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मनोज कुमार झा "मनु"
Unsplash कौन कितने पानी में है सब दिखाई दे रहा है। सबका दिखावा अच्छे से हमें दिखाई दे रहा है।। समय बदला तो जो मूक थे वो भी बोल रहे हैं, मेरी बुराई पर बहरों को भी सुनाई दे रहा है।। जो गलत है उसको भी सही कह रहे हैं लोग, लगता है कि वो उसकी चमचागिरी कर रहा है।। जो कह रहा था चार दिन से मोबाइल नहीं छुआ, वो चार दिन से ही ऑनलाइन दिखाई दे रहा है।। कितने कमाल के लोगों से रोज मिलते हो "मनु" ये बताओ तुम्हें ये सब कैसे दिखाई दे रहा है।। ©मनोज कुमार झा "मनु" #leafbook सब दिखाई दे रहा है
#leafbook सब दिखाई दे रहा है
read moreF M POETRY
Unsplash या खुदा आर ही मिल जाए मुझे.. आर का प्यार ही मिल जाए मुझे.. और क्या चाहिए दिसंबर में.. उसका दीदार ही मिल जाये मुझे.. यूसुफ़ आर खान.... ©F M POETRY #आर का प्यार ही मिल जाए....
#आर का प्यार ही मिल जाए....
read moreAvinash Jha
कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha #संशय #Mythology #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
#संशय Mythology #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
read moreVinod Mishra
F M POETRY
White कहाँ जाएं तुम्हारे बाद अब हम.. भरी दुनियां में तन्हाँ रह गये हैँ.. यूसुफ़ आर खान... ©F M POETRY #कहाँ जाए तुम्हारे बाद ल..
#कहाँ जाए तुम्हारे बाद ल..
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