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आभूषणों से सावधान । गृहणी का सच्चा आभूषण है उसका स्वास्थ्य, पारस्परिक प्रेम, सद्भावनाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य, योग्यता। पं श्रीराम शर्मा आचार्य आभूषण
pradeep jirati sayarofficial
ताराणां भूषणं चन्द्रः नारीणां भूषणं पतिः । पृथिव्याः भूषणं राजा विद्या सर्वस्य भूषणम् ।।अर्थ। चन्द्रमा नक्षत्रों का आभूषण है और पति स्त्री का आभूषण है। राजा पृथ्वी का आभूषण है और ज्ञान सबका आभूषण है ©pradeep jirati sayarofficial आभूषण।।।
rajeshwari Thakur
सफलता नामक आभूषण पहनने के लिए, इन पथों से होकर गुजरना पड़ता हैं। संघर्ष, तिरस्कार, व्यंग्य बाण, अपशब्द, तनाव, कर्मठता, छल तब जाकर सफलता आपके कदमों को छूती हैं। जो इन पथों के सारे विकार को धो देती हैं। और सर्वत्र अपनी चमक बिखेर देती हैं। जो प्रेरित करती हैं। जो किसी और के आत्म विश्वास को पुख़्ता करती हैं। जो किसी और कि जीत ,किसी अन्य कि सफलता का कारण बनती हैं। क्यूंकि आपने उन्हें सही रास्ता दिखाया हैं।अपने आप को साबित कर ©rajeshwari Thakur #boat #सफलता#आभूषण
Akram Tilhari
ये खुदा जाने क्या ख़बर मुझ को कैसा मिलता है हम सफर मुझ को रेज़ा रेज़ा मैं बिखर जाऊँ गा आप ने छोड़ दिया गर मुझ को बे वफा मुझ को कह रहे हो तुम तुम पे लगता है कुछ असर मुझ को तूने अपना जो बनाया होता फिरना पड़ता ना दर बदर मुझ को मैं तो दिल में तुम्हारे रहता हूँ ढूंढ़ते क्यूँ इधर उधर मुझ को सारे आलम के ज़र्रे ज़र्रे में वोही आता है बस नज़र मुझ को वक़्ते ग़ुरबत में ये बता अकरम क्या झुकाना पड़ेगा सर मुझ को [[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]
Akram Tilhari
जिन पे दौलत का नशा तारी है उनकी हर बात में मक्कारी हैं देख ले इकतेदार में तेरे बे कसूरों का क़त्ल जारी है पहले ख़िदमत थी अदब की लेकिन शायरी अब तो कारोबारी है उसका सब एहतेराम करते हैं जिस में दर अस्ल इन्केसारी है तुम सा कोई हसीं मिला ही नहीं देख ली हम ने दुन्या सारी है एक तिन्का भी ग़ैर का रख लूँ इतनी जुरअत कहाँ हमारी है प्यार करते हो दिल से क्या अकरम या फक़त ये भी दुन्या दारी है [[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]
Akram Tilhari
ना जाने किस ने मुझ को दिवाना बना दिया आकर के मुझ को ख़्वाब में जलवा दिखा दिया अहदे वफा को तोड़ कर जब वो चला गया मैंने भी उस के सारे ख़तों को जला दिया हम लौट आये जंग के मैदान से मगर दुश्मन को मज़ा मौत का हम ने चखा दिया रहते नहीं हैं दोस्तो आँगन में अपनी ही किस ने ये इन परिंदों को उड़ना सिखा दिया पहुँचा नहीं तू इश्क़ की मंज़िल तलक ऐ दिल हाँ इस लिये तो उन का तमाशा बना दिया अकरम मैं आज कहता तो दिल खोल कर मगर ताला किसी ने मेरी ज़बाँ पर लगा दिया [[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]
Akram Tilhari
ना मिलता जो तेरा करम थोड़ा थोड़ा तो हम कैसे जीते सनम थोड़ा थोड़ा मेरी जान जायेगी इक दिन यक़ीनन जो करते रहे तुम सितम थोड़ा थोड़ा किताबे वफा उन की जब मैं ने देखी तो हर वर्क़ में निकला ख़म थोडा़ थोडा़ ग़ज़ल लिखना मुझ को तो आती नहीं है मगर कर रहा हूँ रक़म थोडा़ थोडा़ मोहब्बत में जिस की ज़माने को छोडा़ वोही मुझ को देता है ग़म थोडा़ थोडा़ जिन्हें शायरी में नहीं आता कुछ भी मचाते हैं वो भी उधम थोडा़ थोडा़ ये मिट जायेगी दूरी इका दिन ऐ अकरम अगर तुम बढ़ो और हम थोडा़ थोडा़ [[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]