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Manisha Keshav https://www.audible.in/pd/Jab-Tera-Zikr-Hota-Hai-When-You-Are-Mentioned-Audiobook/B0D94RCK97
White https://www.amazon.in/dp/9363303624/ref=sr_1_1?crid=1BG7ESUNE99LA&dib=eyJ2IjoiMSJ9.u_X-ACLRxc3Bp_N1TlG0rQ.6Qiwd2Wla8gtRO9hqyOuf_aJyG0p-vE3cHJ7OViYmlY&dib_tag=se&keywords=9789363303621&qid=1730815253&sprefix=9789363306233%2Caps%2C378&sr=8-1 ©Manisha Keshav https://www.audible.in/pd/Jab-Tera-Zikr-Hota-Hai-When-You-Are-Mentioned-Audiobook/B0D94RCK97 #समझ सको तो अर्थ हूँ #कविता #Love
Parasram Arora
White उलझन वाले छंदो मे उलझ कर कविता मेरी थक कर हाफने लगी है लगता है अब एक नई कविता मन के केनवास पर कहीं जन्म न लें रहीं हो ©Parasram Arora i एक नूई कविता का प्रजनन
i एक नूई कविता का प्रजनन
read moreSatish Kumar Meena
मेरे अंदर का बचà¥à¤šà¤¾ कहता है मेरे अंदर का बच्चा कहता है कि मुझे तो बच्चा ही रहने दो,इस दुनियां में बड़ा होना अपने को दुविधा में ही रखना है मैं तो बच्चा ही ठीक हूं। ©Satish Kumar Meena मेरे अंदर का बच्चा
मेरे अंदर का बच्चा
read moremeri_lekhni_12
White मेरे जीते जी रो लेता ,तो मैं मरता भला ही क्यों, लौटकर आने की चाहत है पर मैं आ नही सकता। क्यों गमगीन रहते हो , रहो न पहले जैसे तुम, तुम्हारे चेहरे पर मातम सा अब अच्छा नहीं लगता। तसब्बुर में तेरे शामो शहर मैने दिन गुजारे थे, तुझे क्या होगया जो मेरे बिन अब रह नही सकता। तेरी राहों को तकती थी निगाहे मेरी हर सूं तब कि क्यों बैठा है चौराहे पे, मुझे जब पा नही सकता।। पूनम सिंह भदौरिया दिल्ली ©ek_tukda_zindgi _12 मेरे जीते जी रो लेता..........#कविता #Poetry #gajal
Tiranjana
White मैं आजीवन इंतजार कर जाऊं किसी और को स्वीकार कर सकूं ऐसा साहस मुझ में नहीं ©Tiranjana मेरी कविता ✍️ मेरे अल्फाज ❤️
मेरी कविता ✍️ मेरे अल्फाज ❤️
read moreharshit tyagi
White वक्त कह रहा है कुछ वक्त शांत होकर गुज़ार लो, शोर करने का भी एक दिन वक़्त आएगा... । ©harshit tyagi मधुर सुप्रभात आप सभी का दिन शुभ हो
मधुर सुप्रभात आप सभी का दिन शुभ हो
read moreनवनीत ठाकुर
जमीन पर आधिपत्य इंसान का, पशुओं को आसपास से दूर भगाए। हर जीव पर उसने डाला है बंधन, ये कैसी है जिद्द, ये किसका अधिकार है।। जहां पेड़ों की छांव थी कभी, अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी। मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया, ये कैसी रचना का निर्माण है।। नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने, पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है। प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र, बस खुद की चाहत का संसार है। क्या सच में यही मानव का आविष्कार है? फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है, सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है। बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है, उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है। हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है, किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है, इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।। हरियाली छूटी, जीवन रूठा, सुख की खोज में सब कुछ छूटा। जो संतुलन से भरी थी कभी, बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।। बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है। हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है? ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है? क्या यही मानवता का सच्चा आकार है? ©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता
#प्रकृति का विलाप कविता
read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी रोरी चन्दन और अक्षत लगे ललाट पर मंगल मेरे भईया का हो चढ़े शिखर वो कामयाबी का लाखो में बस एक मेरा भईया हो शुभकामनाएं बहनों की पाकर बाल भी बांका ना भईया का हो लाख लडू और खटपट हो मेरी भईया से मगर गैरो के मुँह से,बुराई ना सह सकू भईया की मुझ पर नही आने देते कोई मुसीबतों मेरी रक्षा का भार उठाते मेरे भईया जी प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Bhai_Dooj मंगल मेरे भैया का हो
#Bhai_Dooj मंगल मेरे भैया का हो
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