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Shaarang Deepak

Shri Hanuman Chalisa (श्री हनुमान चालीसा) chaupai (17 & 18) explained with Hindi meaning (हिंदी अनुवाद/ अर्थ) ॥ Let's Learn with The Mystic #भक्ति #hanumanjayanti #JaiShreeRam #Shorts #hanumanji #hanumanchalisa #hanumantemple #हनुमान_चालीसा #hanumanbhajan

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Vikas Sharma Shivaaya'

दशहरा के मंत्र  रावनु रथी बिरथ रघुबीरा-देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।  अधिक प्रीति मन भा संदेहा-बंदि चरन कह सहित सनेहा।।  रावण को रथ और श्रीराम #समाज

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दशहरा के मंत्र 



रावनु रथी बिरथ रघुबीरा-देखि बिभीषन भयउ अधीरा।। 

अधिक प्रीति मन भा संदेहा-बंदि चरन कह सहित सनेहा।। 

रावण को रथ और श्रीराम को पैदल देखकर बिभीषन अधीर हो गए और प्रभु से स्नेह अधिक होने पर उनके मन में संदेह आ गया कि प्रभु कैसे रावण का मुकाबल करेंगे। श्रीराम के चरणों की वंदना कर वो कहने लगे।



नाथ न रथ नहि तन पद त्राना-केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥ सुनहु सखा कह कृपानिधाना-जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥ 

हे नाथ आपके पास न रथ है, न शरीर की रक्षा करने वाला कवच और पैरों में पादुकाएं हैं, इस तरह से रावण जैसे बलवान वीर पर जीत कैसे प्राप्त हो पाएगी? कृपानिधान प्रभु राम बोले- हे सखा सुनो, जिससे जय होती है, वह रथ ये नहीं कोई दूसरा ही है॥



सौरज धीरज तेहि रथ चाका-सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका ॥ 

बल बिबेक दम परहित घोरे-छमा कृपा समता रजु जोरे ॥

इस चौपाई में श्रीराम ने उस रथ के बारे में बताया है जिससे जीत हासिल की जाती है। धैर्य और शौर्य उस रथ के पहिए हैं। सदाचार और सत्य उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। विवेक, बल, इंद्रियों को वश में करने की शक्ति और परोपकार ये चारों उसके अश्व हैं। ये क्षमा, दया और समता रूपी डोरी के जरिए रथ में जोड़े गए हैं।



ईस भजनु सारथी सुजाना-बिरति चर्म संतोष कृपाना ॥ 

दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा-बर बिग्यान कठिन कोदंडा ॥  

इस चौपाई में प्रभु ने सारथी के बारे में बताया है। जो रथ को चलाता है। ईश्वर का भजन ही रथ का चतुर सारथी है । वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान धनुष है।



अमल अचल मन त्रोन समाना-सम जम नियम सिलीमुख नाना ॥ कवच अभेद बिप्र गुर पूजा-एहि सम बिजय उपाय न दूजा ॥ 

पाप से मुक्त और स्थिर मन तरकस के समान है। वश में किया हुआ मन, यम-नियम, ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है।



सखा धर्ममय अस रथ जाकें-जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें ॥ 

हे सखा (बिभीषन) यदि किसी योद्धा के पास ऐसा धर्ममय रथ हो तो उसके सामने शत्रु होता ही नहीं, वो हर क्षेत्र में जीत हासिल करता है।



महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर

जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।। 

हे धीरबुद्धि वाले सखा सुनो, जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो, वह वीर संसार (जन्म मरण का चक्र) रूपी महान दुर्जय शत्रु को भी जीत सकता है,फिर रावण को जीतना मुश्किल कैसे हो सकता है।



सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज

एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज ।। 

प्रभु श्रीराम के वचन सुनकर बिभीषन प्रफुल्लित हो गए और उन्होंने प्रभु के चरण पकड़कर कहा, हे प्रभु, आपने इस युद्ध के बहाने मुझे वो महान उपदेश दिया है जिससे जीवन के किसी भी क्षेत्र में विजय पाने का मार्ग मिल गया है। ये मंत्र पाकर मैं धन्य हो गया

🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' दशहरा के मंत्र 


रावनु रथी बिरथ रघुबीरा-देखि बिभीषन भयउ अधीरा।। 

अधिक प्रीति मन भा संदेहा-बंदि चरन कह सहित सनेहा।। 

रावण को रथ और श्रीराम

atrisheartfeelings

चौपाई लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥ मन महुँ तरक करैं कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥1॥ भावार्थ:-लंका तो राक्षसों के #Devotional #Sunderkand #Sundarkand #ananttripathi #atrisheartfeelings

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रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराई॥

लंका निसिचर निकर निवासा। 
इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥
मन महुँ तरक करैं कपि लागा। 
तेहीं समय बिभीषनु जागा॥
राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। 
हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥
एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी। 
साधु ते होइ न कारज हानी॥
बिप्र रूप धरि बचन सुनाए। 
सुनत बिभीषन उठि तहँ आए॥
करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। 
बिप्र कहहु निज कथा बुझाई॥
की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। 
मोरें हृदय प्रीति अति होई॥
की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। 
आयहु मोहि करन बड़भागी॥ चौपाई 
लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥
मन महुँ तरक करैं कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥1॥

भावार्थ:-लंका तो राक्षसों के

atrisheartfeelings

#atrisheartfeelings #ananttripathi #Sundarkand #Sunderkand अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर। कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर॥7॥

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अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।
कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर॥
जानतहूँ अस स्वामि बिसारी। फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी॥
एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा। पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा॥
पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥
तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता॥
जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवन सुत बिदा कराई॥
करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥
देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
कृस तनु सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥
 #atrisheartfeelings #ananttripathi #sundarkand #sunderkand


अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।
कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर॥7॥

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 5 विभीषण के महल का वर्णन – श्रीराम के चिन्ह और तुलसी के पौधे रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ। नव तुलसिका बृंद तहँ देख #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 5

विभीषण के महल का वर्णन – श्रीराम के चिन्ह और तुलसी के पौधे
रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराई ॥5॥
वह महल श्री राम के आयुध (धनुष-बाण) के चिह्नों से अंकित था,
उसकी शोभा वर्णन नहीं की जा सकती॥वहाँ नवीन-नवीन तुलसी के वृक्ष-समूहों को देखकर
कपिराज हनुमान हर्षित हुए॥ 5॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी और विभीषण का संवाद
राक्षसों की नगरी में, सत-पुरुष को देखकर, हनुमानजी को आश्चर्य हुआ
लंका निसिचर निकर निवासा।
इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥
मन महुँ तरक करैं कपि लागा।
तेहीं समय बिभीषनु जागा॥1॥
और उन्हीने सोचा की यह लंका नगरी तो राक्षसोंके कुलकी निवासभूमी है,
राक्षसो के समूह का निवास स्थान है।
यहाँ सत्पुरुषो के रहने का क्या काम॥
इस तरह हनुमानजी मन ही मन में विचार करने लगे।इतने में विभीषण की आँख खुली॥

हनुमानजी, विभीषण को, राम नाम का जप करते देखते है
राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा।
हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥
एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी।
साधु ते होइ न कारज हानी॥2॥
और जागते ही उन्होंने – राम! राम! – ऐसा स्मरण किया,तो हनुमानजीने जाना की यह कोई सत्पुरुष है।इस बात से हनुमानजीको बड़ा आनंद हुआ॥

सत्पुरुषों से क्यों पहचान करनी चाहिये?
हनुमानजीने विचार किया कि
इनसे जरूर पहचान करनी चहिये,
क्योंकि सत्पुरुषोके हाथ कभी कार्यकी हानि नहीं होती,बल्कि लाभ ही होता है॥

हनुमानजी ब्राह्मण का रूप धारण करते है
बिप्र रूप धरि बचन सुनाए।
सुनत बिभीषन उठि तहँ आए॥
करि प्रनाम पूँछी कुसलाई।
बिप्र कहहु निज कथा बुझाई॥3॥
फिर हनुमानजीने ब्राम्हणका रूप धरकर वचन सुनाया,तो वह वचन सुनतेही विभीषण उठकर उनके पास आया॥और प्रणाम करके कुशल पूँछा कि,
हे ब्राह्मणदेव!, जो आपकी बात हो सो हमें समझाकर कहो(अपनी कथा समझाकर कहिए)॥

विभीषण हनुमानजी से उनके बारे में पूछते है
की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई।
मोरें हृदय प्रीति अति होई॥
की तुम्ह रामु दीन अनुरागी।
आयहु मोहि करन बड़भागी॥4॥
विभीषणने कहा कि, क्या आप हरिभक्तो मे से कोई है?क्योंकि मेरे मनमें आपकी ओर बहुत प्रीती बढती जाती है,आपको देखकर मेरे हृदय मे अत्यंत प्रेम उमड़ रहा है॥अथवा मुझको बडभागी करने के वास्ते,
भक्तोपर अनुराग रखनेवाले आप साक्षात दिनबन्धु ही तो नहीं पधार गए हो॥(अथवा क्या आप दीनो से प्रेम करने वाले स्वयं श्री राम जी ही है,जो मुझे बड़भागी बनाने, घर-बैठे दर्शन देकर कृतार्थ करने आए है?)

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 210 से 220 नाम 
210 गुरुतमः ब्रह्मा आदिको भी ब्रह्मविद्या प्रदान करने वाले
211 धाम परम ज्योति
212 सत्यः सत्य-भाषणरूप, धर्मस्वरूप
213 सत्यपराक्रमः जिनका पराक्रम सत्य अर्थात अमोघ है
214 निमिषः जिनके नेत्र योगनिद्रा में मूंदे हुए हैं
215 अनिमिषः मत्स्यरूप या आत्मारूप
216 स्रग्वी वैजयंती माला धारण करने वाले
217 वाचस्पतिः-उदारधीः विद्या के पति,सर्व पदार्थों को प्रत्यक्ष करने वाले
218 अग्रणीः मुमुक्षुओं को उत्तम पद पर ले जाने वाले
219 ग्रामणीः भूतग्राम का नेतृत्व करने वाले
220 श्रीमान् जिनकी श्री अर्थात कांति सबसे बढ़ी चढ़ी है
🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 5

विभीषण के महल का वर्णन – श्रीराम के चिन्ह और तुलसी के पौधे
रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका बृंद तहँ देख

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 7 भगवान् राम के गुणों का भक्तिपूर्वक स्मरण अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर। कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर ॥7 #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 7
भगवान् राम के गुणों का भक्तिपूर्वक स्मरण
अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।
कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर ॥7॥
हे सखा, सुनो मै ऐसा अधम नीच हूँ तिस पर भी रघुवीरने कृपा कर दी,तो आप तो सब प्रकारसे उत्तम हो-आप पर कृपा करे इस में क्या बड़ी बात है- ऐसे प्रभु श्री रामचन्द्रजी के गुणोंका स्मरण करनेसे दोनों के नेत्रोमें आंसू भर आये॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

भगवान् को भूलने पर, इंसान के जीवन में दुःख का आना
जानतहूँ अस स्वामि बिसारी।
फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी॥
एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा।
पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा॥
जो मनुष्य जानते बुझते ऐसे स्वामीको छोड़ बैठते है,वे दूखी क्यों न होंगे?
इस तरह रामचन्द्रजीके परम पवित्र व
कानोंको सुख देने वाले गुणसमूहोंको कहते कहते,हनुमानजी ने विश्राम पाया,उन्होने परम (अनिर्वचनीय) शांति प्राप्त की॥

विभीषण हनुमानजी को माता सीता के बारे में बताते है
पुनि सब कथा बिभीषन कही।
जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥
तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता।
देखी चहउँ जानकी माता॥
फिर विभीषण ने हनुमानजी से वह सब कथा कही कि –सीताजी जिस जगह, जिस तरह रहती थी।तब हनुमानजी ने विभीषण से कहा, हे भाई सुनो,मैं सीता माताको देखना चाहता हूँ॥

अशोकवन का प्रसंग-हनुमानजी अशोकवन जाते है
जुगुति बिभीषन सकल सुनाई।
चलेउ पवनसुत बिदा कराई॥
करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ।
बन असोक सीता रह जहवाँ॥
सो मुझे उपाय बताओ।हनुमानजी के यह वचन सुनकर विभीषण ने वहांकी सब युक्तियाँ (उपाय) कह सुनाई।तब हनुमानजी भी विभीषणसे विदा लेकर वहांसे चले॥फिर वैसा ही छोटासा स्वरुप धर कर,हनुमानजी वहां गए, जहां अशोकवन में सीताजी रहा करती थी॥

सीताजी का राम के गुणों का स्मरण करना
देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा।
बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
कृस तनु सीस जटा एक बेनी।
जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥
हनुमानजी ने सीताजी का दर्शन करके,
उनको मनही मनमें प्रणाम किया और बैठे-इतने में एक प्रहर रात्रि बीत गयी॥
हनुमानजी सीताजी को देखते है,सो उनका शरीर तो बहुत दुबला हो रहा है।
सर पर लटो की एक वेणी बंधी हुई है और अपने मनमें श्री राम के गुणों का जाप (स्मरण) कर रही है॥

विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 289 से 300 नाम 
289 सत्यधर्मपराक्रमःजिनके धर्म-ज्ञान और पराक्रमादि गुण सत्य है
290 भूतभव्यभवन्नाथः भूत, भव्य (भविष्य) और भवत (वर्तमान) प्राणियों के नाथ है
291 पवनः पवित्र करने वाले हैं
292 पावनः चलाने वाले हैं
293 अनलः प्राणों को आत्मभाव से ग्रहण करने वाले हैं
294 कामहा मोक्षकामी भक्तों और हिंसकों की कामनाओं को नष्ट करने वाले
295 कामकृत् सात्विक भक्तों की कामनाओं को पूरा करने वाले हैं
296 कान्तः अत्यंत रूपवान हैं
297 कामः पुरुषार्थ की आकांक्षा वालों से कामना किये जाते हैं
298 कामप्रदः भक्तों की कामनाओं को पूरा करने वाले हैं
299 प्रभुः प्रकर्ष
300 युगादिकृत् युगादि का आरम्भ करने वाले हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 7
भगवान् राम के गुणों का भक्तिपूर्वक स्मरण
अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।
कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर ॥7

atrisheartfeelings

#atrisheartfeelings #ananttripathi #Sundarkand #Sunderkand #yqbaba #Devotional तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन स

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तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम॥
सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥
तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥
तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥
अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥
जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥
सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥
कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥
प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥ #atrisheartfeelings #ananttripathi
#sundarkand #sunderkand #yqbaba
#devotional

तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन स

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 6 हनुमानजी विभीषण को श्री राम कथा सुनाते है:- तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्रा #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 6
हनुमानजी विभीषण को श्री राम कथा सुनाते है:-
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम ॥6॥
विभिषणके ये वचन सुनकर हनुमानजी ने रामचन्द्रजी की सब कथा विभीषण से कही और अपना नाम बताया।

प्रभु राम के नाम स्मरण से, दोनों के मन आनंदित हो जाते है:-
परस्पर की बाते सुनते ही दोनों के शरीर रोमांचित हो गएऔर श्री रामचन्द्रजी का स्मरण आ जाने से दोनों आनंदमग्न हो गए ॥6॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

विभीषण हनुमानजी को अपनी स्थिति बताते है:-
सुनहु पवनसुत रहनि हमारी।
जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥
तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा।
करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥
विभीषण कहते है की – हे हनुमानजी!
हमारी रहनी हम कहते है सो सुनो।
जैसे दांतों के बिचमें बिचारी जीभ रहती है,ऐसे हम इन राक्षसोंके बिच में रहते है॥
हे तात! वे सूर्यकुल के नाथ (रघुनाथ),
मुझको अनाथ जानकर कभी कृपा करेंगे?

बिना भगवान् की कृपा के सत्पुरुषों का संग नहीं मिलता:-
तामस तनु कछु साधन नाहीं।
प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥
अब मोहि भा भरोस हनुमंता।
बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥
जिससे प्रभु कृपा करे ऐसा साधन तो मेरे है नहीं।क्योंकि मेरा शरीर तो तमोगुणी राक्षस है,और न कोई प्रभुके चरण कमलों में मेरे मन की प्रीति है॥
परन्तु हे हनुमानजी, अब मुझको इस बात का पक्का भरोसा हो गया है कि,
भगवान मुझ पर अवश्य कृपा करेंगे।क्योंकि भगवान की कृपा बिना सत्पुरुषों का मिलाप नहीं होता॥

हनुमानजी द्वारा प्रभु श्री राम के गुणों का वर्णन:-
प्रभु श्री राम भक्तों पर सदा दया करते है
जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा।
तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥
सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती।
करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥
रामचन्द्रजी ने मुझ पर कृपा की है इसी से आपने आकर मुझको दर्शन दिए है॥
विभीषणके यह वचन सुनकर हनुमानजीने कहा कि, हे विभीषण! सुनो,प्रभु की यह रीती ही है की वे सेवक पर सदा परमप्रीति किया करते है॥

हनुमानजी कहते है, श्री राम ने वानरों पर भी कृपा की है:-
कहहु कवन मैं परम कुलीना।
कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥
प्रात लेइ जो नाम हमारा।
तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥
हनुमानजी कहते है की कहो मै कौन सा कुलीन पुरुष हूँ।हमारी जाति देखो (चंचल वानर की),जो महाचंचल और सब प्रकार से हीन गिनी जाती है॥
जो कोई पुरुष प्रातःकाल हमारा (बंदरों का) नाम ले लेवे,तो उसे उस दिन खाने को भोजन नहीं मिलता॥

शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र- 
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः। 
शनि देव महाराज के वैदिक मंत्र- 
ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये। 
शनि देव का एकाक्षरी मंत्र- ऊँ शं शनैश्चाराय नमः। 
शनि देव जी का गायत्री मंत्र- ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।

विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 255 से 265 नाम 
255 सिद्धिसाधनः सिद्धि के साधक

256 वृषाही जिनमे वृष(धर्म) जोकि अहः (दिन) है वो स्थित है
257 वृषभः जो भक्तों के लिए इच्छित वस्तुओं की वर्षा करते हैं
258 विष्णुः सब और व्याप्त रहने वाले
259 वृषपर्वा धर्म की तरफ जाने वाली सीढ़ी
260 वृषोदरः जिनका उदर मानो प्रजा की वर्षा करता है
261 वर्धनः बढ़ाने और पालना करने वाले
262 वर्धमानः जो प्रपंचरूप से बढ़ते हैं
263 विविक्तः बढ़ते हुए भी पृथक ही रहते हैं
264 श्रुतिसागरः जिनमे समुद्र के सामान श्रुतियाँ रखी हुई हैं
265 सुभुजः जिनकी जगत की रक्षा करने वाली भुजाएं अति सुन्दर हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 6
हनुमानजी विभीषण को श्री राम कथा सुनाते है:-
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्रा

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 23 अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान। भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान #समाज

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🙏सुन्दरकांड 🙏
दोहा – 23
अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ॥23॥
हे रावण! मोह् का मूल कारण और
अत्यंत दुःख देने वाली अभिमान की बुद्धि को छोड़ कर कृपा के सागर भगवान् श्री रघुवीर कुल नायक रामचन्द्रजी की सेवा कर ॥23॥
(मोह ही जिनका मूल है ऐसे बहुत पीड़ा देने वाले, तमरूप अभिमान का त्याग कर दो)
श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी के सच्चे वचन अहंकारी रावण की समझ में नहीं आते है
जदपि कही कपि अति हित बानी।
भगति बिबेक बिरति नय सानी॥
बोला बिहसि महा अभिमानी।
मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥
यद्यपि हनुमान जी रावण को अति हितकारी और भक्ति, ज्ञान,धर्म और नीति से भरी वाणी कही,परंतु उस अभिमानी अधम के उसके कुछ भी असर नहीं हुआ॥इससे हँसकर बोला कि हे वानर!आज तो हमको तु बडा ज्ञानी गुरु मिला॥

रावण हनुमानजी को डराता है
मृत्यु निकट आई खल तोही।
लागेसि अधम सिखावन मोही॥
उलटा होइहि कह हनुमाना।
मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥
हे नीच! तू मुझको शिक्षा देने लगा है.
सो हे दुष्ट! कहीं तेरी मौत तो निकट नहीं आ गयी है?॥रावण के ये वचन सुन हनुमान्‌ ने कहा कि इससे उलटा ही होगा (अर्थात् मृत्यु तेरी निकट आई है, मेरी नही)।हे रावण! अब मैंने तेरा बुद्धिभ्रम (मतिभ्रम) स्पष्ट रीति से जान लिया है॥

रावण हनुमानजी को मारने का हुक्म देता है
सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना।
बेगि न हरहु मूढ़ कर प्राना॥
सुनत निसाचर मारन धाए।
सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए॥
हनुमान्‌ के वचन सुन कर रावण को बड़ा कोध आया,जिससे रावण ने राक्षसों को कहा कि हे राक्षसो!
इस मूर्ख के प्राण जल्दी ले लो अर्थात इसे तुरंत मार डालो॥इस प्रकार रावण के वचन सुनते ही राक्षस मारने को दौड़ें तब अपने मंत्रियोंके साथ विभीषण वहां आ पहुँचे॥

विभीषण रावणको दुसरा दंड देने के लिए समझाता है
नाइ सीस करि बिनय बहूता।
नीति बिरोध न मारिअ दूता॥
आन दंड कछु करिअ गोसाँई।
सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥
बड़े विनय के साथ रावण को प्रणाम करके बिभीषणने कहा कि यह दूत है इसलिए इसे मारना नही चाहिये  क्यों कि यह बात नीतिसे विरुद्ध है॥
हे स्वामी! इसे आप कोई दूसरा दंड दे दीजिये पर मारें मत।बिभीषण की यह बात सुनकर सब राक्षसों ने कहा कि
हे भाइयो! यह सलाह तो अच्छी है॥

रावण हनुमानजी को दुसरा दंड देने का सोचता है
सुनत बिहसि बोला दसकंधर।
अंग भंग करि पठइअ बंदर॥
रावण इस बात को सुन कर बोला कि
जो इसको मारना ठीक नहीं है,तो इस बंदर का कोई अंग भंग करके इसे भेज दो॥
विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 897 से 908 नाम  )
897 सनातनतमः जो ब्रह्मादि सनतानों से भी अत्यंत सनातन हैं
898 कपिलः बडवानलरूप में जिनका वर्ण कपिल है
899 कपिः जो सूर्यरूप में जल को अपनी किरणों से पीते हैं
900 अव्ययः प्रलयकाल में जगत में विलीन होते हैं
901 स्वस्तिदः भक्तों को स्वस्ति अर्थात मंगल देते हैं
902 स्वस्तिकृत् जो स्वस्ति ही करते हैं
903 स्वस्ति जो परमानन्दस्वरूप हैं
904 स्वस्तिभुक् जो स्वस्ति भोगते हैं और भक्तों की स्वस्ति की रक्षा करते हैं
905 स्वस्तिदक्षिणः जो स्वस्ति करने में समर्थ हैं
906 अरौद्रः कर्म, राग और कोप जिनमे ये तीनों रौद्र नहीं हैं
907 कुण्डली सूर्यमण्डल के समान कुण्डल धारण किये हुए हैं
908 चक्री सम्पूर्ण लोकों की रक्षा के लिए मनस्तत्त्वरूप सुदर्शन चक्र धारण किया है

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏
दोहा – 23
अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 10 राक्षसियाँ सीताजी को डराने लगती है भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद। सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद ॥10॥ उधर #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 10
राक्षसियाँ सीताजी को डराने लगती है
भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद ॥10॥
उधर तो रावण अपने भवन के भीतर गया-इधर वे नीच राक्षसियों के झुंड के झुंड अनेक प्रकार के रूप धारण कर के सीताजी को भय दिखाने लगे॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

त्रिजटा का स्वप्न
रामचन्द्रजी के चरनों की भक्त, निपुण और विवेकवती त्रिजटा

त्रिजटा नाम राच्छसी एका।
राम चरन रति निपुन बिबेका॥
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना।
सीतहि सेइ करहु हित अपना॥
उनमें एक त्रिजटा नाम की राक्षसी थी।
वह रामचन्द्रजी के चरनों की परम भक्त और बड़ी निपुण और विवेकवती थी- उसने सब राक्षसियों को अपने पास बुलाकर,जो उसको सपना आया था, वह सबको सुनायाऔर उनसे कहा की –हम सबको सीताजी की सेवा करके
अपना हित कर लेना चाहिए(सीताजी की सेवा करके अपना कल्याण कर लो)॥

त्रिजटा अन्य राक्षसियों को स्वप्न के बारे में बताती है
सपनें बानर लंका जारी।
जातुधान सेना सब मारी॥
खर आरूढ़ नगन दससीसा।
मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥

क्योकि मैंने सपने में ऐसा देखा है कि एक वानर ने लंकापुरी को जला कर
राक्षसों की सारी सेना को मार डाला और रावण गधे पर सवार है,वह भी कैसा की नग्न शरीर,सिर मुंडा हुआ और बीस भुजायें टूटी हुई॥

स्वप्न में रामचन्द्रजी की लंका पर विजय
एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई।
लंका मनहुँ बिभीषन पाई॥
नगर फिरी रघुबीर दोहाई।
तब प्रभु सीता बोलि पठाई॥
इस प्रकार से वह दक्षिण (यमपुरी की) दिशा को जा रहा है और मैंने सपने में यह भी देखा है कि मानो लंका का राज विभिषण को मिल गया है और नगर मे रामचन्द्रजी की दुहाई फिर गयी है-तब रामचन्द्रजी ने सीता को बुलाने के लिए बुलावा भेजा है॥

स्वप्न सुनकर राक्षसियाँ डर जाती है
यह सपना मैं कहउँ पुकारी।
होइहि सत्य गएँ दिन चारी॥
तासु बचन सुनि ते सब डरीं।
जनकसुता के चरनन्हि परीं॥
त्रिजटा कहती है की मै आपसे यह बात खूब सोच कर कहती हूँ की यह स्वप्न चार दिन बितने के बाद (कुछ ही दिनों बाद) सत्य हो जाएगा॥त्रिजटा के ये वचन सुनकर सब राक्षसियाँ डर गई।
और डर के मारे सब सीताजीके चरणों में गिर पड़ी॥

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 419  से 430 नाम
419 परमेष्ठी हृदयाकाश के भीतर परम महिमा में स्थित रहने के स्वभाव वाले
420 परिग्रहः भक्तों के अर्पण किये जाने वाले पुष्पादि को ग्रहण करने वाले
421 उग्रः जिनके भय से सूर्य भी निकलता है
422 संवत्सरः जिनमे सब भूत बसते हैं
423 दक्षः जो सब कार्य बड़ी शीघ्रता से करते हैं
424 विश्रामः मोक्ष देने वाले हैं
425 विश्वदक्षिणः जो समस्त कार्यों में कुशल हैं
426 विस्तारः जिनमे समस्त लोक विस्तार पाते हैं
427 स्थावरस्स्थाणुः स्थावर और स्थाणु हैं
428 प्रमाणम् संवितस्वरूप
429 बीजमव्ययम् बिना अन्यथाभाव के ही संसार के कारण हैं
430 अर्थः सबसे प्रार्थना किये जाने वाले हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 10
राक्षसियाँ सीताजी को डराने लगती है
भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद ॥10॥
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