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Nasin Nishant
मैं हार जाता था इश्क से पर जब तक मैं इश्क करता था तब तक इश्क का रंग लाल हुआ करता था सुना हूँ आजकल इश्क से लोग जीतते जा रहे हैं और अब इश्क का रंग काला हुआ करता है । #कालाइश्क मेरे इश्क का रंग लाल हुआ करता था कभी पर अब सबके इश्क का रंग काला है ।
Lovelorn Vinit
sahil khan urf raja SK
मेरा भारत महान है ©sahil khan urf raja SK मेरा भारत महान है ओ देश मेरे तू जीता रहे तूने शेर के बच्चे पाले हैं एक लाल हुआ बलिदान तो क्या सो लाल तेरे रखवाले 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳👌👌👌
Jeevan Rana
सूरज की किरणों से लाल हुआ पानी, पानी सोचने लगा मिल गई जबानी। कुछ समय बाद छिप गया सूरज, बदल गई सूरत काला हो गया पानी। हे इंसान तू भी मत घमंड कर इस जवानी, बूढ़ा होकर मर जायेगा एक दिन,कोई नही सुनेगा तेरी कहानी। ©Jeevan Rana #paani सूरज की किरणों से लाल हुआ पानी, पानी सोचने लगा मिल गई जबानी। कुछ समय बाद छिप गया सूरज, बदल गई सूरत काला हो गया पानी। हे इंसान
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
आप आये यही कमाल हुआ । मेरा चेहरा खुशी से लाल हुआ ।। यह मेरे प्यार की इनायत है । हुस्न तेरा जो बेमिसाल हुआ ।। पूछो उनसे तुम्हें जो देखे हैं । उनके दिल में भी क्या बवाल हुआ ।। रात क्यों देखता है चाँद तुझे । वो भी क्या हुस्न पर निहाल हुआ ।। मिट गया जब प्रखर अदा पे तेरी । रात दिन ही उसे मुहाल हुआ ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR आप आये यही कमाल हुआ । मेरा चेहरा खुशी से लाल हुआ ।। यह मेरे प्यार की इनायत है । हुस्न तेरा जो बेमिसाल हुआ ।। पूछो उनसे तुम्
Manas Raj Singh
तूं मेरा पीर हुआ, मैं मजार हुआ तेरे इश्क़ से लहु मेरा लाल हुआ तेरे इश्क़ में मैं खुद्दार हुआ तेरे इश्क़ में दिल गद्दार हुआ इसे इश्क़ कहो, या प्यार हुआ बस मुझे तुझ पे एतबार हुआ लेखक- मानस राज सिंह(इशकिया) #इश्क़ तूं मेरा पीर हुआ, मैं मजार हुआ तेरे इश्क़ से लहु मेरा लाल हुआ तेरे इश्क़ में मैं खुद्दार हुआ तेरे इश्क़ में दिल गद्दार हुआ इसे इश्क़ कहो
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
क्या कहूँ इश्क़ में क्या हाल हुआ । वो मिलती रही कमाल हुआ ।।१ इस तरह इश्क़ में मलाल हुआ । फिर निकलना गली मुहाल हुआ ।।२ हर अदा ढ़ा गई गज़ब उनकी । लब के तिल का बड़ा कमाल हुआ ।।३ वज़्म में बात जब चली उनकी । चेहरा मेरा खुशी से लाल हुआ ।।४ उन पे कहना नहीं है कुछ आँसा जो कहा तो वही कमाल हुआ ।।५ देखकर उनके आज जलवे को सुन रहा हूँ कहीं बवाल हुआ ।।६ देख लो इक नज़र प्रखर उनको । जो तुम्हें देखकर निहाल हुआ ।।७ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR क्या कहूँ इश्क़ में क्या हाल हुआ । वो मिलती रही कमाल हुआ ।।१ इस तरह इश्क़ में मलाल हुआ । फिर निकलना गली मुहाल हुआ ।।२ हर अदा ढ़ा गई गज़ब उनकी
AB
मन से मिलने लगे देखो मन-मन रंगने लगे जब अंग-अंग और तन-तन,! रुत है ये रीत है ये प्रेम की ओ साहिबा भूल जा बैर सारे रंग मेरे रंग में ओ ज़ालिमा,! रंग दो मुझे भी रंग लाल सर से पाँव लाल ग़ुलाल सिंधुरी मेरी मांग जैसे सूरज की लालिमा,! ये जो रंग तेरा है चढ़ने लगा मुझपर कर रहा असर असर, हवाएँ चलने लगी हैं मद्धम मद्धम सन सन,चूड़ियाँ सुर्ख़ मेरी खनकने लगी हैं खन - खन, देखो क्या ज़म
Sachin Singh
रजनीश "स्वच्छंद"
मेरा एक यार रहता था।। इस गली के, उस चौक पे, मेरा एक यार रहता था। मेरी तन्हाइयों का दस्तक, मेरा साया मेरा सार रहता था। वर्षों बीते, पर याद धूमिल, अभी ताजी है। उसने, उसी छोटू नाई की दुकान पर, कटवाए थे बाल अपने। वो छोटू नाई, जो लिए उस्तरा आज सड़कों पर, पत्थरों से पटी सड़कें, लाठी, तलवार, भाले, पेट्रोल भरे जलते बोतल, चारों ओर बिखरे थे। विलाप का स्वर भी नहीं, किसी आतंक का ज्वर भी नहीं। आग और धुएं की लपटें, मानो प्रतिस्पर्धी हुए थे। कर खाक, जिंदगियां, लहराते आसमां छुए थे। बदहवास सड़क पर, मैं बस भागता जा रहा। हाय, आज मेरा धर्म ही सालता जा रहा। वो सीमेंट का चबूतरा, हमारे जवान होने का गवाह। कहीं लाल, कहीं कालिख रंग सना, मानो दर्द में डूबा हो अथाह। कलेजा मुख को, धड़कनों की आवाज़ सन्नाटा चीरती। कहाँ गयी वो दार जी की आवाज़, जो देख हमें साथ थी चीखती। सन्न हुआ, नज़रें कुछ खोज रहीं थी, हवाएं, नासिका में, गोलियां बोज रहीं थीं। लगता है कुछ है वहां, कुर्ते का बाजू, रंग बदल लाल हुआ था। टायरों संग भुनती गोश्त की बदबू, आग की लपटों से जो लाल हुआ था। मैं आधा खड़ा देखता, आधा टायरों में फंस जल रहा था। अपने आप को मानो कह अलविदा, किसी और सफर पर चल रहा था। आज मैं हार गया अपने आप से, थे अलग दोनों बस नाम से। किसकी हत्या का दोषी हूँ मैं, हुंकारता रावण है पूछता राम से। अश्रुधार पलकों से पहले सूख गए, ये दृश्य देखने से पहले। मैं था अकेला नहीं, जमीं आसमां दोनों थे दहले। हृदय का घाव था गहरा, लिख रहा भर कलम में स्याही। मैं ही मरा, मैं ही खड़ा था, कौन था दोषी, कौन देता गवाही। ©रजनीश "स्वछंद" मेरा एक यार रहता था।। इस गली के, उस चौक पे, मेरा एक यार रहता था। मेरी तन्हाइयों का दस्तक, मेरा साया मेरा सार रहता था। वर्षों बीते, पर याद ध