ने जताई। ©नवनीत ठाकुर #जुबां खामोश थी
#जुबां खामोश थी
read moreShashi Bhushan Mishra
बे-दखल चाहत हुई है, भावना आहत हुई है, प्रेम का मरहम लगाया, तब कहीं राहत हुई है, बेवज़ह बेचैन हो मन, समझ लो उल्फ़त हुई है, देखता हरबार मुड़कर, जब कोई आहट हुई है, ध्यान में बैठे हो जबसे, फिर कहां फ़ुर्सत हुई है, हो मनोरथ सिद्ध अपना, ऐसी कब किस्मत हुई है, मुस्कुराकर भूल जाना, अपनी तो आदत हुई है, याद तड़पाती है 'गुंजन', घर गये मुद्दत हुई है, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra #बे-दखल चाहत हुई है#
#बे-दखल चाहत हुई है#
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