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Tripurari Pandey
New Year 2025 नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐🙏🙏✍️ ©Tripurari Pandey #Newyear2025 सभी को
#Newyear2025 सभी को
read moreAshutosh Mishra
Unsplash आज हरियाली ने ओढी क्या स्वेत चादर मानो धरती पर स्वर्ग लोक का निर्माण हुआ शीत रितु की शीतल झकोरे हर मानव को झकझोरे कुछ सिमट गए रजाई में तो कुछ प्रकृतिक की छटा निहारे कही अनुपम अद्भुत अदुतीय का स्वर गुंजायमान हो रहा कोई आसमान से गिरते बर्फ के फुहारों की स्मृतियों को अपने मानस पटल पर इंगित कर रहा है अनोखी अदा अनोखी छटा अनोखा अंदाज है प्रकृतिक का हर सम्भव करो रक्षा प्रकृतिक की नही तो ये नज़रे केवल तस्वीर बन जाएगी अल्फाज मेरे✍️🏽🙏🏼🙏🏼 ©Ashutosh Mishra #snow #हिंदीनोजोटो #हिंदी_कविता #प्रकृति #नजारा #आशुतोषमिश्रा Mahi Aman Singh unnti singh SHIVAM tomar "सागर" Kamlesh Kandpal
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read moreJyoti
Unsplash जब आप प्रकृति🌿🍃से सच्चा करते हैं, तो आप को दुनिया की हर जगह खुबसूरत लगेगी। ©Jyoti #leafbook # प्रकृति🌿🍃
#leafbook # प्रकृति🌿🍃
read moreRAMLALIT NIRALA
Unsplash यार मेरे तरह किसी को इतना प्यार मत करना कि जिन्दगी क्या है तुम भुल जाओ चलो प्यार कर ही लिया तो ठिक है पर किसी भी तरह का लत मत लगाना क्योकि एक बार लत लग गई तो मरते दम तक नहीं छोडती प्यार मे मीलना या बात करना यार में खूद को भीड मे रह कर भी अकेला महसुस करता हूं प्यार के शिवा उस तन्हाई को कोई भी नहीं दुर कर सकता। ©RAMLALIT NIRALA जिवन को जिना है तो दूसोरो को रूलाना छोड दो
जिवन को जिना है तो दूसोरो को रूलाना छोड दो
read moreF M POETRY
Unsplash थामा था एक पल को तेरे हाथ को हमने.. आती है मुसलसल तुम्हारे हाथ कि खुश्बू.. यूसुफ़ आर खान.... ©F M POETRY #थामा था एक पल को तेरे हाथ को हमने...
#थामा था एक पल को तेरे हाथ को हमने...
read moreहिमांशु Kulshreshtha
White मेरे दर्द को पढ़ने की कोशिश करते हैं लोग अख़बार की ख़बर नहीं किताबों की बात करते हैं लोग ©हिमांशु Kulshreshtha मेरे दर्द को..
मेरे दर्द को..
read moreneelu
White हम क्या सिखते हैं यह तो हमारी सीखने की प्रकृति पर निर्भर करता है पर लोग हमें सिखाने ही आते हैं.... ©neelu #love_shayari हम #क्या #सिखते हैं यह तो हमारी #सीखने की #प्रकृति पर #निर्भर करता है पर #लोग हमें #सिखाने ही आते हैं....
नवनीत ठाकुर
White दरख्त काट के हमने शहर बसाए, अब हर सांस को तरसने का वक्त बना रखा है। दरिया रो रहे हैं, पहाड़ टूट रहे हैं, हमने तरक्की के नाम पर ज़हर बना रखा है। जंगल जलाकर हमने इमारतें खड़ी कीं, फिर भी छांव को तरसने का दौर बना रखा है। हवा, पानी, धरती का हाल पूछो ज़रा, हमने कुदरत को अपने बाप की जागीर बना रखा है। ©नवनीत ठाकुर #प्रकृति